लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी पुलिस कमिश्नरेट की ओर से हर बार चाइनीज मांझे के खिलाफ कार्रवाही करने के दावे किए जाते हैं, पर ये दावे हर बार खोखले ही साबित होते हैं। चाइनीज मांझे के खिलाफ कोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस इनसे होने वाले हादसों पर लगाम लगाने में कामयाब नहीं हो पा रही है। यहां तक कि इनकी बिक्री और उत्पादन का सही स्थान भी पता नहीं लगा पा रहा है। अक्सर कोई न कोई इनकी चपेट में आने से हादसे का शिकार हो रहा है। पुराने लखनऊ में ऐसे हादसे सबसे अधिक होते हैं।

चला अभियान पर नहीं हुआ समाधान

चाइनीज मांझे पर रोक के लिए पुलिस कमिश्नरेट की ओर से बीते सालों में कई बार अभियान चलाकर इसकी बिक्री करने वालों पर कार्रवाई करने की कोशिश हुई। पुलिस ने पुराने लखनऊ के नक्खास, बाजारखाला, तालकटोरा इलाके में स्थित पतंगों की दुकानों पर छापेमारी की, पर छापेमारी के दौरान पुलिस ने दावा किया था कि बहुत सी दुकानों पर चेकिंग की गई, पर चाइनीज मांझा कहीं नहीं मिला। राजधानी में चाइनीज मांझे से आए दिन कोई न कोई चोट खाकर पर पुलिस को इसके निर्माण और बिक्री करने वालों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।

पुलों पर जाली लगाने का प्रस्ताव

आए दिन हो रहे हादसों के मद्देनजर बाजारखाला और तालकटोरा के कुछ पुलों पर लोगों ने पूर्व में डीएम को एक पत्र भेजकर इन पर जाली लगाने की मांग भी की थी। जिसमें मांझे से सुरक्षा के दृष्टिगत 10 से 15 फीट ऊंची जाली लगाकर पुलों पर चलने वाले लोगों को इन मांझों से सुरक्षा देने की मांग की गई थी। पर अबतक जिला प्रशासन की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं हुई।

एनजीटी की चाइनीज मांझे पर रोक

राजधानी में हर साल स्वतंत्रता दिवस, होली व दीवाली के बाद पतंगबाजी आम चलन है, लेकिन पेंच लड़ाने के लिए पतंगबाज ऐसे मांझे का इस्तेमाल करते हैं जो धारदार होता है। ऐसे मांझे इंसान के लिए खतरनाक तो है हीं साथ ही पक्षी भी इनसे सुरक्षित नहीं हैं। जानलेवा होने की वजह से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2017 में चाइनीज मांझे के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रतिबंध के बावजूद यह धड़ल्ले से बाजार में बिकता है। लखनऊ यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अनुराग श्रीवास्तव बताते हैं कि हमारे देश में खिचड़ी के त्योहार के साथ ही कई त्योहारों पर पतंग उड़ाने का प्रचलन है। जब पतंग उड़ाने वाले मजबूत धागे की मांग करते हैं तो दुकानदार चाइनीज मांझा चोरी-छिपे बेच देते हैं। यही कारण है कि प्रतिबंध के बावजूद इस मांझे का इस्तेमाल होता है। उन्होंने बताया कि एनजीटी ने ऐसे मांझा की बिक्री, निर्माण और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है। इसका उल्लंघन करते पाए जाने पर 5 साल की सजा या एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।

आरोपी तक पहुंचना मुश्किल

लखनऊ की डीसीपी सेंट्रल अपर्णा रजत कौशिक का कहना है कि पुलिस रिकॉर्ड में घायल लोगों की संख्या कम है। क्योंकि लोग मांझे से घायल होने के बाद इसकी सूचना पुलिस को नहीं देते हैं। मौत या घायल होने के मामले में मांझे का इस्तेमाल करने वालों तक पहुंचना मुश्किल है। ऐसा इसलिए क्योंकि पतंग कई किलोमीटर दूर से उड़ती है, जिसकी डोर टूटने पर सड़क पर चलने वाले लोग शिकार हो जाते हैं। ऐसे में पुलिस के पहुंचने तक डोर का ओर-छोर दूर -दूर तक नहीं होता। उन्होंने बताया कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 5 के तहत जारी किए निर्देशों का उल्लंघन करने पर पांच साल की सजा हो सकती है या एक लाख तक जुर्माना लगा जा सकता है।