लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी के कई छोटे-बड़े अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं। जिसके बाद जांच कमेटी तो बनाती हैं, लेकिन उनका आग से बचाव के इंतजामों पर कितना असर होता है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। ऐसे संस्थानों में आग से बचाव की पुख्ता ट्रेनिंग भी स्टाफ को नहीं दी जाती है, जिससे मरीजों और तीमारदारों की जान सांसत में पड़ जाती है। वहीं, अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं को देखते हुए डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने पीजीआई समेत प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों और ऑपरेशन थियेटर का सेफ्टी ऑडिट कराने का निर्देश जारी कर दिया है, ताकि इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।

केस 1

27 दिसंबर 2016 को केजीएमयू के क्वीन मेरी के फर्स्ट फ्लोर पर बने एनएनयू में आग लगने से 12 दिन का नवजात झुलस गया था। वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर था। किसी तरह स्टाफ ने उसे बचाया।

केस 2

16 जुलाई 2017 को केजीएमयू ट्रामा सेंटर के सेकेंड फ्लोर पर भीषण आग लग गई थी। जहां करीब 10 फायर ब्रिगेड की गाड़ियों ने आग पर काबू पाया था। उस दौरान अस्पताल का फायर फाइटिंग सिस्टम फेल साबित हुआ था।

केस 3

6 जून 2022 को लोहिया संस्थान के फोर्थ फ्लोर पर आग लग गई थी। आग फॉल्स सीलिंग में लगी थी। हालांकि, कोई हताहत नहीं हुआ था।

समय पर काम नहीं करते फायर फाइटिंग सिस्टम

राजधानी के विभिन्न सरकारी और निजी अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। सभी अस्पताल अपने यहां पुख्ता फायर फाइटिंग सिस्टम होने का दावा करते हैं। पर जब आग लगती है तो उस समय सिस्टम जैसे अलार्म, वॉटर स्प्रिंक्लर आदि काम ही नहीं करते हैं। जैसे बीते साल केजीएमयू के शताब्दी फेज-2 में आग लगने के बाद अलार्म बजा ही नहीं। धुंआ निकलने के बाद कर्मचारियों को इसकी जानकारी हुई और किसी तरह आग पर काबू पाया गया। इतना ही नहीं, आग लगने की घटना के दौरान स्टाफ के ट्रेंड न होने की बात भी सामने आती है। जिसके चलते आग पर काबू पाने में दिक्कतें हुई थीं।

छोटे अस्पतालों में अधिक दिक्कत

सीएमओ आफिस के तहत करीब 1200 प्राइवेट अस्पताल रजिस्टर्ड है। राजधानी में दो हजार से अधिक अस्पतालों का संचालन हो रहा है। इसमें 600 से अधिक अस्पताल दो फ्लोर से अधिक के हैं। नियमानुसार सभी छोटे-बड़े अस्पतालों में आग से बचाव के पुख्ता बचाव के संसाधन होने चाहिए। पर राजधानी में सबसे खराब हालत छोटे अस्पतालों की है। इन अस्पतालों में आग से बचाव का कोई साधन नहीं है। कई अस्पतालों के तो आग बुझाने के संसाधन पुराने हैं और कई जगहों पर तो रैंप तक नहीं हैं। पर कई बार सीएमओ की टीम के औचक निरीक्षण में यह तमाम खामियां मिल चुकी हैं। पर इसके बावजूद इन अस्पतालों में सुधार नहीं हो रहा है। ऐसे में ये अस्पताल मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। इनपर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाती है।

किया गया काफी बदलाव

केजीएमयू ट्रामा के सीएमएस डॉ। संदीप तिवारी के मुताबिक, ट्रामा सेंटर और शताब्दी में फायर रैंप था। जिसके बाद नया फायर रैंप बनाया गया, ताकि लोगों को इमरजेंसी में निकालने में आसानी हो। इसके अलावा फायर सिस्टम जैसे अलार्म, वॉटर स्प्रिंक्लर और आग बुझाने वाले यंत्र आदि मजबूत किए गये हैं। इसके अलावा, फायर मैन की ड्यूटी रहती है। जो तीन शिफ्ट में 24 घंटा काम करते हैं। इसके अलावा, हर 3-4 माह में मॉक ड्रिल करते रहते हैं, ताकि कोई दिक्कत हो तो उसे दूर किया जा सके।