लखनऊ (ब्यूरो)। नवंबर महीने में एएसपी श्वेता श्रीवास्तव के बेटे नामिश की सड़क हादसे में मौत हो गई थी। इस हादसे से सबक लेते हुए लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस ने शहर की सड़कों पर बार-बार तेज रफ्तार से गाड़ियां दौड़ाने वाले वाहन चालकों पर एफआईआर दर्ज करना शुरू किया था। दावा था कि एफआईआर के बाद गाड़ियों को सीज किया जाएगा। हैरानी की बात है कि पुलिस ने अबतक लगभग 213 चालकों के खिलाफ केस तो दर्ज किया, लेकिन इनमें से महज 22 गाड़ियां ही सीज हुई हैं, यानी पुलिस की सख्ती कुछ दिन तो रही, लेकिन समय के साथ-साथ ढिलाई शुरू हो गई। कुछ ऐसा ही हाल शहर में ट्रैफिक जाम की समस्या का हल निकालने के लिए बनी योजनाओं का भी है, जो अब फ्लॉप साबित हो रही हैं

3 बार से अधिक चालान पर केस

शहर में सड़क हादसे रोकने के लिए लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस ने वाहन चालकों के लिए एक नया एक्शन प्लान तैयार किया था। इसके तहत किसी भी वाहन का तीन बार से अधिक ओवरस्पीड का चालान होने पर हजरतगंज थाने में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया था। इस आदेश के बाद पुलिस ने शुरुआती दिनों में गाड़ियों को सीज भी किया, लेकिन अब यह प्रोसेस ठप हो गया है।

थाने में गाड़ी पार्क करने की जगह नहीं

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि शहर के किसी भी हिस्से में ओवरस्पीड का चालान होने पर उसकी एफआईआर करने की जिम्मेदारी सिर्फ हजरतगंज थाने को दी गई है। पिछले डेढ़ महीने में 200 से ज्यादा केस हो गए हैं, ऐसे में सभी गाड़ियों को सीज कर थानों में खड़ी करने की जगह नहीं है, जिस वजह से इस काम गाड़ियों को सीज करने के काम में ढिलाई बरती जा रही है।

अब अन्य जोन को सौंपा जा रहा केस

पुलिस के मुताबिक, अबतक दर्ज हुए केसों में हजरतगंज थाना पुलिस की जांच में सामने आया कि इनमें से 150 से अधिक वाहन चालक लखनऊ के रजिस्टर्ड हैं, जबकि अन्य वाहन दूसरे जिलों के हैं। वहीं, सेंट्रल एडीसीपी मनीषा सिंह के मुताबिक, एफआईआर के बाद गाड़ियों को सीज करने के बाद थाने में खड़ा करने की जगह नहीं है। जिसकी वजह से अब सेंट्रल जोन पुलिस इसकी जांच करने के साथ-साथ साउथ, ईस्ट, वेस्ट और नार्थ डिवीजन की पुलिस भी जांच करेंगी, अन्य सभी जोनों में केस सौंपा जा रहा है।

अबतक पांच बार में हुई एफआईआर

-121 पहली बार

-34 दूसरी बार

-17 तीसरी बार

-24 चौथी बार

-17 पांचवीं बार

ये योजनाएं हुईं फेल

1. बैन हुए मार्गों पर दौड़ रहे ई-रिक्शा

पुलिस के सर्वे में सामने आया कि शहर में जाम लगने का सबसे बड़ा कारण बेलगाम ई-रिक्शा हैं। इन रिक्शा पर पुलिस ने लगाम लगाने के लिए कई सारी योजनाएं तैयार कीं। इतना ही नहीं, शहर अलग-अलग वीआईपी मार्गों पर इनके चलने पर रोक लगा दी गई। शुरुआती दिनों में यहां पर रिक्शा पूरी तरह से बैन हो गया था और सख्ती भी दिखी, लेकिन अब फिर वहां ई-रिक्शा दौड़ने लगे हैं, जिससे आए दिन जाम की समस्या बनी रहती है। हालांकि, एक बार फिर इससे निपटने के लिए पुलिस ने जोन वाइज रिक्शा के चलने का प्लान तैयार किया है, लेकिन इस व्यवस्था को लागू कराने के लिए पुलिस की रफ्तार काफी धीमी है। ई-रिक्शा चालक भी इस आदेश पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

2. चौराहे से गायब हुए वालंटियर

लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट ने एक एनजीओ से एमओयू साइन कर 100 प्राइवेट गार्डों को चौराहों पर ट्रैफिक कंट्रोल करने के लिए उतारा था। इनको कांट्रेक्ट पर 16 चौराहों पर अपनी सेवाएं देनी थीं। इन्हें हजरतगंज, लालबाग, कैसरबाग, चारबाग, अवध चौराहा समेत अलग-अलग चौराहों पर ड्यूटी करनी थी, लेकिन अब एक भी गार्ड चौराहे पर मौजूद नहीं है। वहीं, चौराहों पर ड्यूटी दे रहे पुलिसकर्मियों ने बताया कि शुरुआती दिनों में इनकी ड्यूटी लगती रहती थी, लेकिन अब वे सभी गायब हो गए हैं।

3. एंबुलेंस के लिए ग्रीन कॉरिडोर

इंदिरा गांधी आई अस्पताल में मरीज को हार्ट अटैक हुआ, एंबुलेंस को कॉल की गई, लेकिन ट्रैफिक जाम होने की वजह से एक किलोमीटर की दूरी पूरी करने में एंबुलेंस को एक घंटे लग गए। इस तरह के घटनाओं को देखते हुए लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट ने फैसला किया था कि अब सिर्फ खास मौके पर ही नहीं बल्कि हर एंबुलेंस के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाएगा। इसके लिए ट्रैफिक पुलिस शहर के सभी प्राइवेट और सरकार एंबुलेंस चालकों को अपना एक नंबर देना था। जिस पर कॉल करके पुलिस को अपना रूट बताना होगा और सड़क खाली मिल जाएगी, लेकिन यह सिर्फ हवा हवाई दावा रहा।

4. चौराहे से 100 मी। दूर सवारियों को बिठाना

लखनऊवाइट्स को जाम की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए ट्रैफिक पुलिस ने शहर के दो मुख्य पॉलीटेक्निक और अवध चौराहे पर ऑटो, टेंपो, बस और ई-रिक्शा को खड़ा करने पर बैन लगा है। यहां पर लाल पट्टी खींचकर चौराहे से 100-100 मीटर की दूरी पर अपने वाहनों को खड़ा करने की अनुमति दी गई है। अगर कोई चालक चौराहे पर सवारियां बैठाता था, उसका चालान या फिर वाहन सीज किए जाते थे। शुरुआती दिनों में पुलिस यहां पर सख्ती भी बरती, लेकिन अब यह सख्ती मुक्ति में बदल गई है, क्योंकि अक्सर वाहन चौराहे पर ही सवारियां भरती हुई दिख जाती हैं।