लखनऊ (ब्यूरो)। इंडियन सोसाइटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के यूपी चैप्टर द्वारा शनिवार को दो दिवसीय सेमिनार का शुभारंभ किया गया, जिसमें देशभर के गैस्ट्रो एक्सपर्ट शामिल होने पहुंचे। कार्यक्रम में चीफ गेस्ट डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने बताया कि इस तरह के प्रोग्राम समाज के लिए लाभदायक होते हैं। इसमें से जो सार निकल कर आये, वो आयोजन समिति मुझे दे, जिससे सरकार द्वारा उसपर काम किया जा सके। सरकार हर कदम पर आपके साथ है। वहीं, आयोजन सचिव डॉ। सुमित रूंगटा ने बताया कि लोगों में खासतौर पर युवाओं में पेट, आंत और लिवर संबंधी समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसी को देखते हुए यह कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया है, ताकि एक-दूसरे के अनुभवों से सभी कुछ सीख सकें।

वेस्टर्न कंट्री की बीमारी भारत में बढ़ी
अमेरिका जैसी वेस्टर्न कंट्री में होने वाली अल्सरेटिव कोलाइटिस अब भारतीयों में भी अधिक होने लगी है। जिसे आईबीडी भी कहते है। इसकी वजह से बड़ी-छोटी आंत में अल्सर होने लगता है। यह एक जीवनभर चलने वाली समस्या है। जो खासतौर पर युवाओं, जो 20-40 वर्ष के बीच के हैं, में ज्यादा हो रही है। इसके इलाज के लिए स्टेरायड और इंजेक्शन आदि दिया जाता है। जिसका सालाना खर्च 3-4 लाख रुपये तक आता है। दवाइयों की वजह से इम्युनिटी भी कमजोर होती है। पर एडवांस ट्रीटमेंट के तहत अब फेकल माइक्रोबियल ट्रांसप्लांट किया जा रहा है। जिसमें हेल्दी इंसान से फेकल लेकर उसे कोलोनोस्कोपी की मदद से मरीज के अंदर डाला जाता है। जिससे अच्छे बैक्टिरिया मिले और इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सके।
-डॉ। विनीत आहूजा, एम्स, नई दिल्ली

बढ़ रही पैनक्रियाज सूजन की समस्या
आजकल खराब लाइफस्टाइल की वजह से लोगों में पैनक्रियाज सूजन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जिसकी वजह से पाचन जूस पैनक्रियाज में लीक होने लगता है और यह जहां-जहां फैलता है उस हिस्से को पचाने का काम करता है। खासतौर पर छोटी-बड़ी आंत और पेट की कुछ हिस्सों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इसकी दो बड़ी समस्या है, पहला शराब का सेवन और दूसरा गॉल ब्लैडर में स्टोन। युवा वर्ग शराब का सेवन अधिक करता है इसलिए 20-30 साल की उम्र के युवाओं में यह ज्यादा देखने को मिलता है। वहीं, गॉल ब्लैडर का स्टोन जब पित्त की नली में फंस जाता है तो यह समस्या पुरुषों के मुकाबले 30-40 वर्ष की महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलता है। इसलिए इस समस्या से ग्रसित लोगों को थोड़ा-थोड़ा खाना कुछ अंतराल के बाद देना चाहिए। साथ ही एंटीबायटिक दवा नहीं देनी है, क्योंकि हमें बैक्टिरिया को मारना नहीं है। लोगों को अपने खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
-डॉ। सुनील दधीच, एसएम मेडिकल कॉलेज, जोधपुर

20 फीसदी एनसीजीएस से ग्रसित
लोगों में गेंहू, राई (सरसों वाली नहीं) और जौ के सेवन से कई तरह की समस्याएं हो रही हैं। इसे तीन अलग-अलग समस्याओं में बांटा गया है। पहला, गेंहू से एलर्जी के चलते लोगों की स्किन में रैशेज, सांस की समस्या या फिर बेकर्स अस्थमा की समस्या देखने को मिलती है। यह समस्या करीब 1 फीसदी लोगों में होती है। दूसरा, सीलिएक रोग होना। इसमें, गेंहू, राई और जौ से आंतों को नुकसान पहुंचने लगता है। जिसकी वजह से लूज मोशंस, पेट में दर्द, हाइट कम रहना, खून की कमी, गैस आदि की समस्या होती है। यह समस्या हर सौ में से 1 को होती है। इसके लिए ग्लूटेन फ्री डायट लेने की सलाह दी जाती है। अगर इन दोनों का इलाज न किया जाये तो मौत तक हो सकती है। तीसरी समस्या, नॉन सीलिएक ग्लूटेन सेंसिटिविटी (एनसीजीएस) होती है। जो हर 100 में करीब 20 लोगों में देखने को मिलती है। इसमें आंत तो डैमेज नहीं होती, लेकिन कई समस्याएं जैसे पेट दर्द, पेट फूलना, गैस, खट्टी डकार आना, कब्ज, लूज मोशंस, माइल्ड एनीमिया, एन्जायटी और फॉगी माइंड आदि की समस्या देखने को मिलती है। वहीं, जांच की बात करें तो एलर्जी के केस में आईजीएम टेस्ट, सीलिएक में ब्लड टेस्ट और छोटी आंत का एंडोस्कोपी से बायोप्सी किया जाता है। पर एनसीजीएस के लिए कोई टेस्ट नहीं होता है। इसमें गेंहू का सेवन करीब 6 सप्ताह के लिए बंद कराया जाता है। उसी के आधार पर आगे का ट्रीटमेंट किया जाता है। यह समस्या लोगों में ज्यादा बढ़ रही है।
-डॉ। देवेश प्रकाश यादव, प्रो। एंड हेड गैस्ट्रो विभाग, बीएचयू

मेक इन इंडिया ने खर्च एक चौथाई किया
पहले के दौर में बीमारी की जगह लक्षणों को लेकर इलाज किया जाता था, जिससे बीमारी खत्म नहीं होती थी। पर अब बीमारी को खत्म करने के लिए ट्रीट टू टारगेट थेरेपी पर काम किया जा रहा है। नार्थ इंडिया में आईबीसी की समस्या बढ़ रही है। यह प्रति एक लाख में 6 लोगों में देखने को मिलती है। इसमें लूज स्टूल और स्टूल के साथ ब्लड की समस्या देखने को मिलती है। बीमारी को ट्रीट न किया जाये तो कोलन कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इसकी जांच के लिए एनल कोलोनोस्कोपी, जो पीड़ादायक होती है, करनी पड़ती है। पर अब फेकल कैल प्रोटेक्टिव टेस्ट, जो एक प्रकार का स्टूल टेस्ट होता है, कराया जाता है। इसके ट्रीटमेंट के लिए पहले बायोलॉजिकल इंजेक्शन दिया जाता था, जो करीब 90 हजार रुपये का आता है। इसे हर दो माह में लगवाना होता है। पर अब मेक इन इंडिया के वजह से यह महज 12-14 हजार रुपये को हो गया है। इसके अलावा कई दवाएं आ गई हैं, जिनका प्रति माह खर्च करीब 3500 रुपये ही होता है।
-प्रो। यूसी घोषाल, अपोलो, कोलकाता