लखनऊ (ब्यूरो)। अगर एलडीए प्रशासन की ओर से अपनी पुरानी योजनाओं की पत्रावलियों की जांच करा ली जाए तो और भी बड़े फर्जीवाड़े सामने आ सकते हैैं। एक तरफ जहां फर्जी रजिस्ट्री के खेल लगातार सामने आ रहे हैैं, वहीं दूसरी तरफ अब तो नदी में समाहित जमीन को ही कॉमर्शियल और ग्रुप हाउसिंग में समायोजित कर दिया गया। इससे खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि एलडीए में किस कदर फर्जीवाड़े का खेल हुआ है और आम जनता के सपनों को छला गया है।

इन योजनाओं में पहले से जांच

एलडीए की ओर से पहले से ही टीपीनगर, जानकीपुरम योजना में फर्जी रजिस्ट्रियों की जांच कराई जा रही है। कानपुर रोड स्थित टीपी नगर योजना में तो 100 से अधिक कॉमर्शियल प्लॉट्स की फर्जी रजिस्ट्री की गई है और इसमें गवाह तक फर्जी बुलाए गए हैैं। हैरानी की बात तो यह है कि एलडीए प्रशासन को इसकी कोई खबर तक नहीं लगी और अब जब जानकारी हुई तो जांच शुरू करा दी गई है। इसी तरह जानकीपुरम योजना में भी फर्जी रजिस्ट्री के मामले पकड़े जा चुके हैैं। विराज खंड में भी कुछ ऐसा ही खेल सामने आया। यहां पर कई सालों के बाद एलडीए को अपनी 100 करोड़ की जमीन मिली है। जिसके बाद अब एलडीए की ओर से नए सिरे से इसे डेवलप करने संबंधी योजना तैयार की जा रही है।

पुरानी फाइलें मिलती ही नहीं

कई ऐसे भी मामले सामने आए हैैं, जिसमें पुरानी योजनाओं से जुड़ी फाइलें ही नहीं मिली हैैं। एलडीए प्रशासन की ओर से उनकी डुप्लीकेट फाइल बनवाने की भी कोशिश की गई लेकिन बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली। हालांकि, अब तत्कालीन बाबुओं के बयानों से रिकॉर्ड मेनटेन करने की तैयारी की जा रही है, हालांकि, अभी इसमें काफी वक्त लग सकता है। पहले जब एलडीए में समायोजन होते थे, तो उस दौरान सबसे अधिक खेल सामने आते थे। उस दौरान किए गए फर्जीवाड़े अब सामने आ रहे हैैं। इससे खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि समायोजन की आड़ में जमकर मलाई काटी गई है और प्राधिकरण प्रशासन को भनक तक नहीं लगी है। कई मामलों में तो एलडीए की ओर से एफआईआर तक दर्ज कराई गई है। अब जब से समायोजन बंद हुआ तो अब फर्जी तरीके से रजिस्ट्रिी में खेल सामने आने लगे हैैं।