लखनऊ (ब्यूरो)। पीजीआई में कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी आफ इंडिया द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय हार्ट फेल्योर सम्मेलन में दिल्ली से आये डॉ सितारमन राधा कृष्णन ने बताया कि अगर जेनेटिक्स के कारण बच्चों में दिक्कत होती है तो उसका एकमात्र उपाय हार्ट ट्रांसप्लांट ही होता है। बड़ों के मुकाबले बच्चों में हार्ट ट्रांसप्लांट बेहद कम होता है, क्योंकि बच्चों में समय पर इलाज मिलने से हार्ट अपने आप रिकवर हो करने लगता है।

बड़ों के मुकाबले अंतर अलग
हार्ट फेल बच्चों में भी होता है। यह बड़ों के मुकाबले बेहद अलग होता है। इसका कारण दिल में सुराख होना, दिल का वॉल्व खराब होना या फिर जेनेटिक्स कारण आदि भी हो सकते हैं। अगर, समय रहते बच्चों में इस समस्या का पता लग जाये तो उसे ट्रीट किया जा सकता है।

बीपी-शुगर की दवा समय लें
हैदराबाद से आये डॉ ए श्रीनिवास कुमार ने बताया कि हार्ट ट्रांसप्लांट हर कोई नहीं कर सकता है लेकिन, हार्ट फेल न हो इसपर ध्यान देना चाहिए। हार्ट फेल होने के बाद इंसान बच भी जाये तो अधिक जीवित नहीं रह सकता है। ऐसे में बीपी, शुगर या फिर हार्ट की नसों में ब्लाकेज का समय पर इलाज जरूरी है। अगर मरीज बीपी व शुगर की दवा समय पर लेता रहे, तो उससे काफी हद तक हार्ट फेल्योर को कंट्रोल किया जा सकता है।

स्पेशल क्लीनिक की जरूरत
पीजीआई में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अंकित साहू ने बताया कि वेस्ट में हार्ट फेल्योर के मामले के लिए अलग से स्पेशल क्लीनिक और ट्रेंड नर्सेज होती है। इंडिया में अभी ऐसी कोई व्यवस्था है। जबकि, स्पेशल क्लीनिक के साथ ट्रेंड स्टॉफ होना बेहद जरूरी है ताकि वो दवा के बाद केयर, काउंसलिंग, दवा आदि का ध्यान रखा जा सके।