लखनऊ (ब्यूरो)। श्रावण माह भगवान शिव का प्रिय माह है। इस वर्ष श्रावण माह 4 जुलाई से शुरू हो रहा है। इसबार अधिक मास यानि मलमास होने के कारण श्रावण माह पूरे 59 दिनों का है, जिसमें 8 सोमवार व्रत करने के लिए मिल रहे हैं। ऐसे में इस बार सावन विशेष फल देने वाला है। इस माह में शिव आराधना के साथ महादेव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। यह जानकारी ज्योतिषाचार्य पं। राकेश पांडेय ने दी।

ऐसे करें शिव की पूजा

इसबार सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई को पड़ रहा है। जबकि, आखिरी सोमवार 28 अगस्त को पड़ रहा है। वहीं, सावन मास 31 अगस्त को समाप्त होगा। शिव पूजन में भगवान शिव को सर्वप्रथम जल धारा से स्नान कराकर पंचामृत स्नान, एवं बृहदजलधारा स्नान कराकर भस्मादि लगाने के बाद भांग, विल्वपत्र, सफेद कनेर का पुष्प, सफेद मदार का पुष्प, धतूरा, शमीपत्र, तुलसी मंजरी, विशेष रूप से चढ़ाकर पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद ओम नम शिवाय मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र का जप यथा संभव करना चाहिए।

रुद्राभिषेक का मिलेगा फायदा

रुद्राभिषेक करने से कार्य की सिद्धि शीघ्र होती है। धन की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को स्फटिक शिवलिंग पर गाय का दूध या गन्ने के रस से, सुख समृद्धि की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को गाय दूध में चीनी व मेवे के घोल से, शत्रु विनाश के लिए सरसों के तेल से, पुत्र प्राप्ति को मक्खन या घी से, अभीष्ट की प्राप्ति को गोघृत से तथा भूमि भवन एवं वाहन की प्राप्ति को शहद से रुद्राभिषेक करना चाहिए।

ग्रह शांति के लिए यह करें उपाय

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नव ग्रहों के पीड़ा के निवारणार्थ भी कई उपाय बताए गए हैं। यदि जन्म कुंडली में सूर्य से संबंधित कष्ट या रोग हो तो श्वेतार्क के पत्तों को पीस कर गंगाजल में मिलाकर रुद्राभिषेक करें। चंद्रमा से संबंधित कष्ट या रोग हो तो काले तिल को पीस कर गंगाजल में मिलाकर, मंगल से संबंधित कष्ट या रोग हो तो अमृता के रस को गंगाजल में मिलाकर, बुध जनित रोग या कष्ट हो तो विधारा के रस से, गुरु जन्य कष्ट या रोग हो तो हल्दी मिश्रित गोदुग्ध से, शुक्र से संबंधित रोग एवं कष्ट हो तो गोदुग्ध के छाछ से, शनि से संबंधित रोग या कष्ट होने पर शमी के पत्ते को पीस कर गंगाजल में मिलाकर, राहु जनित कष्ट व पीड़ा होने पर दूर्वा मिश्रित गंगा जल से, केतु जनित कष्ट या रोग होने पर कुश की जड़ को पीसकर गंगाजल में मिश्रित करके रुद्राभिषेक करने पर कष्टों का निवारण होता है व समस्त ग्रह जनित रोग का समन होता है।