लखनऊ (ब्यूरो)। जहां एक ओर परिवहन विभाग में स्कूली बच्चों को लाने और ले जाने के लिए स्कूल बस, वैन या टेंपो को ही रजिस्टर्ड किया गया है, वहीं दूसरी ओर नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ई-रिक्शा से स्कूली बच्चों को स्कूल लाया और ले जाया जा रहा है। अधिकतर ई-रिक्शा रजिस्टर्ड नहीं है, इसके बाद भी संबंधित विभाग की ओर से इस ओर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। बच्चों की सुरक्षा के प्रति विभाग संवेदनहीन बना हुआ है।

बन गए व्यावसायिक वाहन

राजधानी में ई-रिक्शा की बढ़ती संख्या का एक प्रमुख कारण यह भी है कि इनका खुलेआम व्यावसायिक उपयोग भी किया जाने लगा है। कई ई-रिक्शा में तो सामान लादकर बाकायदा दुकान के रूप में उन्हें संचालित किया जा रहा है। स्कूल संचालक पेरेंट्स से अपील करते हैं कि वे अपने बच्चों को ई-रिक्शा से न भेजें, लेकिन बहुत से पेरेंट्स इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

ई-रिक्शा के लिए नहीं है मानक

परिवहन विभाग में अगर किसी बस या वैन का स्कूली वाहन के रूप में रजिस्ट्रेशन होता है तो तय समय सीमा के अंदर उनकी फिटनेस की जांच की जाती है। स्कूली वैन की 14 तो बस की 26 प्वाइंट पर जांच होती है। वहीं यूपी मोटर यान 26वां संशोधन नियमावली 2019 के अंतर्गत स्कूली बच्चों को लाने-ले जाने के लिए ई-रिक्शा को प्रतिबंधित किया गया है।

स्कूली वाहनों के लिए गाइडलाइन

- वर्दी में होने चाहिए ड्राइवर और कंडक्टर

- पीले रंग के वाहन पर आगे पीछे स्कूल का नाम और मोबाइल नंबर हो

- वाहन में जीपीएस, सीसीटीवी, फस्र्ट एड बॉक्स आदि होने चाहिए

- अग्निशमन यंत्र, अलार्म घड़ी और सायरन लगा होना चाहिए

- विंडो पर कम से कम चार स्टील के राड लगे हों, जिनके बीच की दूरी पांच सेमी से अधिक न हो

पेरेंट्स कर रहे लापरवाही

ई-रिक्शा चालक स्कूल बस और वैन के महंगे होने का फायदा उठा रहे हैं। मजबूरी में अभिभावक कम पैसे के चक्कर में बस और वैन के बजाय ई-रिक्शा के जरिए ही अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं, लेकिन यही ई-रिक्शा बच्चों के लिए मुसीबत बन सकते हैं।