लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू के आई विभाग के प्रो। एसके भास्कर ने बताया कि ग्लूकोमा में विजन चला जाता है, जो वापस नहीं आता है। इसे काला मोतियाबिंद भी कहते हैं। जिन लोगों को डायबिटिज, थॉयरायड और बीपी जैसी समस्या हैं, उनमें ग्लूकोमा होने की आशंका अधिक होती है। समय पर इसका पता चल जाए तो नुकसान अधिक होने से रोका जा सकता है। वहीं पर्यावरण फैक्टर जैसे एयर पाल्युशन से भी यह बीमारी हो सकती है, क्योंकि यह आपकी आंखों के सेल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में आंखों की विशेष देखभाल करने की जरूरत है। साथ ही अगर परिवार में पहले किसी को ग्लूकोमा हो चुका है तो परिवार के अन्य सदस्य सजग हो जाएं, क्योंकि उनमें यह बीमारी होने की आशंका अधिक हो सकती है।

आंख बड़ी तो डॉक्टर को दिखाएं
डॉ। भास्कर के मुताबिक ग्लूकोमा बच्चों में भी होता है। अगर जन्म के बाद बच्चों की आंख बड़ी लगती हैं, तो बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाकर उसकी आंखों की जांच कराएं। यह ग्लूकोमा का लक्षण हो सकता है। हालांकि बड़े लोगों में यह लक्षण नहीं माना जाता है।

उम्र 40 से अधिक हो तो सजग हो जाएं
डॉ भास्कर के मुताबिक वैसे ग्लूकोमा का कोई लक्षण नहीं होता है। केवल धीरे-धीरे आंखों की रौशनी कम होने लगती है। ऐसे में अगर आपकी उम्र 40 वर्ष से अधिक है और महिलाओं में अर्ली मेनापॉज है तो समय-समय पर आंखों की जांच कराते रहना चाहिए। इस उम्र में ही ग्लूकोमा का खतरा अधिक रहता है।