-सालाना मेले में दरगाह पर मन्नत मांगने को उमड़ते हैं जायरीन

Phalauda : कस्बे में विशाल जूड स्थित कुतुबशाह जमालुद्दीन रहमतुल्ला अलैह की दरगाह रुहानियत का मरकज है। मन्नत मांगने वाले जायरीनों के लिए सालाना लगने वाले कुतुबशाह का मेला उर्स गौरवमयी इतिहास संजोए है। सदियों से परंपरागत तरीके से लगने वाला उर्स मेला सांप्रदायिक सछ्वाव की मिसाल है। मेले के इतिहास के बारे मेला सदर मोहम्मद इरशाद अहमद कुरैशी ने बताया कि कस्बे के बुजुर्गों के मुताबिक कुतुबशाह जमालुद्दीन का जन्म लगभग 15 वीं सदी में हुआ था।

दिल्ली से फलावदा भेजे गए थे

दिल्ली से फलावदा भेजे गए आमिल दौलत खां के पुत्र कुतुबशाह जमालुद्दीन मां के गर्भ से ही कुतुब थे। गर्भावस्था में उनके कुतुब होने का इल्म बातनौर गांव में रहने वाले महान संत सैयद नसीरुद्दीन शाह को था। रमजान का चांद स्पष्ट न होने पर लोगों ने संत से चांद तस्दीक कराना चाहा तो उन्होंने लोगों को दौलत खां के घर यह जानकारी करने भेजा कि उनके नौनिहाल ने दूध पिया है या नही ? तब पता चला कि आज कुतुब ने मां का दूध पीने से इंकार कर दिया। इस पर सबने रोजा रख लिया, क्योंकि रमजान शुरू होने पर कुतुब ने दूध नही पिया। लोग उन्हें जब से ही साई मानने लगे। बड़े होकर जमालुद्दीन फकीर बन गए और उन्होंने अनेक चमत्कार दिखाये।

बिल्ली को परोस दिया था

रिवायत है कि पड़ोसी गांव नंगला काटर के मीरों ने कुतुबशाह को बदनाम करने के लिए दावत पर बुलाकर भोजन के रूप में एक बिल्ली को भूनकर परोस दिया। शाह फौरन इसे पहचान गए। उन्होंने बिल्ली को जीवित कर दिया और जलाल में आकर मीरों को शाप दे दिया। बाद में गांव में महामारी फैल गई तथा नंगला काटर विरान हो गया। करीब दो सौ वर्ष तक इस गांव के रकबे को जब किसी ने जमीदारे में नही लिया तो अंग्रेजों ने 1836 में कुछ जाटों को प्रलोभन देकर नंगला काटर में बसाया। नंगला पुन: फल-फूलने लगा, ¨कतु मुसलमान इस गांव में नही बसा, जिसने बसने का प्रयास किया वह बीमार हो जाता है। जब शाप से भयभीत लोग इस गांव के जंगल से उगी सब्जी फल आदि खाने या खरीद-फरोख्त करने से भी गुरेज रखने की रिवायत को ¨जदा रखे हुए हैं। कुतुबशाह ने इबादत में विघ्न डालने का प्रयास करने के लिए रियाजगाह में आने वाली एक महिला को जलाल में आकर पत्थर की मूíत बना दिया था।

500 साल पुराना है मजार

उनके पत्थर के शरीर के टुकड़े नगर में कई स्थानों पर पड़े-पड़े विलुप्त हो गए। लोग उन पर थूककर चलते थे। जूड के विशाल करीब पौने तीन सौ बीघा रकबे के जंगल में कुतुबशाह का लगभग 500 वर्ष पुराना मजार है। उसकी गुम्बदच्कच्ची मिट्टी से बनी होने के बावजूद आज भी सुरक्षित है। इस्लामिक माह जमादी उस्मानी की 4 तारीख को प्रतिवर्ष शाह के नगर में स्थित दरबार पर रोशनी के बाद उर्स हो जाता है। तीन दिन से शुरू हुआ यह उर्स मेला अब तीन सप्ताह तक सांप्रदायिक सदभाव और अकीदत के साथ शान-औ-शौकत से चलता है। इस अवसर पर भारत के कई राज्यों से ¨हदु-मुस्लिम श्रद्धालु मन्नत मांगने आते हैं। उर्स में आकर्षण का केंद्र होते हैं पंखा जुलूस अलग-अलग मोहल्लों से निकलते हैं। मजार पर गुल व चादरपोशी कर श्रद्धालु संतान व यशकीíत आदि की मन्नतें मांगते हैं।