लखनऊ (ब्यूरो)। लखनऊ यूनिवर्सिटी में बुधवार को रसायन विज्ञान विभाग में पांचवें विशेष व्याख्यान का आयोजन हुआ। यह आयोजन आचार्य सर प्रफुल्ल चंद्र रे के जन्मदिन पर आयोजित किया। रासायनिक विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के माध्यम से संकाय, अनुसंधान विद्वानों और छात्रों के बीच रासायनिक अनुसंधान की अवधारणाओं की समझ बढ़ाने के लिए विभाग की ओर से यह पहल की गई। इस मौके पर बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज, लखनऊ के वैज्ञानिक (सेवानिवृत्त) डॉ। चंद्र मोहन नौटियाल अतिथि वक्ता थे और प्रो। विभूति राय, डीन, विज्ञान संकाय मुख्य अतिथि थे।

आइसोटोप के अनुप्रयोगों की सीमा बहुत बड़ी

प्रोफेसर विभूति राय ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में आइसोटोप की भूमिका से भी अवगत कराया। डॉ। नौटियाल ने कहा कि आम तौर पर एक आम व्यक्ति आइसोटोप को केवल परमाणु ऊर्जा से जोड़ता है, लेकिन आइसोटोप के अनुप्रयोगों की सीमा बहुत बड़ी है। वे भूविज्ञान, ग्रह विज्ञान, खगोल भौतिकी, पुराजीव विज्ञान, पुरामहासागर विज्ञान, पादप विज्ञान, चिकित्सा निदान, पुरातत्व और कई अन्य क्षेत्रों में कार्यरत हैं। जियोकेमिस्ट्री और कॉस्मोकैमिस्ट्री जैसे नए विषय उभरे हैं और विशेष रूप से उनके लिए समर्पित पत्रिकाएं हैं। आइसोटोप का उपयोग विभिन्न सामग्रियों की डेटिंग के लिए भी किया जाता है। प्लांट फिजियोलॉजिस्ट और उद्योग इन्हें क्रमश: प्लांट प्रक्रियाओं और पाइप लाइनों में रिसाव का अध्ययन करने के लिए ट्रेसर के रूप में उपयोग करते हैं। कुछ आइसोटोप ग्रहों की सतहों और तारों और निहारिकाओं के अंदर होने वाली प्रक्रियाओं का सुराग देते है। रेडियोकार्बन (सी-14) नोबेल पुरस्कार विजेता रसायनज्ञ डब्ल्यूएफ लिब्बी की ओर से पुरातत्वविदों और भूवैज्ञानिकों के लिए सबसे मूल्यवान उपहार में से एक है।