देशद्रोह कानून क्या है?

सैडीशन लॉ यानि देशद्रोह कानून एक उपनिवेशीय कानून है जो ब्रितानी राज ने बनाया था। लेकिन भारतीय संविधान में उसे अपना लिया गया था। भारतीय कानून संहिता के अनुच्छेद 124 A में देशद्रोह की परिभाषा दी गई है जिसमें लिखा है कि अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन भी करता है तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सज़ा हो सकती है।

हालांकि ब्रिटेन ने ये कानून अपने संविधान से हटा दिया है, लेकिन भारत के संविधान में ये विवादित कानून आज भी मौजूद है। भारत पर ब्रितानी राज के समय इसे महात्मा गांधी के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था।

ये खबरों में क्यों है?

जब-जब कोई मानवाधिकार कार्यकर्ता या सामाजिक कार्यकर्ता सरकार-विरोधी बयान देता है और उस पर सरकारी गाज गिरती है, तब-तब ये कानून सुर्खियों में अपनी जगह बना लेता है।

आपको याद होगा कि इससे पहले अरुंधती रॉय और बिनायक सेन पर भी देशद्रोही का आरोप लग चुका है। मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन को तो देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी गई थी, जिसके खिलाफ उन्होंने उच्चतम न्यायालय में केस लड़ा।

ताज़ा मामला है कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी का, जिन्हें उनके कार्टूनों के आधार पर राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने, संविधान को नीचा दिखाने और देशद्रोही सामग्री छापते के आरोप में गिरफ्तारी किया गया है।

इसके बारे में जानना ज़रूरी क्यों है?

एक ओर भारतीय संविधान में देशद्रोह को एक अपराध है। दूसरी ओर संविधान में भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी भी दी गई है। ऐसे में देशद्रोह के आरोप में हुई गिरफ्तारियों की मानवाधिकार कार्यकर्ता व संस्थाएं आलोचना करती रही हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि देशद्रोह से जुड़े कानून की आड़ में सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस कानून की कड़ी आलोचना होती रही है और इस बात पर बहस छिड़ी है कि अँग्रेज़ों के ज़माने के इस क़ानून की भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जगह होनी भी चाहिए या नहीं।

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