गाउन और कैप का इतिहास

गाउन

पोशाक-ए-इंग्लिस्तान

कॉन्वोकेशन सेरेमनी में गाउन और कैप पहनने की परंपरा यूरोप में 12 शताब्दी में शुरू हुई। उस दौरान विश्वविद्यालय अपना अस्तित्व बना रहे थे। इन विश्वविद्यालयों के ऊपर डिग्रियों को प्रमाणित करने और स्टूडेंट्स की लिस्ट तैयार करने जैसी जिम्मेदारियां थीं। उस समय विश्वविद्यालयों में उपयुक्त हीटिंग सिस्टम नहीं थे। ऐसे में स्टूडेंट्स पर दबाव रहता था कि वे अपने आपको गर्म रखें। तब स्कॉलर्स के बीच खुद को गर्म रखने के लिए लंबे-लंबे हुड वाले गाउन पहनने की परंपरा पड़ी। बाद में इन्हीं गाउन्स को ऑफिशियल एकेडमिक ड्रेस का दर्जा दे दिया गया।

कैप

पोशाक-ए-इंग्लिस्तान

जबकि कॉन्वोकेशन सेरेमनी में जो कैप लगाई जाती है उसे मोर्टारबोर्ड कहा जाता है। ये कैप यूरोप में 14वीं और 15वीं शताब्दी में बहुत लोकप्रिय हुईं। इस तरह की कैप केवल कलाकार, ह्यूमैनिस्ट, स्टूडेंट और बुद्धिजीवी ही पहनते थे।

जयराम ने जताया था विरोध

केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने अप्रैल 2010 में भोपाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फोरेस्ट मैनेजमेंट में आयोजित 7वें दीक्षांत समारोह के दौरान अपना कॉन्वोकेशन गाउन उतार दिया। उन्होंने इस परंपरा को औपनिवेशिक गुलामी का प्रतीक बताया। जयराम रमेश ने हैरानी जताई थी कि आजादी के इतने साल बीत जाने के बावजूद हम इस बर्बर औपनिवेशिक अवशेष को क्यों ढो रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया था कि कॉन्वोकेशन सेरेमनी में मध्यकालीन पोप की तरह सज कर आना क्यों जरूरी है। इसकी जगह क्या कोई साधारण परिधान नहीं पहना जा सकता। जयराम रमेश को उस समय देश भर से समर्थन मिला था।

'किराए की संस्कृति और किराए के टीपी-गाउन हमारी युवा पीढ़ी को कहीं नहीं ले जा सकते। दीक्षांत समारोह में हमें अंग्रेजी सिस्टम से बाहर आना होगा और भारतीय संस्कृति के अनुसार परिधान चुनने होंगे.'

- संदीप पहल, अध्यक्ष, सच संस्था

'गाउन पहनने य न पहनने से कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता। लेकिन विदेशी परंपरा को अगर छोड़ दिया जाए तो बेहतर होगा। पर इसे अनावश्यक तूल नहीं देना चाहिए। देश के सामने बहस के लिए कई बड़े मुद्दे हैं। फिलहाल सबसे बड़ा मुद्दा एफडीआई का है.'

- गोपाल अग्रवाल, वरिष्ठ सपा नेता

'हमें ऐसी परंपराओं को छोडऩा होगा जिनका कोई अर्थ नहीं रह गया है। गाउन और कैप की परंपरा को छोड़ देना चाहिए.'

- स्नेहवीर पुंडीर, वरिष्ठ छात्र नेता

National News inextlive from India News Desk