लखनऊ (ब्यूरो)। गुरु को हमारे समाज की महत्वपूर्ण संस्था माना जाता है। वे शिष्य के जीवन में प्रभावी प्रेरणा स्रोत हैं और उन्हें ज्ञान और संस्कार देते हैं। गुरु अपने शिष्यों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उन्हें नई सोच और दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। एक अच्छे गुरु का महत्वपूर्ण कार्य होता है बाल विकास, शिक्षा के माध्यम से समाज के साथियों का निर्माण करना और राष्ट्रीय निर्माण में मदद करना। गुरु के दिए संस्कार शिष्य को आगे बढ़ने में मददगार साबित होते हैं। पेश है इस गुरु पूर्णिमा पर अनुज टंडन की स्पेशल रिपोर्ट

माता-पिता होते हैं पहले गुरु

गुरु का महत्व जीवन में सर्वाधिक है। सबसे पहले माता पिता का प्रभाव गुरु के तौर पर पड़ता है। इसके बाद स्कूल के गुरु, जिससे भी ज्ञान मिले वो गुरु के समान होता है। हमारे ग्रंथ भी गुरु की भूमिका निभाते हैं। भारतीय परिवेश में लोककथाएं और लोकगीत आदि भी गुरु हैं, इनसे भी ज्ञान मिलता है, जो किसी व्यक्ति में संस्कार डालता है। कोई परेशानी हो तो गुरु के शब्द हिम्मत देते हैं। गुरु का महत्व सबसे ज्यादा होता है। ईश्वर की ओर ले जाने वाला भी गुरु होता है।

-पद्मश्री विद्या विंदु सिंह, लोक गायिका

आज भी गुरु से प्रार्थना करते हैं

मैंने कथक की तालीम गुरु पं। लच्छू महाराज से ली है। उसके बाद खुद से करने की कोशिश की है। यही कोशिश रहती है कि उन्होंने जो परंपरागत सिखाया उसे करती रहूं, आगे बढ़ाऊं और अपने शिष्यों को दे सकूं। जब सीखना शुरू किया और गुरु के पास गई तो कुछ नहीं आता था। उनका सिखाया हुआ आज भी मेरे लिए वरदान से कम नहीं है। उनसे सीखते समय जीवन की दिशा ही बदल गई। मैंने कथक सीखने के साथ में पीएचडी तक की पढ़ाई पूरी की। जब कोई गुरु-शिष्य परंपरा में तालीम लेता है तो पूरा समय गुरु के सानिध्य में रहता है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तालीम भी होती है। शिष्य लय व ताल के अलावा अन्य चीजें ग्रहण करता है। जिसमें दर्शकों से बात कैसे करें, मूल्याकंन कैसे करें, कैसी प्रस्तुति देनी है आदि सीखने की कला गुरु से ही मिलती है। गुरु में आस्था और श्रद्धा बेहद जरूरी है। तभी ईश्वर आपको सब कुछ देता है।

-कुमकुम धर, कथक डांसर

गुरु के प्रति श्रद्धा समर्पण जरूरी

गुरु-शिष्य परंपरा सदियों से चली आ रही है। एक गुरु जो शिक्षा देता है वो शिष्य का जीवन बदलने का काम करता है। शिक्षा ग्रहण करने के लिए श्रद्धा, समर्पण, लगन और मेहनत की जरूरत होती है। गुरु के बताये नियमों का सख्ती से पालन करना बेहद जरूरी है। भरतनाट्यम की प्रस्तुति को देखकर इसे सीखने की ललक मन में जाग्रत हुई। जिसके बाद गुरु पद्मभूषण सरोजा वैदयनाथन से इसे सीखना शुरू किया और आज जो तालीम हासिल हुई है, उसे अपने शिष्यों को देने का काम कर रहा हूं।

-सय्यद शमशुर रहमान, भरतनाट्यम डांसर

गुरु के सिखाये नियमों पर चलना जरूरी

गुरु के प्रति श्रद्धा रखे बिना शिष्य को कभी सही रास्ता नहीं मिल सकता। मेरे जीवन में गुरुओं का विशेष प्रभाव रहा है। जिन्होंने मेरे जीवन में कई सकारत्मक बदलाव लाने का काम किया। आज भी गुरु के सानिध्य में सीखने का काम कर रही हूं। शिष्य के लिए गुरु के प्रति श्रद्धा रखना और नियमों पर चलना सबसे बड़ा कर्तव्य होता है। गुरुओं का आदर करना बेहद जरूरी है, क्योंकि गुरु की शिक्षा के बिना कला पाई नहीं जा सकती। यह कोई एग्जाम नहीं है कि दिया और पास हो गये। इसलिए गुरु का स्मरण करना चाहिए।

- पद्मश्री मालिनी अवस्थी, लोक गायिका