लखनऊ (ब्यूरो)। मैं यूक्रेन के विनित्सिया में मेडिकल की पढ़ाई कर रहा हूं। जैसे ही युद्ध शुरू हुआ, हमने यहां से निकलने की कोशिश शुरू कर दी थी। मेरे साथ कई दोस्त भी हैं। हम एक बस से किसी तरह रोमानिया की सीमा तक पहुंचे। यहां हमें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। यहां सैनिकों ने हमें हवाई फायरिंग कर न सिर्फ डराया, बल्कि लड़कियों के चेहरे पर स्प्रे तक किया। कड़ाके की ठंड के बीच भूखे-प्यासे हम दो दिन खड़े रहे। बर्फबारी भी हो रही थी, जिससे दिक्कतें और बढ़ गई। किसी तरह हम सीमा पारकर अब रोमानिया एयरपोर्ट तक पहुंच गए हैं। अब भारत जाने के लिए फ्लाइट का इंतजार कर रहे हैं।
अखिल मल, छात्र

लड़कियों को भी पीट रहे हैं सैनिक
मैं यूक्रेन के विनित्सिया में पढ़ाई कर रहा हूं। वहां से रोमानिया बार्डर आने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। इस दौरान एंबेसी से हम लोगों को कोई अधिक मदद नहीं मिली है। हम जान जोखिम में डालकर रोमानिया बार्डर किसी तरह पहुंच गए हैं। हम लोगों के साथ यूक्रेन के सैनिकों ने काफी खराब बर्ताव किया है। उन्होंने हमें बंदूक की बट से ढकेला है और हवाई फायरिंग भी कई बार की है। कई लड़कियों के साथ भी सैनिकों ने मारपीट की है। इस समय हम रोमानिया एयरपोर्ट पर भारत जाने के लिए फ्लाइट का इंतजार कर रहे हैं। किसी तरह घर पहुंच जाएं तो राहत की सांस ले सकेंगे।
हरिओम, छात्र

बार्डर पर हमें भगाने की हो रही कोशिश
युद्ध तेज होते ही हमने दूतावास को फोन किया लेकिन वहां फोन उठा ही नहीं। हम कॉलेज हॉस्टल से ब्रेड आदि सामान लेकर रोमानिया सीमा की ओर निकले थे। रास्ते में कहीं अगर कुछ मिला तो उसे खरीदकर रख लिया। किसी तरह हम रोमानिया बार्डर तक तो पहुंच गए हैं लेकिन यहां किसी तरह का कोई इंतजाम नहीं है। बार्डर से लोगों को भगाने के लिए सैनिक हवाई फायरिंग कर रहे हैं। भूखे-प्यासे हम माइनस 15 डिग्री टेंप्रेचर पर घंटों से लाइन में लगे हैं। दूसरे देशों के भी कई छात्र यहां फंसे हैं। हम लोगों का हालचाल लेने वाला कोई नहीं है। बार्डर क्रास हो जाए तो जान बचने का भरोसा होगा। अब तो बस यही चाहते हैं कि किसी तरह घर पहुंच जाएं।
निशांत, छात्र

बार्डर कैसे पार होगा, कुछ पता नहीं
मेरी बेटी शालिनी यूक्रेन के डेनीप्रो में पढ़ाई कर रही है। वह युद्ध शुरू होते ही वहां से निकलने की कोशिश कर रही थी। आज बेटी अपने 150 साथियों के साथ तीन बसों से रोमानिया बार्डर के पास पहुंच गई है। इस पूरे सफर के दौरान उसने सूखे खाने से ही काम चलाया है। बेटी से बात हुई तो उसने बताया कि उसके किसी साथी को यह नहीं पता है कि बार्डर बस से पार करना होगा या पैदल जाकर। बेटी को लेकर हमारा पूरा परिवार बहुत परेशान है। सभी बस यही प्रार्थना कर रहे हैं कि शालिनी किसी तरह सुरक्षित हम लोगों के पास आ जाए।
पवन शर्मा, शालिनी के पिता