लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी का बलरामपुर अस्पताल वैसे तो प्रदेश का सबसे बड़ा जिला अस्पताल है। पर इसके बावजूद यहां आने वाले हजारों मरीजों को मुकम्मल इलाज हासिल नहीं हो पा रहा है। कभी यहां दवाएं नहीं मिलतीं, तो कभी जांच के लिए भटकना पड़ता है। वहीं, डॉक्टर बाहर तक की दवा लिखकर दे रहे हैं, जिसके चलते मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अधिकारी सभी दवाओं के उपलब्ध होने का दावा जरूर करते हैं, पर हकीकत इससे एकदम अलग है।

दिल की बीमारियों की दवा नहीं

बलरामपुर अस्पताल में करीब 700 से अधिक बेड हैं। यहां रोजाना 3-4 हजार मरीज इलाज करवाने आते हैं। सबसे ज्यादा मरीज स्किन, मानसिक, आर्थो, कार्डियोलॉजी, जनरल फिजीशियन आदि ओपीडी में आते हैं। पर आलम यह है कि खुजली की जरूरी दवा से लेकर मानसिक रोगों से लडऩे के लिए जरूरी दवाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। इतना ही नहीं, दिल संबंधी बीमारियों के लिए भी जरूरी दवाएं नहीं मिल रही हैं, जिसके चलते मरीजों को मुकम्मल इलाज नहीं मिल पा रहा है।

इन दवाओं का सर्वाधिक टोटा

अस्पताल में कई जरूरी दवाएं जरूर मिल जाती हैं, पर जो दवाएं मर्ज के लिए सबसे बेहतर मानी जाती हैं, उनकी कमी लगातार बनी हुई है। खुजली के लिए सबसे बेहतर पर्मेथ्रिन दवा का टोटा यहां अक्सर बना रहता है। इसकी जगह दूसरा लोशन जो कम फायदेमंद है वह मरीजों को थमाया जा रहा है। सबसे ज्यादा कमी मानसिक रोग के मरीजों की दवाओं की चल रही है। जिसमें डिप्रेशन के लिए बेहद जरूरी सट्र्रालिन, नींद की समस्या वाले मरीजों को दी जाने वाली लोराजेपम और उलझन की समस्या होने पर दी जाने वाली क्लोनाजेपम समेत कई अन्य दवाएं उपलब्ध ही नहीं हैं। मरीजों को ट्रीटमेंट के नाम पर आधी-अधूरी दवाएं थमा कर भेज दिया जा रहा है। ऐसे में मानसिक विकारों से ग्रसित मरीजों का इलाज कैसे हो रहा होगा, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल नहीं है।

बाहर की दवा लिख रहे डॉक्टर

सरकार का स्पष्ट आदेश है कि कोई भी डॉक्टर मरीजों को बाहर की दवा नहीं लिखेगा। पर इसके बावजूद अस्पताल के कुछ डॉक्टर मरीजों को बाहर की दवाएं व अन्य सामान लिख रहे हैं। हर दवा, मेडिसिन काउंटर पर उपलब्ध नहीं हो पा रही है। दिल की बामारियों की दवा की भी भारी कमी है और मरीजों को बाहर की महंगी दवा खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है।

कैथ लैब और एमआरआई ही नहीं

अस्पताल में कार्डियोलॉजी विभाग है। पर जरूरी जांच के लिए कैथ लैब नहीं है। जिसके चलते एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी और टीएमटी आदि टेस्ट के लिए मरीजों को दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया जाता है या वे निजी लैब से महंगी जांच कराने को मजबूर हो जाते हैं। वहीं, एमआरआई बिल्डिंग तो तैयार है, पर मशीन अबतक नहीं लग पाई है। जिसके चलते गंभीर मरीजों को दूसरे संस्थान रेफर करना पड़ता है। इसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ता है।

सभी दवाएं नहीं मिली हैं। डॉक्टर ने पर्चे पर लिखकर कहा कि ये बाहर मिलेंगी। अब बाहर से इन्हें खरीदने जा रही हूं।

-कमला देवी

बेटे का इलाज चल रहा है। उसे मानसिक समस्या है। डॉक्टर ने जो दवा लिखी है उसमें सभी नहीं मिली हैं। बहुत दिक्कत हो रही है।

-नसीम

कार्पोरेशन से जो दवा मिलती है, मरीजों को उपलब्ध कराई जा रही है। किसी मरीज को कोई दिक्कत नहीं आने दी जाएगी। एमआरआई मशीन भी जल्द लग जाएगी।

-डॉ। जीपी गुप्ता, सीएमएस, बलरामपुर अस्पताल