लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी में केजीएमयू, लोहिया, सिविल व बलरामपुर जैसे बड़े मेडिकल कॉलेज और अस्पताल हैं, जहां अधिकारी उच्च चिकित्सीय सेवाएं उपलब्ध होने का दावा करते हैं। अकेले इन अस्पतालों में रोजाना 10 हजार से अधिक मरीज अपना इलाज कराने आते हैं। जिसमें सामान्य बुखार से लेकर कैंसर और अन्य असाध्य रोगों से ग्रसित मरीज होते हैं। मरीज इस आस में अस्पताल आता है कि उसको यहां पर अच्छा इलाज, सस्ती दवाएं और जरूरी जांचें मिलेंगी। पर इलाज के लिए आने पर न सभी जरूरी दवाएं मिलती हैं और न ही जांच हो पा रही है। जिसके चलते मरीजों को निजी मेडिकल स्टोर से महंगी दवा और लैब से महंगी जांच कराने को मजबूर होना पड़ता है, जबकि सरकार का स्पष्ट आदेश है कि अस्पतालों में पूरी दवा और जांच की व्यवस्था हो। पर नतीजा इसके उलट ही है। ऐसे में, 'सेहत मेरा अधिकार' अभियान के तहत इन अस्पतालों में दवा और जांचों की कमी को उजागर किया जा रहा है।

दवा और जांच का अभाव

प्रदेश की राजधानी होने के चलते लखनऊ में बड़े-बड़े चिकित्सा संस्थान और अस्पताल मौजूद हैं। केजीएमयू में जहां 5 हजार, लोहिया में 3 हजार, बलरामपुर में ढाई हजार और सिविल अस्पताल में करीब 2 हजार से अधिक मरीज रोजाना ओपीडी और इमरजेंसी में आते हैं। कहने को तो बलरामपुर अस्पताल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला अस्पताल और केजीएमयू देश का सबसे बड़ा अस्पताल है और सिविल अस्पताल वीआईपी श्रेणी में आता है, इसलिए यहां हजारों मरीज इस उम्मीद के साथ आते हैं कि उनको मुकम्मल इलाज मिलेगा। पर जब मरीज डॉक्टर को दिखाकर दवा काउंटर और जांच काउंटर पर जाता है तो पता चलता है कि इलाज के लिए जरूरी सभी दवाएं ही नहीं है, जिसमें मानसिक, न्यूरो, हार्ट जैसे गंभीर बीमारी की दवाएं तक शामिल हैं। तो वहीं, कई अस्पतालों में दिल से जुड़ी जरूरी जांच जैसे टीएमटी या कैथ लैब तक नहीं है, जिसके चलते मरीज को मजबूरी में या तो इलाज आधा मिलता है या फिर वे निजी दवा स्टोर और लैब से महंगी जांच करवाने को मजबूर होते हैं।

सरकार का आदेश, मिले पूरा इलाज

सरकार द्वारा समय-समय पर सभी अस्पतालों को स्पष्ट निर्देश दिए जाते रहे हैं कि अस्पतालों में कोई भी मरीज बिना जरूरी जांच और दवाओं के वापस न लौटे। जरूरी पडऩे पर उसकी हर संभव मदद की जाये। खुद स्वास्थ्य मंत्री द्वारा विभिन्न अस्पतालों का निरीक्षण किया जा रहा है, पर हो इसका उलट रहा है। केजीएमयू और लोहिया संस्थान हॉस्पिटल रिवाल्विंग फंड के तहत खुद दवाओं को खरीद कर सस्ती दरों पर उपलब्ध कराने का दावा करते हैं, पर लंबी लाइन लगाने के बावजूद मरीजों को पूरी दवाएं नहीं मिलती हैं। वहीं, सिविल व बलरामपुर अस्पताल में सरकारी मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन के माध्यम से दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, जो हर साल अरबों का दवा टेंडर भी करता है। दवाएं मरीजों को फ्री में उपलब्ध कराई जाती हैं। अस्पताल जरूरत के अनुसार दवाओं की डिमांड भेजते हैं, पर कभी दवा उपलब्ध नहीं होती तो कभी खेप कम भेजी जाती है। जिसकी वजह से अस्पतालों में दवा का संकट हो जाता है। मजबूरन मरीजों को कम दवा दी जाती है। ऐसे में मरीज को बार-बार अस्पताल के चक्कर काटने पड़ते हैं।

सभी दावे खोखले

मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों की माने तो जरूरत की हर दवा मरीजों को उपलब्ध कराई जाती है। पर इसके बावजूद दवा काउंटर पर दवा नहीं मिलती। अस्पताल प्रशासन की अनुसार, कार्पोरेशन से दवा कम आती है या मिलती ही नहीं है, जिसकी वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से भुगतना मरीजों को ही पड़ता है।