लखनऊ (ब्यूरो)। लाइफस्टाइल में बदलाव के चलते लोगों में डायबिटीज की समस्या बढ़ती जा रही है। इस खतरे को देखते हुए राजकीय आयुर्वेद कॉलेज की डायबिटीज यूनिट में एलोपैथी और आयुर्वेदिक काढ़े की मिक्सोपैथी से डायबिटीज को कंट्रोल करने का काम किया जा रहा है। आयुर्वेदिक काढ़े की मदद से दवा और इंसुलिन का इस्तेमाल कम करने में मदद मिल रही है, जो उनके द्वारा की जा रही स्टडी में भी दिख रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक, आयुर्वेदिक दवा के बेहतर नतीजे देखने को मिल रहे हैं।

दिया जा रहा है काढ़ा

आयुर्वेद कॉलेज के काय चिकित्सा विभाग की डॉ। साची श्रीवास्तव ने बताया कि ओपीडी में रोजाना 70 से ज्यादा मरीज शुगर की समस्या वाले आ रहे हैं। मरीजों के इलाज के लिए माडर्न मेडिसिन के साथ-साथ आयुर्वेद की दवा दी जा रही है। फिर शुगर लेवल कंट्रोल होने के बाद उनको काढ़ा दिया जा रहा है। प्री-डायबीटिक मरीजों को लेकर यह रिसर्च की जा रही है, यानि जिनको आगे चलकर शुगर होने का खतरा हो सकता है। जो बार्डर लाइन पर है। ऐसे में, लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर इनको डायबीटिक होने से रोका जा सकता है, इसमें दवा के साथ काढ़ा काफी फायदेमंद साबित हो रहा है। यह मुस्तादि क्वाथ काढ़ा संहिता में भी दिया हुआ है। प्री-डायबिटीज के करीब 20 मरीज ऐसे हैं जो आयुर्वेद की दवा पर निर्भर हैं। उनकी टैबलेट भी छूट गई है और शुगर लेवल भी ठीक रह रहा है।

नेफ्रोपैथी पर हो रहा शोध

डायबिटीज की वजह से कई मरीजों का क्रिएटिनिन लेवल बढ़ जाता है। समय पर इलाज न कराने पर मरीजों की डायलिसिस कराने तक की नौबत आ जाती है। ऐसे 40 मरीजों को स्टडी किया जा रहा है। डॉ। शरद जौहरी के नेतृत्व में यह स्टडी चल रही है। इसमें एमडी छात्रों ने तीन तरह की दवाएं बनाई हैं। इसमें कसाय, सिरप व टैबलेट शामिल हैं। तीन माह का ट्रायल कराया जाता है। हर 15 दिन पर मरीज का किडनी फंक्शन टेस्ट कराया जा रहा है, जिसके बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

यह होता है मुस्तादि क्वाथ में

डॉ। साची ने बताया कि इस काढ़े में मुस्ता, अमलतास, पाथा, हरिताकि, अमालकी, देवदारू, खदिर, नीम, वत्साका समेत अन्य कई आयुर्वेदिक औषिधियां मिली हुई है। जिसे पूरे साइंटिफिक तरीके से तैयार किया जाता है।