लखनऊ (ब्यूरो)। बाराबंकी की क्लास 12वीं की छात्रा ने बुधवार को गोमती रिवरफ्रंट से कूद कर अपनी जान दे दी। छात्रा के पास से बरामद सुसाइड नोट में लिखी बात ने एक बार फिर यूथ खासकर टीनएजर्स में एक्सेप्टेंस और रिजेक्शन को लेकर पनप रही भ्रांतियों की परतें खोल दी हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि इस तरह की घटनाएं पेरेंटिंग, जिंदगी को समझने और जीने के तौर तरीकों के साथ-साथ निजी जीवन में सोशल मीडिया के बढ़ते दायरे की दिक्कतों का नतीजा हैं। एक्सपर्ट्स की मानें तो मौजूदा समय में टीनएजर्स में पेंशेंस बहुत कम हो गया है। ऐसे में पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों को जिंदगी के सभी पहलुओं से रूबरू कराते हुए उनमें आत्मविश्वास जगाने की कोशिश करें। सेल्फ लव और सेल्फ एक्सेप्टेंस से ही रिजेक्शन की फीलिंग को कम किया जा सकता है

सोशल मीडिया बदल रहा टेम्प्रामेंट

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ। दीपक नंदवंशी कहते हैं कि सोशल मीडिया का दखल जीवन में बढ़ रहा है। यही नहीं, सोशल मीडिया के बदलते ट्रेंड भी पर्सनैलिटी और टेम्प्रामेंट को बदल रहे हैं। आज का दौर शॉर्ट वीडियोज का है। लोग 30 सेकंड के शॉर्ट्स को लेकर बमुश्किल दो सेकंड में तय कर लेते हैं कि देखना है या स्किप करना है। इससे पेशेंस लेवल कम हो रहा है। यूथ सेकंड््स में जजमेंटल हो जाते हैं। यह धीरे-धीरे घातक होता जा रहा है। खुद के जीवन से संतुष्ट न होना, हीन भावना का आना बहुत सामान्य हो गया है। यह सब मानसिक समस्याओं को जन्म दे रहा है।

सोशल अप्रूवल की रेस

नवयुग कन्या महाविद्यालय की साइकोलॉजी विभाग की प्रोफेसर व साइकोलॉजिस्ट डॉ। सृष्टि श्रीवास्तव कहती हैं कि सोशल अप्रूवल को लेकर अलग क्रेज है। यह हर उम्र में है, लेकिन टीनएजर्स और यूथ में लगातार बढ़ रहा है। इसके अलावा बचपन से ही पेरेंट्स का जाने-अनजाने पढ़ाई में बेहतर और खराब बच्चे के बीच का भेद, टीचर्स का कमजोर बच्चे पर कम ध्यान देना और तेज बच्चे पर अधिक ध्यान देना, इससे हीन भावना की शुरुआत होती है। बचपन से सिखाया गया कि लोग क्या कहेंगे, यह बच्चों के जेहन पर इतना गहरा असर कर जाता है कि वे बड़े होकर ज्यादातर चीजें सोशल अप्रूवल के लिए ही करने लगते हैं।

सेल्फ लव सिखाएं, ऑब्सेशन से बचाएं

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ। केएल द्विवेदी कहते हैं कि बच्चों को बचपन से ही पेरेंट्स को सेल्फ लव और सेल्फ एक्सेप्टेंस सिखाने की जरूरत है। जब बच्चे में सेल्फ लव और सेल्फ एक्सेप्टेंस होगा तो रिजेक्शन की फीलिंग खुद-ब-खुद खत्म होगी। खुद से प्रेम करना और आप जैसे हैं वैसे ही खुद को स्वीकार करने से वर्चुअल वर्ल्ड और रियलिटी के बीच जो दायरा होना चाहिए, बच्चा उससे सजग रहता है। पर प्रयास यह हो कि सेल्फ लव और सेल्फ एक्सेप्टेंस सेल्फ ऑब्सेशन में नहीं बदलना चाहिए।

जिंदगी के सभी पहलुओं से रूबरू कराएं

डॉ। सृष्टि कहती हैं कि आज के पेरेंट्स बच्चों को बचपन में ही सबकुछ देना चाहते हैं। वे उसकी हर जिद को पूरा करना चाहते हैं। बच्चे के मांगते ही उसे सब मिल जाना उसके पेशेंस और टॉलरेंस को कम करता है। ऐसे में पेरेंट्स उनकी हर इच्छा को पूरा न करें। बच्चे को बताएं कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव होते हैं। सफलता-असफलता दोनों ही जीवन के पहलू हैं।

माइंडफुलनेस पर करें फोकस

आज के दौर में हर व्यक्ति में माइंडफुलनेस की कमी देखी जा रही है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि जो भी करें उसे पूरे मन से करें। ऐसा न हो कि आप कहीं और हों और मन कहीं और। इसके आजकल लोग अधिक प्लेजर सेंट्रिक हो चुके हैं, इससे बचें।

यह भी कर सकते हैं

-सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर अंकुश लगाएं। इसका टाइम लिमिटेड करें, जिससे आप रियल वर्ल्ड में अधिक समय गुजार सकें।

-अपने सर्किल को वर्चुअल के मुकाबले रियल वर्ल्ड में अधिक रखें। फ्रेंड ऐसे बनाएं जिनसे समय-समय पर मुलाकात कर सकें।

-अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। योग, ध्यान और एक्सरसाइज से मदद मिलेगी।

-जीवनशैली को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। डिसिप्लिन बनाएं रखें।

-मोबाइल की डिपेंडेंसी को कम करें।

-याद रखें कि जिंदगी में हर तरह के उतार-चढ़ाव आएंगे। उनके प्रति सकारात्मक रहें।

सेल्फ एक्सेप्टेंस क्यों जरूरी

-अपने आपको प्रियॉरिटी पर रखने से आप खुद को बेहतर समझ सकते हैं।

-थोड़ा वक्त निकाल कर जो काम करने से आपको खुशी मिलती है, उसे करें।

-लोगों से मिलते-मिलते कई बार जो पर्सनैलिटी इंफ्ल्यूएंस हो जाती है, उससे हट कर अपनी क्षमताओं पर फोकस करने का मौका मिलता है।

-सेल्फ टाइम आपको एनर्जेटिक बनाता है और आपके कॉन्फिडेंस लेवल को बरकरार रखता है। दूसरों पर डिपेंडेंसी कम होती है।