लखनऊ (ब्यूरो)। बचपन की छोटी-छोटी नोक-झोंक के कारण ही भाई-बहन का रिश्ता हमेशा गहरा और मजबूत बना रहता है। एक-दूसरे को तंग करने के साथ ही परेशानी में उनके साथ खड़े रहने से हौसला मिलता है कि सब ठीक हो जाएगा। इसी भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूती देता है राखी का त्योहार। रोली-चावल का टीका, जायकेदार मिठाइयां और रंग-बिरंगी राखियों से सजी थाल और मन में भाई के लिए खुशियों की दुआएं इस त्योहार को और खास बना देती हैं। शहर की कई ऐसी हस्तियां हैं जिनके लिए रक्षाबंधन का त्योहार ऐसी ही कई यादों के साथ आता है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने ऐसी ही हस्तियों से बातकर जाने कुछ प्यारे किस्से

राखी चुनना सबसे भावुक क्षण होता था

लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी कहती हैं कि रक्षाबंधन से मेरा हमेशा से ही भावनात्मक लगाव रहा है। राखी के त्योहार पर भाईयों को राखी बांधना, फिर उनसे उपहार लेना, इसका हम साल भर इंतजार करते थे। रक्षाबंधन में मुझे अपने भाई के लिए राखी चुनना सबसे ज्यादा पसंद था। बाजार में जाकर सबसे सुंदर राखी चुनना, अगले दिन उसे भाई की कलाई पर बांधना। फिर भाई की कलाई पर देखना कि किसने कैसी राखी बांधी या किसकी राखी सबसे सुंदर है। आज भी मेरी कोशिश होती है कि भाई के लिए सबसे सुंदर राखी चुनूं। साथ ही रोली को लेकर एक शरारत हम अक्सर किया करते थे। भाई को लंबा टीका लगाते थे, जो उन्हें बहुत पसंद नहीं था। फिर भी शरारत में जानबूझ कर ऐसा करते थे। मां का भी सख्त आदेश होता कि टीका हो गया तो छुटेगा नहीं। भाई और खीझ जाते थे। ऐसी ही यादें हैं, जो भाई-बहन के रिश्ते को और सुंदर बना देती हैं।

सबसे पहले मुझसे राखी बंधवाने आता है

थियेटर आर्टिस्ट मृदुला भारद्वाज कहती हैं कि रक्षाबंधन पहले पारिवारिक त्योहार हुआ करता था। जो अब व्यक्तिगत हो गया है। मुझे याद है कि जब मैं छठी क्लास में पढ़ती थी तो हम लोग किराए के मकान में रहते थे। मकान मालिक की पत्नी को हम चाची बुलाते थे। पहले आत्मीयता ज्यादा थी, सो रिश्तों में एक लचक होती थी। चाची को दीपावली में एक बेटा हुआ था। भाई दूज में उन्होंने मुझसे कहा कि क्या अपने भाई का टीका नहीं करोगी? बस फिर क्या, मैं हॉस्पिटल जाकर उसका टीका कर आई। उस दिन के बाद से वो हर रक्षाबंधन और भाई दूज को सबसे पहले मुझसे राखी और टीका करवाता है।

भाई या बहन के न होने से मिलते हैं एडिशनल रिश्ते

एक्टर व सीडीआरआई के पूर्व वैज्ञानिक अनिल रस्तोगी का कहना है कि मेरी कोई रियल सिस्टर नहीं थी। एक कजिन थीं, जो हर साल रक्षाबंधन पर मुझे राखी बांधने आती थीं। कभी-कभी मैं सोचता था कि भाई या बहन के न होने से आपको एडिशनल रिश्ते मिल जाते हैं। मेरी वह बहन मुझसे बड़ी थीं, उनसे राखी बंधवाने के लिए मैं काफी इंतजार किया करता था।

साल भर की डांट पर 1 दिन का प्यार भारी

एक्टर श्रीधर दुबे का कहना है कि मेरी कोई रियल सिस्टर नहीं हैं। पर हर रक्षाबंधन मेरे पापा बुआ के घर राखी बंधवाने जाते थे। मेरी दोनों दीदी मुझसे बड़ी थीं, ऐसे में जब भी मिलतीं, पढ़ाई को लेकर खूब डांट लगाती थीं। पर रक्षाबंधन के दिन प्यार से बैठा कर राखी बांधना, मिठाई खिलाना और जिस प्यार से वे मुझे देखती थीं, सारी डांट छूमंतर हो जाती थी। इस साल मैं उनके साथ रक्षाबंधन नहीं मना पाऊंगा, इसका दुख है। पर मेरी बहनें हर बार मुझे प्यार और आशीर्वाद के रूप में राखी भेजती हैं।