लखनऊ (ब्यूरो)। यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के समन्वयक प्रो अब्बास रजा नय्यर कहते हैं कि अवध की तहजीब, जुबान वास्तुकला, पर्व और परम्परा, पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, लेकिन अभी तक इसको पढ़ाई का हिस्सा नहीं बनाया गया है। अब पहली बार किसी यूनिवर्सिटी में एमए उर्दू इन अवध कल्चर्य कोर्स की शुरूआत होगी। इससे अवधी तहजीब के पठन-पाठन का लखनऊ यूनिवर्सिटी केन्द्र बनेगा। इस कोर्स में 1857 से लेकर 1947 तक की आजादी की लड़ाई के बीच के उर्दू और हिन्दी साहित्य की जानकारी दी जाएगी। पूरा सिलेबस नई शिक्षा नीति के अनुसार तैयार किया जा रहा है।

इनके बिना नहीं पूरी होती एमए की पढ़ाई

प्रो नय्यर बताते हैं कि रतन नाथ सरसार से लेकर अब्दुल हलीम सरर और मुंशी सज्जाद हुसैन से लेकर नौबात राय नजर को पढ़े बिना कहीं भी एम उर्दू् की पढ़ाई पूरी नहीं होती है। लिहाजा अवध के इन नामचीनी साहित्यकारों को इसमें शामिल किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके लिए मुंशी नवल किशोर के योगदान को भी पढ़ाया जाएगा।

लखनवी भाषा शैली की जानकारी

इस कोर्स के सिलेबस में लखनवी भाषा को स्थान दिया जाएगा। इसमें बेगमात और शरीफ लोगों की भाषा शैली सहित शराफत, नजाकत और लताफत शामिल हैं। साथ ही अवध की शायरी, किस्सा, शुफियाना कलाम और गंगा-जमुनी तहजीब को पढ़ाया जाएगा। इसके अलावा कोर्स अवध की वास्तुकला, त्योहार, खेल व परम्परा से भी रूबरू कराएगा।