नई दिल्ली (पीटीआई)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को देशद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी और केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार इन पुराने दंड कानून की फिर से जांच नहीं करती, तब तक देशद्रोह के आरोपों को लेकर कोई नई एफआईआर दर्ज नहीं की जाए। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि देशद्रोह के आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा अभियुक्तों को दी गई राहत जारी रहेगी।

क्या बदल जाएगा कानून

इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुझाव दिया था कि देशद्रोह के अपराध में प्राथमिकी दर्ज करने की निगरानी के लिए एक पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारी को जिम्मेदार बनाया जा सकता है। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली भी शामिल थे, कि देशद्रोह के अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज करने को रोका नहीं जा सकता क्योंकि प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और इसे 1962 में संविधान पीठ द्वारा बरकरार रखा गया था।

जमानत याचिकाओं पर सुनवाई तेज

देशद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में, केंद्र ने सुझाव दिया कि ऐसे मामलों में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई तेज की जा सकती है क्योंकि सरकार को प्रत्येक मामले में अपराध की गंभीरता का पता नहीं होता था। विधि अधिकारी ने पीठ से कहा, "आखिरकार, लंबित मामले न्यायिक मंच के समक्ष हैं और हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है।" मंगलवार को, पीठ ने केंद्र से कहा था कि वह पहले से ही दर्ज नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए लंबित राजद्रोह के मामलों को 24 घंटे के भीतर स्पष्ट कर दे और सरकार द्वारा पुराने दंड कानून की फिर से जांच होने तक नए मामले दर्ज नहीं किए जाएं।

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