लखनऊ (ब्यूरो)। बात वर्ष 1995 की है। तब मुझे पता चला कि लताजी गर्वनर हाऊस में रुकी हैं। हम तब संगीत नाटक अकादमी में कार्यक्रम अधिकारी थे। हमने भी उनसे मिलने का रास्ता निकाला। तब मेरे भाई डॉ। उपेंद्र कंचन गवर्नर हाउस में बतौर चिकित्सक तैनात थे। जैसे ही वह आईं तो उनके पैर छुए। हमें आशीर्वाद देते समय उनकी कोहनी मेरे सिर में लग गई। मेरा सिर सहलाते हुए तुरंत बोलीं, अरे लगी तो नहीं। इस दौरान उन्होंने पूछा कि क्या करते हो। बताया नाटक करते हंै, तो वे बोलीं अरे वाह। इसके बाद उन्होंने लखनऊ के बारे में पूछा। वहां चाय पर हुई यह मुलाकात हमेशा यादगार रहेगी। उनका जाना कला जगत के लिए एक अपूर्णिय क्षति है।
तरुण राज, सचिव संगीत नाटक अकादमी

जब उन्होंने गाना सुनाने के लिए बोला
जब लता जी लखनऊ एक सम्मान समारोह के लिए गवर्नर हाउस आई तो चाय के दौरान उनसे पांच मिनट का समय मिलने के लिए मिला। लेकिन, उनकी संग पहली मुलाकात ही हमेशा के लिए यादगार हो गई। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या करती हो तो बताया कि मैं भी गाना गाती हूं। इतना सुनते ही उन्होंने मुझसे कुछ सुनाने के लिए बोला। लेकिन, उनकी फरमाइश सुनकर मेरे हाथ-पांव फूल गए। क्योंकि उनके सामने मेरी बोली ही निकल रही थी। तब उन्होंने कहाकि घबराने की जरूरत नहीं है। केवल अपने गाने पर ध्यान दो और हमेशा अच्छा ही गाने की प्रेरणा दी। आज उनका जाना मेरी लिए एक बड़ी क्षति है।
अर्चना राज, गायिका

उनको स्टेट प्लेन से बुलाया गया
हम लोगों ने अवध सम्मान समिति बनाई थी। 1995 में लता जी को लखनऊ बुलाकर सम्मान दिया जाए। नौशाद साब के सहयोग से लखनऊ बुलाया गया। 9 अप्रैल 1995 को बेगम हजरत महल में आयोजन किया गया था। जब उनको आना था तब फ्लाइट की हड़ताल हो गई थी। इसके बाद गवर्नर मोतिलाल बोहरा से बात की, तो सीएम मुलायम ने स्टेट प्लेन से उनको लखनऊ बुलाया। जिसके बाद उनका सम्मान हो सका। लता जी लखनऊ में तीन दिन रही। इस दौरान उन्होंने यहां की तमाम इमारतों को देखा और तारीफ की। उनका इस तरह से जाना हर किसी को गमगीन कर गया है।
अतहर नबी, महामंत्री हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी