लखनऊ (ब्यूरो)। रमजान उल मुबारक बा बरकत महीना है। रोजा इस्लाम की बुनियादी अरकान में से है। अल्लाह ने कुरान पाक में इरशाद फरमाया है कि ऐ ईमान वालों तुम पर रोजा फर्ज किए गए हैं। जैसा कि तुमसे पहले लोगों पर किए गए ताकि तुम मुत्तकी और परहेजगार हो जाओ रमजान उल मुबारक को 3 अशरों में तकसीम किया गया है। पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात का है। यह जानकारी मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली, काजी शहर लखनऊ और अध्यक्ष इदारा ए शरइया फिरंगी महल ने पवित्र माह रमजान को लेकर दी।

रहमतों का दिन है

पहले अशरे को अशरा रहमत कहा जाता है। पहले अशरे से ही हर नेकी का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है। अर्श उठाने वाले फरिश्ते रोजेदारों की दुआ पर आमीन कहते हैं। रोजेदार तमाम दुनियादारी छोड़कर अल्लाह रब्बुल इज्जत के हुजूर हाजरी होकर खूब इबादत कर अपने तमाम गुनाहों से निजात और तौबा करते हैं। इन दुआओं की बरकतों से रब्बुल इज्जत आपकी तमाम परेशानियों को दूर फरमाता है। खूब खुशी तरक्की अता फरमाता है।

गुनाहों की बख्शीश फरमाएगा

रमजान उल मुबारक का दूसरे अशरे को अशरा ए मगफिरत भी कहा जाता है। इन दिनों में अल्लाह अपने बंदों की इबादत व मोहब्बत व इखलास को देखकर उनके गुनाहों की बख्शीश फरमाएगा। लिहाजा हमको ज्यादा से ज्यादा होशियार रहकर ज्यादा वक्त इबादतों में सरफ करना होगा और यह दुआ ज्यादा पढ़ना होगी, ए अल्लाह मेरे गुनाहों की मगफिरत फरमाए ए जहानों के पालनहार।

अधिक से अधिक इबादत करें

रमजान का तीसरा अशरा रहमतों का महीना है। तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात का है। इस अशरे में खुदा की इबादत करने वालों को जहन्नुम की आग से मुक्ति मिलती है। वैसे तो रमजान का पूरा महीना ही रहमतों का महीना है, लेकिन सबसे अहम है तीसरा अशरा। क्योंकि इसी अशरे की ताक रातों में यानी 21वीं, 23वीं, 25वीं और 27वीं शब ए कद्र हो सकती है और शब ए कद्र की इबादत का सवाब 1000 साल की इबादतों के बराबर होता है। 27 रमजान की रात को कुरआन शरीफ नाजिल हुआ, इसलिए इन रातों की अहमियत काफी बढ़ जाती है। रोजेदार इन पांचों रात को जागकर ख़ुदावंदे करीम की इबादत करते हैं।

अमन की दुआ करें

मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली काजी शहर ने अपील में यह भी कहा कि लोग अपनी अपनी इबादतों में अल्लाह की बारगाह में अपने मुल्क हिंदुस्तान की तरक्की और अमन के लिए खूसूसी दुआ करें।