लखनऊ (ब्यूरो)। आलमबाग निवासी एक दंपत्ति मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत हैैं। उनका एक लड़का है, जो क्लास 6 का स्टूडेंट हैै। पैरेंट्स ने खुद के पास समय न होने के कारण उसकी देखभाल के लिए घर में दो से तीन सर्वेंट रखे हुए हैैं। जब वे घर में रहते भी हैैं तो उसके साथ कम्युनिकेशन करने की जगह मोबाइल में बिजी रहते हैैं। बेटा डिस्टर्ब न करे, इसके लिए उन्होंने उसे भी महंगा मोबाइल दिया हुआ है। पिछले कुछ दिनों से उनके अकाउंट से पैसा गायब हो रहा था। जांच पड़ताल के बाद उन्हें पता चला कि उनका बच्चा ऑनलाइन गेमिंग की दुनिया में फंस चुका है और उसके बर्ताव में भी खासा परिवर्तन आ चुका है। फिलहाल वे अपने बच्चे का एक मनोचिकित्सक से इलाज करा रहे हैैं ताकि उनका बच्चा इस एडिक्शन से बाहर आ सके। यह तो महज एक उदाहरण है, लेकिन हकीकत यही है कि वक्त तेजी से बदल रहा है और इस बदलते वक्त के साथ पैरेेंट्स की बच्चों के प्रति जिम्मेदारी का ग्राफ भी डाउन होता नजर आ रहा है। बिजी शेड्यूल के कारण पैरेंट्स बच्चों पर ध्यान देने के बजाए उन्हें मोबाइल देकर सोशल मीडिया एडिक्ट बना रहे हैैं और बाद में खुद पछताते हैैं। आलम यह है कि पैरेंट्स की उदासीनता के कारण ही बच्चे सोशल मीडिया की अंधेरी दुनिया में खोते जा रहे हैैं और बचपन को खोकर क्राइम की दुनिया में अपने कदम जमा रहे हैैं।

बिजी लाइफ बनी वजह

इस समय करीब 70 फीसदी शहरी पैरेंट्स ऐसे हैैं, जो किसी न किसी रूप में जॉब कर रहे हैैं। ऐसे में उनके पास बच्चों के लिए समय नहीं रहता। हैरानी की बात तो यह है कि जब वे घर में भी रहते हैैं तो बच्चों के लिए समय निकालने के बजाए मोबाइल पर बिजी रहते हैैं या ऑफिस से जुड़े कामकाज निपटाते हैैं। वहीं, उनका बच्चा भी अपनों द्वारा समय न दिए जाने के कारण इंटरनेट की दुनिया में खुद को बिजी रखता है। जिसके भयावह परिणाम सामने आते हैैं और पैरेंट्स के पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं रहता।

हर घर की बन रही कहानी

पहले जहां हाई सोसाइटीज में ही बच्चों के सोशल मीडिया एडिक्शन के मामले सामने आते थे, वहीं अब यह लगभग हर घर की समस्या बनती जा रही है। कोविड के बाद तो स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई है। कोविड से पहले जहां 30 फीसदी बच्चे साइबर वल्र्ड की दुनिया से अंजान थे, वहीं अब इनमें से लगभग 23 फीसदी बच्चे साइबर वल्र्ड की दुनिया में अपना कमांड रखते हैैं।

ये कदम उठाने होंगे

1-समय निकालना होगा-हर हाल में सभी पैरेंट्स को अपने बच्चों के लिए समय निकालना होगा और उनके साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करना होगा।

2-स्पोट्र्स या कल्चरल एक्टिविटीज से जोड़ें-अगर आपके पास समय नहीं है तो बच्चे के हाथ में मोबाइल देने से अच्छा है कि उसे स्पोट्र्स या कल्चरल एक्टिविटी से जोड़ें। जिससे उसका मन डाइवर्ट हो सके।

3-बच्चे की काउंसिलिंग करें- बच्चों को डांटने से बेहतर है कि उसकी समय-समय पर काउंसिलिंग करें। अगर बच्चा कोई अपनी समस्या लेकर आए तो उसे सॉल्व करने का प्रयास करें न कि उसे डांटकर भगा दें।

4-पैरेंट्स रहें अलर्ट-अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा सोशल मीडिया की दुनिया में अधिक समय व्यतीत कर रहा है तो अलर्ट हो जाएं और उससे कम्युनिकेशन करें और उसे सोशल मीडिया एडिक्शन के दुष्प्रभावों से रूबरू कराएं।

5-मनोचिकित्सक की मदद लें-अगर आपके प्रयास के बाद भी बच्चा सोशल मीडिया की दुनिया से बाहर नहीं आ पा रहा है तो तत्काल मनोचिकित्सक की मदद लें, जिससे समय रहते बच्चे को सोशल मीडिया एडिक्शन से बाहर लाया जा सके।

6-हर बात पर बच्चे को न टोकें-कई बार पैरेंट्स बच्चों को बात बात पर टोक देते हैैं, जिसकी वजह से बच्चा अकेला रहना शुरू कर देता है और यहीं से ही उसके कदम सोशल मीडिया की दुनिया में पड़ जाते हैैं। ऐसे में पैरेंट्स को भी चाहिए कि वे बच्चे को अहसास दिलाएं कि हर कदम पर उसके साथ हैैं।

7-बच्चे का बेस्ट फ्रेंड बनें-पैरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चे का बेस्ट फ्रेंड बनने का प्रयास करें। हर सुख दुख में उसके साथ खड़े हों और उसके साथ सप्ताह में एक बार जरूर आउटिंग पर जाएं। जिससे वह महसूस कर सके कि आप उसके लिए समय निकालते हैैं। निश्चित रूप से इसके सकारात्मक परिणाम भी आपको देखने को मिलेंगे।

हर हाल में पैरेंट्स को बच्चों के लिए समय निकालना होगा। अक्सर देखने में आता है कि बिजी लाइफ के चलते पैरेंट्स बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैैं, जिसकी वजह से बच्चे सोशल मीडिया की दुनिया में खोते चले जाते हैैं। सभी पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि वे सप्ताह में एक बार जरूर अपने बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें।

-डॉ। सुनील पांडेय, राज्य मानसिक स्वास्थ्य अधिकारी