- वीडियो देख पहचान लिया अपना घर

- माता-पिता ने ली राहत की सांस

LUCKNOW: सोशल मीडिया की लाख बुराइयां हो, लेकिन उसकी अच्छाइयां भी बहुत है। 70 के दशक के फिल्मी दौर में हीरो अपनी मां से बिछड़ जाता था तो वो मंदिर में मिलता था या तो मेले में, लेकिन आज के आधुनिक समय में सोशल मीडिया उस भूमिका को निभा रहा है। ऐसा ही एक मामला सामना आया है जिसमें यू ट्यूब पर चल रहे वीडियो को देखकर लड़के ने अपने घर को पहचान लिया। इस मीडिया के माध्यम से एक परिवार अपने बिछुड़े हुए बेटे से मिल सका।

समृद्ध ने गुडंबा थाना पहुंचाया मगर

पिछले दिनों थाना गुडंबा क्षेत्र में इंटीग्रल यूनिवर्सिटी के पास एक दिव्यांग बालक दस वर्षीय यंश छात्र समृद्ध मिश्रा को मिला था, जो बोलने में असमर्थ था। समृद्ध ने अपने दोस्तों की सहायता से बच्चे को थाना गुडंबा पहुंचा दिया और चाइल्डलाइन के नंबर 1098 पर सूचना दी। इसके बाद चाइल्डलाइन टीम सदस्य अमरेंद्र कुमार ने काउंसिलिंग के दौरान बच्चे से कुछ प्रश्नों का उत्तर लिखित माध्यम से पूछे, जिसमें बालक ने अपना व माता-पिता का नाम लिखा। साथ ही अपने भाई-बहनों और पते में उर्दू बाजार, जौनपुर निवासी लिखा। इसके बाद भी काफी प्रयास के बाद भी बालक के पते के बारे में कोई भी जानकारी नही मिली।

यू ट्यूब में मिला वीडियो

फिर गूगल पर पता खोजते हुए उर्दू बाजार, जौनपुर की एक यू टयूब वीडियो मिली। जिसको बालक को दिखाया गया तो बालक ने उर्दू बाजार की दुकानें, होटल व पीएनबी एटीएम को देखकर इशारे से अपने घर को बताया। ये सूचना स्थानीय पुलिस चौकी के माध्यम से बालक के परिजनों तक पहुंचाई गई। जिसके बाद बालक के पिता विनोद और दादी संतोष देवी चाइल्डलाइन कार्यालय पहुंचकर अपने बेटे की शिनाख्त की और उसको साथ ले गये।

कई बार हो चुका है गुम

लड़के के पिता विनोद विश्वकर्मा जो पेशे से मैकेनिक हैं। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी दो बार लापता हो चुका है, लेकिन इस बार वो यहां कैसे चला आया इसका अंदाजा तो हम लोगों ने भी नहीं लगाया था। हर बार एलान करवाने पर मिल जाता था। जब पुलिस वाले हमारे घर आये और बताया तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

अभी एक मुसीबत और

चाइल्ड लाइन के केंद्र समन्वयक अजीत ने बताया कि सीडब्लूसी भंग हो गई जिसका लेटर हमें आज ही मिला। ऐसे में लड़के को परिवार वालों को देने के लिए एक आर्डर की जरुरत होती है जो सीडब्लूसी ही देता है, लेकिन उसके भंग हो जाने के बाद बस जिलाधिकारी के पास अधिकार होता है निर्णय लेने का। ऐसे में जब तक जिलाधिकारी की अनुमति नहीं होगी, हम बच्चे को परिवार वालों को नहीं सौंप सकते।