नीदरलैंड्स में शोधकर्ताओं ने एक ऐसी डच महिला के हृदय के स्वास्थ्य की जांच की है जो द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के समय भूखमरी का सामना कर रही थीं।

ऐसे लोग जिन्हें भोजन से प्रतिदिन 400-800 कैलोरी ही मिल पाती है, बाद में उन्हें दिल की बीमारी होने का ख़तरा 27 फ़ीसदी तक बढ़ जाता है।

यूरोपीयन हर्ट जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ ये पहला ऐसा सीधा प्रमाण है कि प्रारंभिक पोषण व्यक्ति के भविष्य के स्वास्थ्य को आकार देता है।

भोजन का असर

नीदरलैंड्स में 1944-45 के दौरान पड़े अकाल ने हॉलैंड के शोधकर्ताओं को एक किशोरावस्था और युवावस्था में कुपोषण के दीर्घकालिक प्रभाव के अध्ययन का सुनहरा मौक़ा दिया।

नीदरलैंड्स में इस दौरान फसल नष्ट होने, कड़ाके की ठंड और युद्ध की वजह से देश के पश्चिमी इलाके में रहने वाले हज़ारों लोग मारे गए थे।

उस समय जो महिलाएं 10 से 17 साल के बीच की उम्र की थीं उनकी 2007 में जांच की गई।

यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर यूट्रेख़्ट और ऐम्सटर्डम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि अकाल के दौरान जिन लोगों को अच्छा भोजन मिला था उनकी तुलना में जो लोग कुपोषण का शिकार हुए थे उनमें दिल की बीमारी का ख़तरा 27 फ़ीसदी ज़्यादा था।

इस शोध के प्रमुख लेखक एनेट वान अबीलेन ने बीबीसी को बताया, ''सबसे महत्वपूर्ण संदेश ये है कि इस बात को जान लिया जाए कि बच्चे अगर कुपोषण के शिकार होते हैं तो वयस्क होने पर उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। ऐसा नहीं है कि कुपोषण का प्रभाव केवल कुछ समय तक ही महसूस किया जाता है बल्कि 50 साल बाद भी ऐसे लोगों में दिल की बीमारी का ख़तरा बना रहता है.''

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