मुश्किलों को रौंद कर दीपा मलिक ने जीता रजत

- रियो पैरालम्पिक में दीपा मलिक ने 46 साल की उम्र में शॉटपुट में जीता रजत पदक

- आज व्हील चेयर पर बल्लेबाजी करते दिखेंगी दीपा

LUCKNOW: जिन मुश्किल हालातों में सामान्य इंसान समझौता कर लेता है और घुटने टेक घर बैठ जाता हैं, उन्हीं तमाम परेशानियों को रौंद कर दीपा मलिक ने देश के लिए वह मुकाम हासिल किया जिस पर आज देश को नाज है। दीपा मलिक देश की पहली महिला दिव्यांग खिलाड़ी हैं जिन्होंने रियो पैरालम्पिक में 46 वर्ष की उम्र में शॉटपुट में भारत के लिए रजत पदक जीता। चांदी की राजकुमारी दीपा मलिक शाम को एक फंक्शन में हिस्सा लेने राजधानी पहुंचीं। यहां पर उन्होंने ऐसे राज खोले जिन्हें सुन लोग दांतो तले अंगुलियां दबाने को मजबूर हो गए।

मन मे थी लंदन पैरालम्पिक की कसक

दीपा मलिक ने बताया कि वर्ष 2012 में अर्जुन अवार्ड के लिए मुझे सम्मानित किया जा रहा था। दिल्ली में चल रहे इस फंक्शन में सभी मुझे बधाइयां दे रहे थे, लेकिन इस खुशी के मौके पर भी मैं उस दर्द को नहीं छिपा सकी जो मेरे मन में था। वह था लंदन पैरालम्पिक में शामिल ना हो पाने का। यह कहते हुए दीपा मलिक बेहद भावुक हो गई। लड़खड़ाती आवाज और आंखों में आते आंसुओं को रोक कर उन्होंने बताया कि उम्मीद नहीं थी कि इस मौके पर भी कुछ ऐसा सुनने को मिल जाएगा जिसकी आपने कल्पना भी ना की हो। अवार्ड सेरेमनी के दौरान एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि आखिर तुम दुखी क्यों हो। तुम्हे तो अवार्ड दिया जा रहा है। इस पर मैंने अपने दिल की टीस उसे बताई कि मैं लंदन पैरालम्पिक में हिस्सा लेना चाहती थी। इस पर उसका जवाब था कि पैरालम्पिक में हिस्सा ले कर पार्टीसिपेट कर भी लेती तो भी अर्जुन अवार्ड ही मिलता ना। वह तो तुमको मिल ही रहा है। बस, यहीं से मैंने ठान लिया था कि अब तो पैरालम्पिक में मेडल लाना ही होगा जिससे उन लोगों की मानसिकता को बदल सकूं जो दिव्यांगों को बोझ समझते हैं। दीपा मलिक ने रियो पैरालम्पिक में शॉटपुट (4.61 मीटर) में 46 साल की उम्र में रजत पदक जीता है। मैं वह मुकाम हासिल करना चाहती हूं कि जिससे मुझे भी पद्मश्री और खेल रत्न मिल सके। उन्होंने कहा कि इस उपलब्धि के बाद मेरा नाम अपने पदक के साथ लखनऊ आई दीपा मलिक ने कहा कि यह दूसरा मौका है जब मैं यहां आई हूं। इससे पहले वर्ष 2014 में मैं लखनऊ आई थी।

अनफेयर सेलेक्शन का लगा आरोप

रियो पैरालम्पिक के बारे में उन्होंने बताया कि वहां जाने से पहले भी मुझे खासी मशक्कत का सामना करना पड़ा। आज भी मुझे वह दिन याद है जब पैरालम्पिक के लिए उपलब्ध कोटे के लिए सेलेक्शन ट्रायल हो रहे थे। उस दौरान मुझसे 20 साल उम्र में कम अनमैरिड दो अन्य लड़कियां भी ट्रायल दे रही थी। इतना ही नहीं उन लोगों ने जैवलिन थ्रो फेंका तो वजन में मेरी बॉल से दो किलो हल्का था। वे मुझसे अधिक फिट थी। इसके बावजूद मैनें अपना बेस्ट परफामेंस किया और टीम में जगह बनाई। लेकिन अगले दिन उन खिलाडि़यों ने आरोप लगाया कि सेलेक्शन फेयर नहीं हुआ है और मुझे कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े। यहां से टीम के रवाना होने से तीन दिन पहले मामला निपट सका और मुझे जाने की मंजूरी मिल गई। उसके बाद जो कुछ है वह आपके सामने है। मेडल को छूकर दिखाते हुए उन्होंने कहा कि यह है उसका रिजल्ट। यह मेडल सिर्फ मेरा नहीं बल्कि पूरे हिन्दुस्तान का है।

टोक्यो ओलम्पिक की तैयािरयां शुरू

दीपा ने बताया कि अब मैंने टोक्यो पैरालम्पिक की तैयारियां शुरू कर दी है। इसके लिए रेग्यूलर प्रैक्टिस कर रही हूं। बताया कि सिर्फ शॉटपुट ही नहीं ड्राइविंग का भी उन्हें जबरदस्त शौक है। इसमें भी उन्होंने कई प्राइज जीते हैं। कहा कि देश के दिव्यांगों में बहुत टैलेंट भरा पड़ा है। बस कमी है तो मौके की और उन्हें ट्रेनिंग देकर सामने लाने की। ऐसे में दिव्यांगों के लिए भी सामान्य खिलाडि़यों की तरह ही ट्रेनिंग की सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दिव्यांगों को सिर्फ हॉस्पिटल और घर में ही प्रैक्टिस ना करवाएं। उन्हें खुले स्टेडियम में जाने की छूट मिले और वह खुद को सामान्य लोगों से जोड़ सकें। इससे वह खुश रहेंगे, इससे बेहतर रिजल्ट सामने आएंगे। बताया कि विदेशों में दिव्यांगों के खेलों पर काफी एडवांस तकनीकें आ गई हैं। साथ ही दिव्यांगों के खेलों पर खर्च भी सामान्य खिलाडि़यों की तुलना में अधिक है। मेरा शॉटपुट ही जहां 75 हजार रुपए का है वहीं मेरी व्हील चेयर ढाई लाख रुपए की है। ऐसे में सामान्य खेलों की तरह ही इसके आयोजन होने चाहिए और खिलाडि़यों को स्पांसर मिलने चाहिए।

बचपन से विकलांग नहीं थी दीपा

दीपा मलिक ने बताया कि नौ साल की उम्र में उनका ट्यूमर का आपरेशन हुआ और फिर वह सही हो गई। उसके बाद उन्होंने सामान्य जिंदगी जीनी शुरू कर दी। खेल से उन्हें इतना लगाव था कि वह राजस्थान में अपने कॉलेज में क्रिकेट टीम की कप्तान तो थी ही साथ ही बास्केटबॉल और स्वीमिंग भी करती थी। लेकिन 1999 में जब फिर से ट्यूमर का ऑपरेशन हुआ तब से वह व्हील चेयर पर हैं। कहा कि इसके बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और खुद की फिटनेस के लिए खेलना जारी रखा। एक दिन स्वीमिंग कर रही थी तभी किसी ने मुझे पैरालम्पिक खेलों के बारे में बताया। वहीं से फिर से स्पो‌र्ट्स कॅरियर की शुरुआत कर दी। बताया कि एथलेटिक्स में उन्होंने 2009 से खेलना शुरू किया था। मैंने जीवन में कभी हारना नहीं सीखा है। मेरी दो बेटियां भी हैं। मेरी एक बेटी भी दिव्यांग है। एक एक्सीडेंट में उसके सिर की चोट में क्लाटिंग हो गई थी जिसका असर उसके बाएं हिस्से पर अधिक पड़ा है। लेकिन हार नहीं मानी और उसे भी प्रैक्टिस करानी शुरू कर दी। अमेरिका में आयोजित एक प्रतियोगिता में मेरी बेटी को 100 और 200 मीटर के लिए मेडल मिला तो मुझे जैवलिन और शॉट पुट में। वहां पर हम मां बेटी ही ऐसे थे जिन्हें इस तरह से दो मेडल जीते थे।

दिव्यांगों के लिए बने स्पोट‌र््स अकादमी

यूपी के सीएम स्पो‌र्ट्स लविंग और खिलाडि़यों की बेहतरी के लिए लगातार प्रयत्‍‌नशील हैं। ऐसे में मैं उनसे यह जरूर कहना चाहती हूं कि वे दिव्यांग खिलाडि़यों के लिए एक ऐसा स्टेडियम या इंस्टीट्यूट जरूर बनवाएं जहां सिर्फ दिव्यांग खिलाड़ी ही प्रैक्टिस कर सकें। वहां पर उनके लिए डॉक्टर्स, कोच, इक्यूमेंट्स की बेस्ट सुविधाएं उपलब्ध हों।

व्हील चेयर क्रिकेट आज

सीआईआई की देखरेख में रविवार को व्हील चेयर क्रिकेट खेला जाएगा। माइक्रोलिट जिमखाना क्लब में होने वाले इस आयोजन में दीपा मलिक भी व्हील चेयर पर बल्लेबाजी करती नजर आएंगी।