लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी को स्मार्ट बनाने के लिए हर तरफ फुटपाथ और सर्विस लेन को हाईटेक बनाया जा रहा है, लेकिन इस आधुनिकता की दौड़ में सबसे मुख्य पहलू, बारिश के पानी को संचित करना नजरअंदाज किया जा रहा है। जिसकी वजह से अंडरग्राउंड वॉटर लेवल तेजी से डाउन हो रहा है। हालांकि, कुछ प्वाइंट्स ऐसे भी हैं, जहां डिवाइडर्स पर पौधे लगाकर वर्षा जल संचयन का सफल प्रयास किया जा रहा है।

राजधानी में स्थिति चिंताजनक

राजधानी के अधिकतर इलाकों में अंडरग्राउंड वॉटर लेवल तेजी से गिर रहा है। इसके बावजूद बारिश के पानी को बचाने के लिए अभी तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। जिससे साफ है कि आने वाले दिनों में फैजुल्लागंज, नई जेल रोड समेत कई इलाकों में भीषण पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। शहर की 60 फीसदी इमारतों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी नहीं है। ऐसे में बारिश का पानी वेस्ट हो जाता है।

हर तरफ कंक्रीट के जंगल

वर्तमान स्थिति की बात करें तो राजधानी मेें हर साल 50 हजार नए मकान बन रहे हैं और वहां पर लगी हरियाली को साफ किया जा रहा है। जहां पर मकान बन रहे हैं, जाहिर है कि वहां पर हर तरफ कंक्रीट ही नजर आती है। ऐसे में बारिश का पानी नैचुरल तरीके से बच पाना काफी मुश्किल हो जाता है।

'स्मार्ट वर्क' पड़ रहा भारी

इस समय राजधानी में कैसरबाग समेत कई एरियाज में स्मार्ट सिटी के अंतर्गत डेवलपमेंट प्रोजेक्ट इंप्लीमेंट किए जा रहे हैं। कई योजनाएं फुटपाथ और सर्विस लेन सौंदर्यीकरण से जुड़ी हुई हैं। हम सौंदर्यीकरण प्रोजेक्ट्स के खिलाफ नहीं है लेकिन इस बात का जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि जो भी फुटपाथ और सर्विस लेन डेवलपमेंट किए जाएं, उसे पूरी तरह से आरसीसी बेस्ड न रखा जाए। अगर ऐसा किया जाता है तो साफ है कि जमीन बारिश का पानी नहीं सोखेगी बल्कि यह नाले-नालियों में बह जाएगा। हालांकि, अभी ज्यादातर प्वाइंट्स पर जो सौंदर्यीकरण के कार्य किए जा रहे हैं, उनमें आरसीसी संबंधी बिंदु को नजरअंदाज किया जा रहा है। जिसकी वजह से बारिश का पानी वेस्ट हो रहा है। इस तरफ जिम्मेदारों को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है, जिससे बारिश का पानी सेव हो सके।

यहां उठाए गए बेहतर कदम

राजधानी में कई ऐसे डिवाइडर्स भी डेवलप किए गए हैं, जिन पर पौधे रोपित किए गए हैं। ऐसे डिवाइडर्स लोहिया पथ, शहीद पथ, कुकरैल रोड, गोमतीनगर इत्यादि में हैं। दोनों तरफ रोड्स हैं और बीच में हरियाली से भरा डिवाइडर बारिश के पानी को सेव करने में अहम भूमिका निभाता है। एलडीए की ओर से प्लानिंग की जा रही है कि अपनी सभी योजनाओं में बारिश के पानी को सेव करने के लिए हाईटेक तकनीक अपनाई जाए। ऐसा ही एक प्रयोग एलडीए की ओर से बसंतकुंज योजना में तैयार पीएम आवास में भी किया गया है। इसके साथ ही अन्य योजनाओं में बारिश के पानी को सहेजने के लिए एक्शन प्लान तैयार कर लिया गया है और इसे जल्द ही इंप्लीमेंट किया जाएगा।

पब्लिक को भी करना होगा जागरूक

जनता की ओर से भी बारिश के पानी को बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। घरों के बाहर आरसीसी फुटपाथ क्रिएट कर दिया गया है। जिसकी वजह से घरों के सामने भी बारिश का पानी सीधे नाले-नालियों में बह जाता है। कई स्थानों पर तो नाले-नालियों पर ही कब्जा हो गया है, जिसकी वजह से बारिश का पानी पूरी तरह से वेस्ट हो जाता है। ऐसे में साफ है कि जिम्मेदार विभागों को जनता को भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए जागरूक करना होगा।

फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं

यह साफ है कि राजधानी में अधिकांश इलाकों में बारिश के पानी को सेव करने की कोई व्यवस्था नहीं है। एक तो बारिश वैसे भी कम हो रही है और जब होती है तो बहुमूल्य पानी नाले-नालियों में बह जाता है। अगर इस पानी को बचा लिया जाए तो साफ है कि तेजी से गिरते अंडरग्राउंड वॉटर लेवल को काफी हद तक बचाया जा सकता है और जनता को राहत मिल सकती है।

बारिश की क्वांटिटी से ज्यादा मिट्टी का रोल अहम

अंडर ग्राउंड वाटर रिचार्ज के लिए बारिश की क्वांटिटी से ज्यादा उस क्षेत्र में मिट्टी कैसी है, इसका अधिक असर पड़ता है। कई जगह बारिश बहुत अधिक होती है, लेकिन वहां की मिट्टी बलुई न होने के कारण वहां वाटर रिचार्ज नहीं हो पाता। बारिश के पानी से अंडर ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने का सबसे अच्छा माध्यम नदियां व तालाब हैं। जैसे लखनऊ शहर में गोमती नदी बहती है, बारिश से पहले उसका डिसिल्टेशन नहीं किया गया, ऐसे में वह पानी रिचार्ज नहीं हो रहा है। पानी को रिचार्ज करने के लिए कुछ प्रमुख बिंदु हैं

-बारिश का पानी एक जगह पर काफी समय तक जमा होना चाहिए।

-बारिश के पानी के बहने की गति कम हो।

-उस जगह की मिट्टी बलुई होनी चाहिए, जिससे पानी का अवशोषण हो सके।

-बारिश से पहले नदियों का डिसिल्टेशन हो, जिससे वर्षा जल संचयन किया जा सके।

-प्रो। ध्रुव सेन सिंह, हेड, भूगर्भ विज्ञान विभाग, लखनऊ यूनिवर्सिटी