लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी लखनऊ में तीन मेडिकल कालेज, प्रदेश के सबसे बड़े जिला अस्पताल समेत 10 अन्य छोटे-बड़े सरकारी अस्पताल हैं। जहां प्रदेश से लेकर अन्य राज्यों और पड़ोसी देशों से भी मरीज अपना इलाज कराने आते हैं। औसतन रोजाना 12-15 हजार मरीज राजधानी के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में देखे जाते हैं, पर इसके बावजूद मरीजों को अस्पताल पहुंचने से लेकर रजिस्ट्रेशन, डॉक्टर को दिखाने, जांच कराने, रिपोर्ट लेने से लेकर डिस्चार्ज तक में तमाम तरह की दुश्वारियां झेलनी पड़ती हैं। वहीं, सरकार का स्पष्ट आदेश है कि किसी भी मरीज को कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए। पर राजधानी के सरकारी अस्पतालों में दिखाना मरीजों के लिए किसी युद्ध से कम नहीं है। एक आम मरीज इन अस्पतालों में क्या-क्या दुश्वारियां झेलता है, इससे दैनिक जागरण आईनेक्स्ट आपको रूबरू करायेगा।

12 हजार से अधिक मरीज

राजधानी में केजीएमयू, संजय गांधी पीजीआई, लोहिया संस्थान, सिविल अस्पताल, लोकबंधु अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल, अवंतीबाई महिला अस्पताल, झलकारीबाई महिला अस्पताल, बीआरडी अस्पताल, आरएसएम अस्पताल, रानी लक्ष्मीबाई अस्पताल एवं टीबी अस्पताल समेत कई अन्य अस्पताल शामिल हैं, जहां रोजाना 12 हजार से अधिक मरीज देखे जाते हैं।

डॉक्टरों की भारी कमी

मरीजों के भारी दबाव के बीच डॉक्टरों की भी भारी कमी है। आलम यह है कि कई विभाग बंद हो चुके हैं, तो कई बंद होने की कगार पर हैं, क्योंकि कई डॉक्टर छोड़ कर चले गये तो कई रिटायर हो गए हैं। इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। राजधानी के सरकारी अस्पतालों में करीब 1500 से अधिक डॉक्टरों की जरूरत है, पर करीब एक चौथाई से अधिक पोस्ट खाली चल रही हैं। अकेले केजीएमयू जैसे संस्थान में 100 से अधिक पद खाली हैं, जबकि अन्य सरकारी अस्पतालों में 25-30 पदों तक खाली हैं। मरीजों का जबरदस्त लोड इन अस्पतालों पर बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से मरीजों की वेटिंग लंबी हो चली है।

रजिस्ट्रेशन से लेकर जांच में दिक्कत

मरीजों को अस्पतालों में दिखाने में तमाम तरह की दुश्वारियां झेलनी पड़ती हैं, जिसमें अस्पताल पहुंचने के बाद असल काम रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। इसके बाद ओपीडी के बाहर घंटों लाइन में इंतजार के बाद डॉक्टर महज 2-4 मिनट में देखकर जांच और दवा लिख देता है, क्योंकि मेडिकल कॉलेजों की अधिकतर ओपीडी में जहां 250-300 तक मरीज देखे जा रहे हैं। वहीं, सरकारी अस्पतालों में 150-250 तक मरीज देखे जा रहे हैं। वहीं, जांचें कराना भी यहां किसी युद्ध से कम नहीं होता, क्योंकि जहां घंटों लाइन में लगकर लड़ते-चिल्लाते हुए लोग सैंपल दे पाते हैं, तो वहीं एक्सरे, सीटी स्कैन और एमआरआई जांच के लिए हफ्तों तक इंतजार करना पड़ता है। जिसके चलते कई बार मरीज अस्पताल परिसर में ही रुककर इंतजार करते हैं और उनका खर्चा बढ़ जाता है। किसी तरह जांच होने के बाद जांच रिपोर्ट लेने के लिए भी कई दिन भटकना पड़ता है। जिसके चलते इलाज में भी देरी हो जाती है। ऐसे में मरीजों का ट्रीटमेंट पर भी असर पड़ता है।

नेपाल और श्रीलंका तक के मरीज

राजधानी में पूरे प्रदेश समेत अन्य राज्यों जिसमें बिहार, झारखंड, एमपी से सर्वाधिक मरीज तो आते ही हैं, इसके अलावा नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों तक से मरीज अपना इलाज करवाने आते हैं।