- ऑक्सीजन लेवल 88 तक पहुंचा, 17 दिन तक दोस्त फरिश्ते बन खड़े रहे और बढ़ाते रहे मनोबल

- महाराष्ट्र गया था बेटा, कोरोना काल में पिता को आया हार्ट अटैक, बेटे के दोस्त ने की मदद

KANPUR: कोरोना काल में जहां एक तरफ कुछ लोगों ने रिश्तों से मुंह मोड़ लिया वहीं कुछ ऐसे भी थे जो दोस्ती के खातिर अपनी जान जोखिम में डाल दी और दोस्ती का फर्ज निभा कर इंसान बन गए। मौत के आगोश में जा रहे लोगों की मदद कर उन्हें बचा लिया। आज हम आपको सिटी के कुछ अनछुए पहलू से रूबरू कराने जा रहे हैं जो दोस्ती की बेहतरीन मिसाल बन गए और साथ ही अन्य लोगों को दोस्ती के मायने भी समझा दिए।

बचपन के दोस्त को फोन किया

एक फंक्शन में गए कपड़ा कारोबारी रजनीश गुप्ता कोरोना वायरस की चपेट में आ गए। वह अगले दिन घर पर थे तभी उन्हें और पत्नी नेहा गुप्ता को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। उनके छोटे बच्चे हैं और दोनों की हालत ऐसी नहीं थी कि वह खुद डॉक्टर के यहां पहुंच सकें। उन्होंने अपने बचपन के दोस्त सूरज प्रजापति को फोन किया। सूरज घंटाघर स्थित लोकमन मोहाल में अपने घर पर थे। वह तुरंत शुक्लागंज पोनी रोड स्थित अपने दोस्त के घर पहुंचे और दोनों को लेकर नार्थ हॉस्पिटल लेकर गए। जहां रैपिड जांच में रजनीश की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई और नेहा की रिपोर्ट नेगेटिव थी।

एडमिट करने से मना कर दिया

नेहा को एडमिट कर लिया गया, लेकिन रजनीश को मना कर दिया गया। रजनीश को कानपुर के किसी भी हॉस्पिटल में एडमिट नहीं किया गया। तभी उन्होंने अपने और दोस्तों से मदद मांगी तो एक दोस्त ने उन्नाव के गवर्नमेंट हॉस्पिटल में एडमिट कराने को कहा। वह उन्हें लेकर जा ही रहे थे तभी रजनीश का ऑक्सीजन लेवल कम होने से चक्कर आ गया और वह कार की सीट से नीचे गिरने वाले थे तभी उन्हें पकड़ लिया और वहीं गाड़ी रोक कर अदरक और काली मिर्च वाली चाय दी। सूरज ने बताया कि वह एक डॉक्टर के यहां कई साल असिस्टेंट रहें वहां उन्होंने सांस लेने में तकलीफ हो तो कैसे हैंडल करना है सीखा था। वह उस वक्त काम आया। फिर थोड़ी देर बाद उन्नाव पहुंचकर उन्हें एडमिट करा दिया।

लोगों को मरते हुए देखा

अस्पताल में कोरोना से मरते हुए लोगों को देख कर रजनीश घबरा गए। इस दौरान रजनीश के दोस्त फरिश्ते बन कर खड़े रहे। ऑक्सीजन लेवल कम होने से रजनीश 17 दिन तक हॉस्पिटल में एडमिट रहे। इस दौरान सूरज ने हौसला दिया और उनकी पत्नी और बच्चों से वीडियोकॉल के जरिए बात कराई। रजनीश कहते हैं कि दोस्तों के साथ की ही वजह से कोरोना को हरा पाया।

खुद को किया आइसोलेट

रजनीश के बच्चे छोटे हैं। उनके घर में दूसरा कोई नहीं था जो अस्पताल के चक्कर लगा सके। जब तक रजनीश का इलाज चला कारोबारी सूरज बराबर उनके घर आते जाते रहे। इस बीच वो भी कोरोना वायरस की जद में आ गए। लेकिन उनका ऑक्सीजन लेवल गिरा नहीं था। फिर जब रजनीश को डिस्चार्ज कर दिया गया तो उन्होंने खुद को आइसोलेट कर लिया।

बेहोश पड़े दोस्त के पिता की बचाई जान

जवाहर नगर में स्पीकर का व्यवसाय करने वाले सुबोध श्रीवास्तव घर पर अकेले थे। शाम को अचानक उनके सीने में दर्द उठा। उसी समय उनका बेटा उत्कर्ष श्रीवास्तव जो महाराष्ट्र घूमने गया था वह वीडियो कॉल पर उनसे बात कर रहा था। उसने पिता को दर्द से कराहते हुए देखा। दूर होने की वजह से वह इस कंडीशन में नहीं था कि वह तुरंत कुछ कर सके। तभी उसे जवाहर नगर में रहने वाले अपने बचपन के दोस्त उत्कर्ष दीक्षित को फोन किया। उत्कर्ष ने बताया कि जब फोन आया तो वह घंटाघर में थे। दोस्त के घर पहुंचा तो अंकल जमीन पर अचेत अवस्था में पड़े थे। आसपास लोगों से मदद मांगी तो लोग एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। साथ में आए एक दोस्त की मदद से अंकल को उठाया और उन्हें हॉस्पिटल ले गए। कोविड-19 की सेकेंड वेव तेजी से लोगों को अपने चपेट में ले रही थी। ऐसे में पास के हॉस्पिटल ने अंकल को देखने से मना कर दिया। तुरंत उनको लेकर कॉर्डियोलॉजी पहुंचे। 7 मार्च 2021 को उनकी सर्जरी हुई और उन्हें स्टंट पड़ा है। जब तक उनका बेटा आ सका तब तक उनका ऑपरेशन हो गया था। सुबोध बताते हैं कि यह आयुष ने बेटे की तरह मेरी मदद की। मुझे दूसरा जीवन मिला है।