लखनऊ (ब्यूरो)। भारत और दुनियाभर के प्रमुख ऑर्थोपेडिक सर्जन और पेशेवर, इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के 68वें वार्षिक सम्मेलन आईओए कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने को एकत्र हुए हैं। शुक्रवार को इस कॉन्फ्रेंस में एक्सपर्ट्स द्वारा आर्थोपेडिक्स में अत्याधुनिक प्रगति के बारे में जानकारी साझा करने और लोगों में बढ़ती आर्थोपेडिक समस्याओं को लेकर मंथन किया गया। वर्कशॉप चेयरमैन डॉ। संदीप गर्ग ने कहा कि इंटरैक्टिव वर्कशॉप्स और लाइव प्रदर्शनों के माध्यम से सर्जरी विशेषज्ञों को अपने कौशल को निखारने के लिए एक अनूठा मंच प्रदान किया गया है। जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वे अपने रोगियों को सर्वोत्तम संभव इलाज व देखभाल प्रदान करने में सक्षम हों। इसका सीधा फायदा मरीजों के इलाज में मिलेगा और वे बेहतर तरीके से रिकवर हो सकेंगे।

आईपीएल जैसी लीग बढ़ा रहीं स्पोर्ट्स इंजरी

आजकल जो आईपीएल जैसी लीग्स हो रही हैं या शार्ट ड्यूरेशन इंटेसिटी स्पोर्ट्स हो रहे हैं, उनकी वजह से स्पोर्ट्स इंजरी के मामले बढ़ने वाले हैं, क्योंकि प्लेयर्स के पास रिकवरी का टाइम नहीं होता है। बॉडी को लगातार लोड पड़ता। ऐसे में बॉडी को रेस्ट न मिलने के कारण चोट की आशंका बढ़ जाती है। वहीं, एंकल इंजरी जिसे मोच आना भी कहते हैं, युवा खिलाड़ियों में सबसे ज्यादा कॉमन प्रॉब्लम है। जिसमें 15-20 पर्सेंट इंजरीज गंभीर हो जाती हैं। ऐसे में इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

-डॉ। अनंत जोशी, मुंबई

जिम जाने वालों में शोल्डर इंजरी कॉमन

आज के समय में यंगस्टर्स जिम में काफी समय बिताते हैं। वहां की एक्टिविटीज से शोल्डर इंजरी सबसे ज्यादा हो रही है। शोल्डर डिस्लोकेशन यानि कंधे का खिसकना एक कॉमन प्राब्लम है। जिम जाने वाले यंगस्टर्स में यह प्राब्लम 20-30 पर्सेंट देखने को मिलती है। जिसके कारण कंधे के रोटेशन कप और बाइसेप में प्राब्लम होने लगती है। इसमें करीब 10-15 पर्सेंट को सर्जरी की जरूरत पड़ती है, जिसे रिहैबिलिटेट किया जाता है। इस तरह की इंजरी से बचाव के लिए इंटरनल टोनिंग मसल्स को डेवलप करना चाहिए। क्योंकि जिम में ज्यादातर लोग एक्सटर्नल मसल्स डेवलप करते हैं। ऐसे में इंटरनल मसल्स डेवलप करने के लिए स्पेशल ईलास्टिक बैंड को स्टेटिक मैनर में करना होता है। यंगस्टर्स को अपनी क्षमता से अधिक वजन उठाने से बचना चाहिए।

-डॉ। अमित तोलाट, यूके

बढ़ सकती है आस्टिोपोरोसिस की समस्या

ऑफिस जाने वाले यंगस्टर्स की डायट गड़बड़ होने से उनकी बोन वीक होने लगती है। ज्यादा देर बैठकर काम करने से गर्दन, कमर और पीठ आदि में दर्द की समस्या बेहद कॉमन हो गई है। इसके अलावा स्ट्रेस और एंग्जाइटी का भी असर पड़ता है। इसका असर पूरी बॉडी के मैकेनिजम पर पड़ता है। जिसका बोन की मेटाबॉलिजम पर भी असर आता है और जल्द ही आस्टियोपोरिसिस की समस्या हो सकती है। यह करीब 30 पर्सेंट चांस बढ़ा देता है। डायबिटीज और हायपरटेंशन भी परेशानी खड़ी करता है।

-डॉ। संतोष सिंह, ट्रैजरार, आईओए कॉन्फ्रेंस