लखनऊ (ब्यूरो)। कानपुर में एक निजी स्कूल में क्लास थर्ड के स्टूडेंट ने सुपरहीरो की नकल करते हुए स्कूल की पहली मंजिल से छलांग लगा दी, जिसकी वजह से वह बुरी तरह घायल हो गया। इस घटना से एकबार फिर बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो गये हैं। साइकियाट्रिस्ट की माने तो छोटे बच्चों के लिए रियलिटी और फिक्शन में अंतर करना मुश्किल हो जाता है। जिसकी वजह से वे सुपरहीरो या अपने फेवरिट कार्टून कैरेक्टर की नकल करने लगते हैं। कई बार वे खुद को नुकसान पहुंचा लेते हैं। ऐसे में पैरेंट्स का रोल सबसे अहम हो जाता है। वे बच्चों को रियलटी और फिक्शन का अंतर समझा सकते हैं।

बच्चे उतारने लगते हैं नकल

केजीएमयू के साइकियाट्री विभाग में चाइल्ड साइकियाट्रिस्ट डॉ। अमित आर्य ने बताया कि छोटे बच्चे आजकल कार्टून और सुपरहीरो वाला कंटेंट देखकर बेहद इंप्रेस हो जाते हैं और उनके जैसा बनने की कोशिश करने लगते हैं। वे रियलिटी और फिक्शन में फर्क नहीं कर पाते और घर या अन्य जगहों पर उनकी नकल करने की कोशिश करते हैं। ओपीडी में ऐसे कई बच्चे आते हैं जो कार्टून कैरेक्टर को जैसा करता देखते हैं, वैसी ही हरकतें करने लगते हैं। उनको लगता है कि अगर वह कैरेक्टर ऐसा कर सकता है तो वो भी ऐसा कर सकते हैं। ऐसे में कई बार बच्चे खुद को नुकसान भी पहुंचा लेते हैं।

पैरेंट्स का रोल सबसे अहम

डॉ। अमित आर्य आगे बताते हैं कि आज के दौर में हर बच्चे के हाथ में मोबाइल है। जहां वे दुनियाभर की चीजें देख रहे हैं। ऐसे में पैरेंट्स का रोल बेहद अहम हो जाता है। पैरेंट्स बच्चों को बतायें कि यह वास्तविकता नहीं बल्कि फिक्शन है। केवल एक कहानी है। उनकी नकल करने से चोट लग सकती है। किसी को मारने से उसको चोट लग सकती है और उसे दर्द हो सकता है। इसके अलावा स्क्रीन टाइम और पैरेंट्स सुपरविजन बेहद जरूरी है। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो बच्चे फिक्शन को ही रियल मानने लगेंगे। इसके अलावा स्कूल में टीचर्स भी बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें।

पैरेंट्स इन बातों का रखें ध्यान

- बच्चों का इंटरनेट यूज कम कराएं, उन्हें अपने सामने ही इसे यूज करने दें

- यह जरूर देखें कि बच्चे मोबाइल या टीवी का यूज एजुकेशनल पर्पज या गेम्स के लिए कर रहे हैं या अडल्ट कंटेंट देखने के लिए

- बच्चे के साथ बैठकर देखना बेहद जरूरी

- बच्चों को सिम्पेथी और हम्बलनेस सिखाएं

- बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम्स स्पेंड करें

- उनको कभी अकेले न छोड़ें

- आईक्यू असेसमेंट कराना बेहद जरूरी है

- व्यवहार में बदलाव होने पर डॉक्टर को जरूर दिखाएं

स्कूल परिसर में जो भी घटना होती है, उसकी पूरी जिम्मेदारी स्कूल की है। बच्चों की सुरक्षा से बड़ा कोई मामला नहीं हो सकता। छोटे बच्चों की क्लास के बाहर या पूरे कॉरिडोर में आया या गार्ड को मौजूद होना चाहिए। इसके अलावा स्कूल फर्स्ट फ्लोर को छोड़कर बाकी फ्लोर पर नेट लगा सकता है, जिससे कोई बच्चा गिरे नहीं।

-राकेश कुमार सिंह, अध्यक्ष, अभिभावक मंच

इस तरह की घटना पैरेंट्स व स्कूल दोनों के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए। इस तरह की घटनाएं रोकने लिए स्कूलों को कॉरिडोर में लगी रेलिंग या बाउंड्री को ऊंचा रखना चाहिए। रेलिंग ऐसी हो जिससे बच्चे के गिरने का रिस्क न हो। इसके अलावा स्कूल प्रशासन को दूसरे सेफ्टी मेजर्स भी अपनाने चाहिए। पैरेंट्स भी बच्चों को घर से समझा कर भेजें कि स्कूल में खुद को सुरक्षित रखें। कोई ऐसा कदम न उठाएं जिससे उन्हें कोई परेशानी हो।

-रूप कुमार शर्मा, अभिभावक व अध्यक्ष मानवाधिकार जनसेवा परिषद

स्कूल की बिल्डिंग नॉर्म्स के अनुसार बनी होनी चाहिए। सीबीएसई स्कूलों में इस तरह की घटनाएं कम होती हैं। स्कूल मैनेजमेंट को भी बच्चों को टीचिंग स्टाफ के संरक्षण में रखना चाहिए। अगर टीचिंग स्टाफ अवेलेबल न हो तो वहां ग्रुप डी को जरूर होना चाहिए। स्कूल यह सुनिश्चित करें कि हर फ्लोर पर ग्रुप डी स्टाफ तैनात रहें। वे एक्टिव और ट्रेंड भी होने चाहिए।

-रिचा खन्ना, प्रिंसिपल, वरदान इंटरनेशनल अकेडमी

बच्चे कई बार खेल-खेल में इस तरह की गलतियां कर देते हैं। ऐसे में स्कूल मैनेजमेंट को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है। हमारे यहां लंच टाइम में भी टीचर्स की ड्यूटी क्लासरूम, कॉरिडोर और फील्ड में रहती है। इनके अलावा हेड बॉय, हेड गर्ल और हाउस लीडर भी फील्ड पर ही होते हैं। कोरिडोर को भी हमने जाल से बंद कर रखा है। मुझे लगता है कि सभी स्कूलों को सेफ्टी मेजर्स को लेकर बहुत सतर्क और गंभीर रहने की जरूरत है। बच्चों की सुरक्षा सबसे अहम है।

-शर्मिला सिंह, प्रिंसिपल, पायनियर मॉन्टेसरी स्कूल एल्डिको शाखा