लखनऊ (ब्यूरो)। बच्चों में अक्सर घर में तोडफ़ोड़ या गुस्सा करना, किसी काम में मन न लगाना, ज्यादा एक्टिव रहना आदि जैसा बर्ताव देखने को मिलता है, जिसे पेरेंट्स बच्चों की शरारत समझकर नजरअंदाज कर देते है। पर एक्सपट्र्स का कहना है कि कम उम्र में बच्चों की इन हरकतों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ऐसे बच्चे अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव डिसआर्डर (एडीएचडी) से ग्रसित हो सकते है, जिसके ट्रीटमेंट के लिए मनोचिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। इसको लेकर पीजीआई स्थित सेंटर ऑफ बायो मेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर) के साइंटिस्ट डॉ। उत्तम कुमार ने एआई बेस्ड माड्यूल बनाया है, जिससे समय रहते बच्चों में एडीएचडी की समस्या का पता लगाकर उसका ट्रीटमेंट कराया जा सकता है।

एआई बेस्ड नया माड्यूल तैयार किया

सीबीएमआर के निदेशक प्रो। आलोक धावन के मुताबिक, बच्चा जब अमूमन 7-8 वर्ष का हो जाता है तो डॉक्टर उससे कई सवाल-जवाब करते हैं। उसी आधार पर तय किया जाता है कि उसे एडीएचडी है कि नहीं। इसी को लेकर केजीएमयू के चाइल्ड साइकियाट्री विभाग के साथ मिलकर काम किया, जिसमें अलग-अलग उम्र के करीब 13-14 बच्चों का फंक्शनल एमआरआई कराया गया। इसमें देखा गया कि न्यूरान कहां-कहां कनेक्ट होते है। उसमें जो बदलाव आते हैं, उसी को देखा जाता है। उसी आधार पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) बेस्ड माड्यूल बनाया गया। इस नए सिस्टम की मदद से बच्चा अगर 3 वर्ष का भी है तो एमआरआई करके एडीएचडी के बारे में बता सकते हैं। अगर समय रहते इस समस्या के बारे में न पता चले तो बड़े होने पर बच्चों की देखभाल करना और कुछ सिखाना बेहद मुश्किल हो जाता है।

ऐसे करें इलाज

एडीएचडी के इलाज के लिए एक्सरसाइज और दवाएं होती हैं। दवा इसलिए दी जाती है ताकि वे शांत हों। इसके अलावा कंप्यूटर और मेडिटेशन टाइप बेस्ड एक्सरसाइज होती हैं ताकि माइंड एक जगह फोकस हो। इसके लिए पेरेंट्स को साथ देना चाहिए ताकि वे बच्चों पर पूरी नजर रख सकें कि वे सभी एक्सरसाइज पूरी तरह से करें।

इन लक्षणों पर रखें नजर

- हाइपरएक्टिव

- आक्रामकता

- नियंत्रण की कमी

- चिड़चिड़ापन

- ध्यान केंद्रित करने में समस्या

- काम में मन न लगना