- लखनऊ में उर्दू में बोलने से हिचके थे दिलीप कुमार

anuj.tandon@inext.co.in

LUCKNOW: मरहूम दिलीप कुमार हमेशा उर्दू में ही तकरीर करते थे। उर्दू पर उनकी काफी अच्छी पकड़ थी, लेकिन जब उन्हें राजधानी में जश्न-ए-दिलीप कार्यक्रम में बुलाया गया था तो उन्होंने बेबाकी से यहां कहा था कि, यहां तो उर्दू में तकरीर करना बेहद मुश्किल काम है। यहां की भाषा, तहजीब और कल्चर काफी मशहूर है। यहां के उर्दू और तहजीब की धरोहर वालों के बीच मुझे उर्दू में बात करने पर हिचक महसूस होती है। यह बात किसी और ने नहीं, साहित्यकार अतहर नबी ने बताई, जिनके बुलावे पर ही दिलीप कुमार पांच बार राजधानी आए थे।

पहुंच गए क्रिकेट के मैदान में

अतहर नबी ने बताया कि 1979 में दिलीप कुमार को लखनऊ बुलाया था। उस समय केडी सिंह बाबू स्टेडियम में सीएम रिलीफ फंड में सहयोग के लिए एक दोस्ताना क्रिकेट मैच रखा गया था। उस मैच में उनके अलावा प्राण, अरुण गोविल, आशा सचदेव, सायरा बानो, प्रेम चोपड़ा समेत अनेक दिग्गज कलाकार भी शामिल हुए थे। उनकी एक झलक देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी थी।

दो मिनट लेट पहुंचे तो मांगी माफी

अतहर नबी ने बताया कि दिलीप कुमार सादगी पसंद व्यक्ति थे और उनका उठने-बैठने का अंदाज काफी जुदा था। एक बार मेरे कहने पर उस समय के गवर्नर मोतीलाल वोहरा ने उन्हें गवर्नर हाउस में रुकवाया। सुबह उनको गवर्नर से मिलना था लेकिन वे लेट हो गए तो गैलरी में दौड़ते हुए किसी तरह वहां पहुंचे और उनसे माफी मांगते हुए बोले, देर से उठने के कारण लेट हो गया। उन्होंने दो मिनट लेट होने पर भी गवर्नर से माफी मांगी और कहा, उनसे प्रोटोकॉल का उल्लंघन हो गया है। इनकी इस सादगी के कायल गवर्नर भी हो गए थे।

शेयर किए थे अपने अनुभव

वहीं फैशन डिजायनर अस्मा हुसैन ने बताया कि दिलीप कुमार उनके इंस्टीट्यूट के कन्वोकेशन प्रोग्राम में 1998 में आए थे। वे जमीन से जुड़े इंसान थे। उनके साथ बात करने में लगता ही नहीं था कि वे एक बहुत बड़े स्टार हैं। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने स्टूडेंट्स से कहा था कि मेहनत और परफेक्शन बड़ी चीज है। इसी से कामयाबी मिलती है। इस दौरान उन्होंने बताया था कि उनको कोई स्टार बनाने नहीं आया था। मैं बाम्बे के एक फाइव स्टार होटल में आया था। वहां एक फिल्म डायरेक्टर ने उनको देखते ही फिल्म का ऑफर कर दिया। मैंने इस बारे में अपने अब्बू को नहीं बताया क्योंकि अगर उन्हें बताता तो जूते पड़ते। यही कारण है कि मैं फिल्म लाइन में नाम बदलकर आया। अस्मा हुसैन ने बताया कि उनके इंतकाल से एक महान युग का अंत हो गया है।

बाक्स

दिलीप साहब को कबाब बहुत पसंद था

दिलीप कुमार को कबाब खाने का बेहद शौक था। वो जब भी लखनऊ आते थे तो टुंडे के कबाब जरूर खाते थे। टुंडे कबाबी के ओनर मो। उस्मान ने बताया कि वे कभी मेरे यहां आए तो नहीं लेकिन उन्होंने घर बुलाकर हमसे मुलाकात की थी। उनको हमारे यहां के कबाब काफी पसंद थे। उस समय मैंने उनके साथ एक तस्वीर भी खिंचवाई थी, जिसे मैंने काफी संभालकर रखा हुआ है।