लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी समेत पूरे प्रदेश में नकली दवाओं का धंधा लगातार फल फूल रहा है। इस जानलेवा कारोबार में कुछ दवा व्यापारी और डॉक्टर्स भी शामिल हैं। प्रदेश में नकली दवाओं की सप्लाई हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान से मुख्य रूप से होती है। वहीं, यूपी के गाजियाबाद से भी इन दवाओं की पूरे प्रदेश में सप्लाई किया जा रहा है। यह पूरा कारोबार हवाला के जरिए किया जा रहा है।

6 हजार से अधिक दवा की दुकानें

लखनऊ केमिस्ट एसोसिएशन के प्रवक्ता विकास रस्तोगी के मुताबिक, राजधानी में करीब 8 हजार से अधिक दवा की दुकानें हैं। इसमें 3 हजार होल सेल की और 5 हजार के करीब रिटेल मेडिसिन की दुकानें हैं। वहीं, दवा कारोबारी सुरेश कुमार मिश्रा के मुताबिक, राजधानी में हर माह 300-350 करोड़ रुपये का दवा कारोबार होता है। इसमें 10-15 फीसदी की हिस्सेदारी नकली और डुप्लीकेट दवाओं का है, जोकि हमारे जैसे व्यापारियों के लिए बड़ी चिंता और मुसीबत की बात है।

यहां से आती हैं नकली दवाएं

एफएसडीए और एसटीएफ द्वारा नकली दवाओं का गोरखधंधा करने वाले सिंडिकेट में शामिल लोगों को लगातार पकड़ा जा रहा है। पकड़े गये लोगों से पूछताछ के मुताबिक, नकली दवाएं हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गाजियाबाद, मेरठ व राजस्थान आदि जगहों से सप्लाई की जा रही है। जहां नकली दवाओं को पैकेट में भर कर असली दवाओं के साथ भेजकर बेचा जा रहा है।

कंपनी के कर्मचारी होते हैं शामिल

ड्रग इंस्पेक्टर ब्रजेश कुमार यादव ने बताया कि यह पूरा कारोबार हवाला के जरिए होता है, जिसमें अधिकतर माल बिना बिल वाउचर के जाता है। पेमेंट को लेकर कोई लिखा-पढ़ी नहीं होती है। एक लाट में सेम बैच बनाकर भेजा जाता है। मैैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स जहां होती हैं वहीं से इसका खेल होता है। जांच में पाया गया कि जो बड़ी-बड़ी दवा कंपनियों के सेल्स कर्मचारी होते हैं, उनको सबकुछ पता होता है कि कहां से रॉ मेटेरियल आ रहा और कहां पैकिंग हो रही है, जिसको देखते हुए वे वहीं उसको छपवाते हैं। जिसके बाद स्टाकिस्ट को एक बैच में नकली दवा की खेप भेजी जाती है। कई बार कंपनी की शिकायत तो कई बार सूचना मिलने के आधार पर सैंपलिंग की जाती है, जिसमें नकली दवाएं पकड़ी जाती हैं।

डॉक्टर और इंजीनियर की भी भूमिका

जांच अधिकारियों के मुताबिक, नकली दवा के रैपर से लेकर पैकिंग करने तक में खासतौर पर एमबीबीएस और इंजीनियरिंग किए हुए लोग शामिल होते हैं। इसमें कौन सी दवा किस रैपर में पैक होगी और उस पर कौन सा बैच नंबर लिखा जाना चाहिए, यह सबसे जरूरी होता है, इसलिए इसे तय करने का काम डॉक्टर ही करते हैं। वहीं, नकली दवा को पैक करने के लिये पैकिंग मशीन चलाने की जिम्मेदारी इंजीनियर की होती है, ताकि असली व नकली पैकिंग का फर्क पता न चले। ऐसी नकली दवाएं आमतौर पर झोलाछाप डॉक्टर्स द्वारा लिखी जाती हैं।

यह होती है नकली दवा

केजीएमयू के कम्युनिटी मेडिसिन के डॉ। सौरभ कश्यप ने बताया कि नकली दवाएं वो होती हंै जिनकी एफिकेसी कम होती है। ऐसी दवाओं का बीमारी पर कोई असर नहीं होता है। ऐसी दवाओं के शरीर पर कई साइड इफेक्ट्स होते हैं। अगर नकली दवाओं के रैपर पर देखेंगे तो उसमें कई खामियां और गलतियां मिलेंगी। असल दवा के मुकाबले इनका साइज और शेप में भी अलग होता है।

राजधानी में करीब 8 हजार से अधिक दवा की दुकानें हैं। नकली दवा कारोबार से व्यवसाय पर बुरा असर पड़ रहा है। इसपर सख्ती से कार्यवाही होनी चाहिए।

-विकास रस्तोगी, दवा कारोबारी

नकली दवा के कारोबार में कंपनी के कर्मचारी ही शामिल होते हैं। कंपनी की शिकायत या सूचना मिलने पर कार्रवाई की जाती है। अधिकतर नकली दवाएं हिमाचल व उत्तराखंड आदि जगहों से आती हैं।

-ब्रजेश कुमार यादव, ड्रग इंस्पेक्टर

नकली दवा की कोई एफिकेसी नहीं होती है। इसके शरीर पर कई साइड इफेक्ट्स होते हैं। साथ ही इनका साइज और शेप भी अलग होता है।

-डॉ। सौरभ कश्यप, केजीएमयू