- तैयार माल व्यापारियों के पास पड़ा है नहीं हो पा रही डिलीवरी

Lucknow: राजधानी की पहचान चिकन कपड़ा उद्योग लॉकडाउन के कारण कई साल पीछे पहुंच गया है। वहीं इसमें रियायत के बाद भी तैयार कपड़ों की डिलीवरी नहीं हो पा रही है। इस कारोबार से जुड़े व्यापारियों की मानें तो जब तक सार्वजनिक वाहनों और फ्लाइट्स का संचालन शुरू हो भी जाएगा तब भी यह कारोबार पटरी पर नहीं आ सकेगा। वर्तमान हालात को देखते हुए कारोबार को पटरी पर आने में करीब दो साल से अधिक का समय लग जाएगा। इसके लिए भी उन्हें शासन-प्रशासन की मदद की जरूरत होगी।

चार करोड़ का कारोबार प्रभावित

- एक पीस तैयार करने में लगते हैं दो माह

- जब तक परिवहन और फ्लाइट्स की सुविधा शुरू नहीं होगी तब तक उद्योग का पटरी पर आना नामुमकिन

- लॉकडाउन में अब तक 4000 करोड़ का कारोबार हुआ प्रभावित

- 10 करोड़ का शहर में रोजाना होता है कारोबार

यह समय पीक सीजन का

- इस पीक सीजन में जीरो हो गया है कारोबार

- अप्रैल, मई और जून सबसे पीक सीजन चिकन कारोबार के लिए

- रमजान के दौरान सर्वाधिक सेल होती है

- समर वोकेशन में आने वाले टूरिस्ट भी जमकर करते हैं चिकन के कपड़ों की खरीदारी

- देश-विदेश में इस समय ही होती है सर्वाधिक डिमांड

200 किमी के दायरे के लोग जुड़े हैं

- तकरीबन डेढ़ लाख से अधिक लोग जुड़े हैं इस कारोबार से

- सिर्फ लखनऊ नहीं बल्कि इसके चारों ओर 200 किमी के दायरे में लोग जुड़े हैं इस कारोबार से

- राजधानी में 200 से अधिक होल सेलर्स तो पांच हजार से अधिक रिटेलर्स हैं

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देश ही नहीं विदेश में भी डिमांड

- देश में लखनऊ के बराबर चिकन का काम कहीं नहीं होता है। यहां से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, पुणे तक चिकन का कपड़ा भेजा जाता है।

- विदेशों में इंग्लैंड, सिंगापुर, बांग्लादेश, स्पेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, दुबई, श्रीलंका, दुबई, यूरोप तक माल जाता है।

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36 तरीके की होती है डिजाइन

- चिकन कारीगरी कई तरह के कपड़ों पर होती है। कॉटन ,जार्जेट, चंदेरी, कोटा, अरंगजा, विस्कोस, प्योर जार्जट, प्योर सिल्क लिनन के साथ ही अन्य कपड़ों पर इसकी कारीगरी होने लगी है।

- मुर्रे, जाली, बखिया, टेप्ची, टप्पा के साथ 36 प्रकार के चिकन की शैलियों का किया जाता है यूज

- व्यापारी कपड़ा सूरत, पाली, अहमदाबाद से ही मंगाते हैं।

- इसमें यूज होने वाला धागा कॉटन, रेशम और डाइबिल स्टीपल होता है।

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ये जरूरत है व्यापारियों की

- बैंक लोन की किश्त भले ही न छोड़ी जाए लेकिन ब्याज छोड़ दिया जाए

- बिजली के लिए लिया जाने वाला फिक्स्ड चार्ज कम से कम तीन महीने के लिए छोड़ा जाए

- जीएसटी की दरों में कमी की जाए

- नए कारोबारियों को लोन दिया जाए जिससे वह अपना कारोबार तेजी से कर सकें

कोट

लॉकडाउन के बाद दुकानें खुल भी जाएं तो भी चिकन उद्योग को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। जब तक ट्रेन, सार्वजनिक वाहन, फ्लाइट्स नहीं शुरू होंगी, तब तक माल बाहर नहीं भेजा जा सकेगा। सरकार चिकन उद्योग की मदद के हाथ नहीं बढ़ाएगी तो बहुत से व्यापारियों को दूसरे विकल्प तलाशने होंगे।

गोपाल टंडन, कैलाश चिकन

इंदिरा नगर

नवाबों के समय से यहां चिकन का काम होता आ रहा है। पहले टोपियों पर कारीगरी होती थी फिर यह कपड़ों पर आई। 80 के दशक में इसमें क्रांति आई और इसका काम घर-घर होने लगा। इसकी डिमांड बढ़ती गई। अब हालात बहुत खराब हैं। यह उद्योग उद्योग कब पटरी पर आएगा, कहा नहीं जा सकता।

जितेंद्र रस्तोगी, चिकन कपड़ा कारोबारी, चौक

हम लोगों के लिए यही पीक सीजन था, जो लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया। समर वोकेशन में टूरिस्ट बाहर से आते थे, इस बार नहीं आ सके। एयरलाइंस भी बंद हैं। चिकन कपड़ा उद्योग का इस बार जो नुकसान हुआ, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।

संजू झींगरन, चिकन कपड़ा कारोबारी, चौक

लखनऊ की पहचान चिकन कपड़ा उद्योग को लॉकडाउन से तगड़ी चोट लगी है। जिससे उबरने से सालों निकल जाएंगे। सेल उतनी होगी नहीं और व्यापारियों के खर्चे वैसे के वैसे रहेंगे। ऐसे में बिना मदद के इस उद्योग का सर्वाइव करना आसान नहीं है।

प्रवीण गर्ग, चिकन कपड़ा कारोबारी