जननी सुरक्षा योजना के आंकड़ों में नजर दौड़ाई गई तो पता चला कि पिछले चार महीनों में 118 बच्चे दुनिया देखने से पहले चले गए। ताज्जुब की बात तो ये है इस ओर अभी तक किसी ने भी ध्यान नहीं दिया है। अगर जननी सुरक्षा की शुरुआत से इन आंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो नवजातों की मौत का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में सवाल ये है कि इस योजना पर करोड़ों रुपए खर्च करने का क्या फायदा?

मेरठ में हर रोज होती एक बच्चे की मौत

- पिछले चार माह में के दौरान 118 बच्चों की हो चुकी है डिलीवरी दौरान मौत

- सवा तीन सालों में 1200 से अधिक नवजात की हो चुकी है मौत

- एनीमिया है मौत की सबसे बड़ी वजह

- जननी सुरक्षा की योजना के आंकड़ों में हुआ खुलासा

- मेरठ में हर साल औसतन 22 हजार बच्चों की होती है डिलीवरी

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Meerut : स्वस्थ भारत को लेकर सरकार एक ओर जहां तमाम योजनाएं चला रही है, वहीं मेरठ में रोजाना एक बच्चा जन्म लेने से पूर्व ही मौत की भेंट चढ़ रहा है। यदि पिछले चार माह में मौत का शिकार हुए बच्चों के आंकड़ों पर गौर करें तो परिणाम चौंकाने वाले आते हैं। वहीं दूसरी ओर तीन सालों के मुकाबले शहर में मृत्यु दर लगातार बढ़ती जा रही है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या मेरठ में स्वास्थ्य सेवाओं में कमी है? क्या मेरठ में ऐसे एक्सपर्ट की कमी है? जब आई नेक्स्ट इन बातों की तह में गया तो और भी स्याह सच सामने आया

हर दिन हो रही है एक मौत

अगर हम पिछले चार मंथ की बात करें तो मेरठ में डिलीवरी के दौरान पिछले 120 दिनों में 118 से अधिक मौतें हो गई है। यह तो केवल वही आकंडे़ हैं, जिनका जननी सुरक्षा योजना के तहत जिक्र सामने आया है। इसके अलावा अगर हम उन मौतों की बात करें, जिनका कहीं जिक्र तक नहीं हो पाया, तो यह आंकड़े 250 से भी ऊपर जाते हैं।

लगातार बढ़ रहे हैं आंकड़े

अगर हम बीते तीन सालों की बात की तुलना करें, तो शहर में लगातार डिलीवरी के दौरान बच्चों की मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं। 2012-13 में 311 मौतें हुई थीं। 2013-14 में यह आंकड़ा 384 तक पहुंचा था। 2014-15 में 399 बच्चों की मौतें हुई थी। यह आंकड़ा अप्रैल से लेकर मार्च तक के मंथ के हिसाब से है। अगर हम इस साल की बात करें तो केवल चार ही मंथ में 118 मौतें हो चुकी हैं। इस साल पिछले साल के मुकाबले आंकड़ा और बढ़ सकता है।

नॉलेज की कमी है मेन कारण

एक्सप‌र्ट्स की मानें तो डिलीवरी के दौरान होने वाली मौतों का मेन कारण नॉलेज की कमी ही है। ग्रामीण इलाकों में नॉलेज की कमी के चलते लोग अपने घर में ही किसी दाई या आशा से डिलीवरी करवाते हैं, जिसके चलते बच्चों के मरने की ज्यादा संभावना रहती है। वहीं कुछ लोग आसपास के झोलाछाप डॉक्टर्स से डिलीवरी केस करवाते हैं। जिसके चलते बच्चा और मां दोनों को ही खतरे के चांस हो जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में अधिकतर डॉक्टर्स की लापरवाही के चलते मौतें होने के मामले सामने आते हैं।

एनीमिया भी है एक कारण

कुछ डॉक्टर्स के अनुसार महिलाओं में लगातार होती एनीमिया भी बच्चों की मौत का कारण है। डॉक्टर्स के अनुसार महिलाओं में खून की कमी, पानी की कमी के चलते भी काफी बच्चों की मौत डिलीवरी के दौरान हो जाती है। डॉक्टर्स के अनुसार आज कल महिलाओं को पौष्टिक चीजें नहीं मिल पाती, जिसके कारण उनमें खून की कमी व वीकनेस की शिकायत होने लगती है। जिसके चलते बच्चों की मौत हो जाती है।

नर्सो की भी लापरवाही

कई बार देखा जाता है कि अगर किसी नर्स की ड्यूटी डिलीवरी से पहले होने वाली होती है तो परिजनों से इनाम लालच में जच्चा को ग्लूकोज की डिप चढ़ा देती है। ऐसे में प्रसव का दर्द बढ़ने लगता है और डॉक्टर और नर्स की समय से पहले ही डिलीवरी कराना मजबूरी हो जाती है। ऐसे में कई बार बच्चे को नुकसान हो जाता है और बच्चे की मौत हो जाती है। इस तरह का चलन देहात की सीएचसी और पीएचसी में ज्यादा देखने को मिलता है।

यह भी है कारण

- सूत्रों अनुसार मेरठ में लोग बिना नॉलेज के ही अपना छोटा मोटा नर्सिग होम खोलकर इलाज करना शुरू कर देते हैं, वह अपने हेल्थ बिजनेस को चलाने के लिए मोटी कमीशन स्वास्थ्य विभाग को भी देते हैं।

- भले ही आजकल लोगों में साक्षरता हो, लेकिन अभी भी जागरुकता की कमी के चलते लोग घर में ही डिलीवरी करवाते है। जिसमें बिना ड्रिप लगाए डिलीवरी की जाती है, जिससे काफी कमियां रह जाती हैं।

- एक कारण यह भी है लोग नॉर्मल डिलवरी पर ही विश्वास करते हैं, जबकि डॉक्टर्स के अनुसार कभी-कभी ऑपरेशन की भी आवश्यकता पड़ती है।

- आशाएं अपने पैसे कमाने के चक्कर में केस खुद करने की कोशिश करती है। जब केस बिगड़ जाता है तो फिर डॉक्टर के पास ले जाती हैं, लेकिन तब तक देरी हो जाती है।

- पानी की कमी, खून की कमी, बीपी हाई होने से भी।

मेरठ में डिलीवरी

जननी सुरक्षा योजना के तहत मेरठ में पिछले चार मंथ में छह हजार 377 डिलीवरी हुई है। इस बार स्वास्थ्य विभाग का लक्ष्य 25 हजार 628 का है। इससे पिछले साल मेरठ में 21 हजार 409 डिलीवरी हुई थी।

क्या कहते हैं आंकड़े

साल डिलीवरी मृत्यु

2012-13 20,254 311

2013-14 22,360 384

2014-15 21,409 399

2015 25,628 118

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

महिलाओं में एनीमिया की शिकायत ज्यादा होने लगी है। एनीमिया व पानी की कमी जब दोनों ही एक साथ हो जाए तो बच्चों की मौत हो सकती है।

डॉ। साधना सिंह, सीएमएस, महिला जिला अस्पताल

मौत के पीछे कई कारण हो सकते हैं, हर बच्चे की मौत का कारण रिपोर्ट पर लिखा जाता है। जिसके बारे में जिला प्रशिक्षण अधिकारी बता सकते हैं।

डॉ। रमेश चंद्रा, सीएमओ

महिलाओं में आज खून की कमी, पानी की कमी, बीपी आई के चलते भी बच्चों की मौत हो जाती है।

डॉ। अभिलाषा गुप्ता, एचओडी, गाइनिक, मेडिकल

नॉलेज की कमी के चलते, पानी की कमी, खून की कमी इस तरह की समस्याओं के चलते ही बच्चों व मां को खतरा हो सकता है।

डॉ। आरती शर्मा, गाइनिक,

अक्सर नॉलेज की कमी के चलते महिलाएं खुद का सही से ख्याल नहीं रख पाती हैं। वहीं खान-पान पर ध्यान न देना और पूर ध्यान न रखना और एनीमिया की कमी व पानी की कमी यह सब बच्चों व मां को नुकसान पहुंचाता है।

डॉ। जया जैन, गाइनिक

45 परसेंट महिला होती है लाभार्थी

जननी सुरक्षा के नाम पर प्रदेश सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है। इस योजना के तहत प्रेगनेंट महिलाओं को हॉस्पिटल में डिलिवरी कराने पर प्रोत्साहन राशि, प्रसव के बाद घर ड्रॉप करने की फैसिलिटी समेत कई अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। दरअसल जिले में हर महीने होने वाली डिलिवरी में से केवल 45 पसर्ेंट महिलाएं ही सरकारी हॉस्पिटल में डिलिवरी के लिए आ रही हैं।

जननी सुरक्षा योजना के तहत सरकारी हॉस्पिटल में डिलिवरी कराने वाली महिलाओं को 1400 रुपये दिए जाते हैं। इसके साथ ही एडमिट प्रसूता के खाने पीने पर हर दिन 100 रुपये खर्च किए जाते हैं। हॉस्पिटल में दवाइयों से लेकर सभी तरह की फैसिलिटी फ्री दी जाती है। इसके बावजूद भी लोग सरकारी हॉस्पिटल में डिलिवरी कराने को राजी नहीं होते हैं। पिछले चार महीनों के हिसाब से ग्रामीण इलाकों में केवल 45 परसेंट ही महिलाएं इस योजना का लाभ ले पाई हैं।