गुलशन द्विवेदी | लखनऊ (ब्यूरो)। इसे 'कम में ज्यादा की जिद ही कहेंगे कि मुसीबतों और गरीबी का सामना करते हुये राजधानी की बेटी मुमताज ने नेशनल हॉकी टीम में अपनी जगह बनाई। पेश है गुलशन द्विवेदी की खास रिपोर्ट

कैंट एरिया के तोपखाना में रहने वाली हॉकी प्लेयर मुमताज के घर की आर्थिक स्थित ठीक नहीं थी। पिता हाफिज खान वहीं बाजार में सजी का ठेला लगाकर अपने परिवार का पेट पालते थे। इसके बाद भी हॉकी के प्रति उसके जुनून ने अपनी आर्थिक स्थिति को काी आड़े नहीं आने दिया। केडी सिंह बाबू स्टेडियम में कोच नीलम सिद्दीकी से हॉकी के गुर सीखने वाली मुमताज लाइम लाइट में तब आईं तब उन्होंने जूनियर विश्व कप हॉकी चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सबसे ज्यादा आठ गोल अकेले दागे। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनका सिलेक्शन इंडियन वीमेन हॉकी टीम में किया गया।

माता-पिता को है बेटी पर नाज
सब्जी विक्रेता हाफिज खान और कैसर जहां की बेटियों में से चौथी मुमताज के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था कि वो जूनियर विश्व कप में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली टीम का हिस्सा बनेंगी। कड़ी मेहनत और खुद के आत्मविश्वास की बदौलत मुमताज आज इस मुकाम पर खड़ी हैं। 'कम में ज्यादा की जिद का ही नतीजा है कि वह अभी इतने से ही संतुष्ट नहीं है। वह चाहती हैं हॉकी खेलते हुए ओलंपिक में भी अपने देश का तिरंगा फहराएं।

पहली बार में ही परखा टैलेंट
मुमताज अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपनी कोच नीलम सिद्दीकी को देती हैं, उन्होंने ही उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्होंने हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया। नीलम ने बताया कि जब उन्होंने मुमताज को पहली बार देखा तो समझ आ गया था कि उनके अंदर कुछ खास बात है, जिसके बाद उन्होंने उनको प्रॉपर ट्रेनिंग दी और नतीजा आज सबके सामने है।

रिश्तेदारों के तानों को सहा
जब मुमताज ने हॉकी खेलने का मन बनाया तो उसके परिवार और रिश्तेदारों ने ताना दिया और विरोध भी किया। मुस्लिम समुदाय से आने वाली मुमताज ने इसकी कोई परवाह न करते हुए अपने घरवालों को मनाया। आखिरकार उनके माता-पिता से उन्होंने बाबू स्टेडियम के हॉस्टल का हिस्सा बनने की इजाजत दे दी।

(लेखक @GulshanDwivedi दैनिक जागरण आई नेक्‍स्‍ट में चीफ सब एडिटर हैं)