लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू में प्रदेश समेत देश के अन्य राज्यों से मरीज आते हैं। मरीज यहां इस उम्मीद से आते हैं कि उनको यहां बेहतर इलाज मिल सकेगा। पर डॉक्टर द्वारा ट्रीटमेंट के लिए लिखी गई अधिकतर दवाएं यहां के हॉस्पिटल रिवाल्विंग फंड, जन औषधि केंद्र, अमृत फार्मेसी आदि में मिलती ही नहीं हैं। वहीं, डॉक्टर भी जेनरिक दवाएं न लिखकर ब्रांडेड कंपनी दवाएं लिखते हैं। जो निजी मेडिकल स्टोर के अलावा कहीं मिलती नहीं है। मरीजों को मजबूरी में महंगी दवा का बोझ उठाना पड़ता है, जिससे उनको काफी परेशानी होती है।

केस 1 - गोंडा निवासी सवा साल के अयांश वर्मा को सिर में पानी की समस्या है। वह केजीएमयू में दिखाने आये तो डॉक्टर ने जांच के बाद दवाएं लिख दीं। पर संस्थान में केवल एक ही दवा मिली, दूसरी दवाएं उन्हें बाहर से लेने को बोल दिया गया।

केस 2 - हरदोई निवासी 43 वर्षीय किरण देवी को पेट में समस्या है। वह केजीएमयू की मेडिसिन ओपीडी में दिखाने आईं, जहां डॉक्टर ने कई जरूरी दवाएं लिखीं। पर सभी दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ीं, जो उनको काफी महंगी पड़ीं।

केस 3 - बरेली निवासी शाहना को लंबे समय से सिरदर्द की समस्या थी। उन्होंने केजीएमयू के न्यूरोलॉजी ओपीडी में दिखाया। डॉक्टर की लिखी दवा संस्थान में नहीं मिली। मजबूरी में बाहर से दवा खरीदनी पड़ी।

बड़ी संख्या में आते हैं मरीज

केजीएमयू में रोजाना 5 हजार से अधिक मरीज आते हैं। यहां करीब 4 हजार से अधिक बेडों की संख्या है। यहां ओपीडी, आईपीडी और सर्जरी के दौरान बड़ी संख्या में दवाईयों की जरूरत पड़ती है। केजीएमयू संस्थान दवाईयों पर ही करीब 35-40 करोड़ रुपये सालाना खर्च करता है। वहीं, सरकार से भी 900 करोड़ से अधिक का बजट मिलता है। इसके अलावा एनएचएम की भी कई योजनाएं चलती हैं।

दवाईयों के लिए कई व्यवस्थाएं

केजीएमयू में मरीजों को दवाईयां देने के लिए कई व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं। इसमें 14 एचआरएफ स्टोर भी हैं। जहां पर 70 फीसदी तक दवाईयों पर छूट मिलती है। इसके अलावा अमृत फार्मेसी, जन औषधि केंद्र समेत अन्य मेडिकल काउंटर भी हैं। यहां डिस्काउंट पर मरीजों को दवाईयां उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है, पर हकीकत इसके उलट है। अधिकारियों के तमाम दावों के बावजूद संस्थान में सभी दवाईयां नहीं मिल पा रही हैं। हालांकि, एचआरएफ में आरसी के अनुसार ही दवाईयां मिलती हैं। इसके इतर लिखी दवाईयां नहीं मिलती हैं। अधिकारियों के मुताबिक, आरसी की संख्या को लगातार बढ़ाया जा रहा है, ताकि अधिक से अधिक सस्ती दवाएं मरीजों को उपलब्ध कराई जा सकें।

नहीं लिखते जेनरिक दवाएं

नेशनल मेडिकल काउंसिल ने ब्रांडेड दवाएं लिखने पर रोक लगा दी है। पर इसके बावजूद डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं, जबकि खुद पूर्व वीसी ने करीब डेढ़ साल पहले यह व्यवस्था लागू कर दी थी। पर इसके बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ है। जिसकी वजह से मरीजों को बाहर से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। इसके पीछे बड़ी वजह इन दवाओं की ब्रिकी पर मिलने वाला कमीशन भी होता है। निजी दवा कंपनियां उनकी दवाएं लिखने पर कई सुविधाएं भी उपलब्ध कराती हैं।

नहीं मिल रही कई दवाईयां

संस्थान में कार्डियोलॉजी से लेकर टीबी तक की दवाईयों की कमी चल रही है। यहां हेपेटाइटिस-सी के मरीजों को दवा नहीं मिल रही है। जिसकी वजह से उनको करीब 8-10 हजार तक की दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं। इतना ही नहीं, टीबी के सबसे खतरनाक प्रकार मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट एमडीआर टीबी की भी दवाएं नहीं मिल रही हैं। खासतौर पर क्लोफाजिक्सिन और साइक्लोसीरिन नहीं आ रही हैं। ये दवाएं मार्केट तक में नहीं मिल रही हैं। वहीं, आईसीयू में गंभीर मरीजों के लिए जरूरी अल्ब्यूरल दवा तक बाहर से लेनी पड़ रही है, जो 5-7 हजार रुपये तक में बिकती है।

दवाओं की कमी चल हैै। इसके लिए एचआरएफ को और मजबूत करने का काम किया जा रहा है, ताकि मरीजों को अधिक से अधिक सस्ती दवाएं उपलब्ध कराई जा सकें।

-प्रो। सोनिया नित्यानंद, वीसी, केजीएमयू