-सिर्फ दो मॉल्स ने लिया एमडीए का कंप्लीशन सर्टिफिकेट

-नगर नियोजन अधिनियम का किया जा रहा है खुला उल्लंघन

-एक्ट के मुताबिक बिना सर्टिफिकेट को बिल्डिंग के यूज पर बैन

Meerut: एमडीए और बिल्डरों की मिलीभगत का एक बड़ा कारनामा सामने आया है। सुनियोजित विकास का दावा करने वाला एमडीए अपनी भ्रष्ट कार्यशैली के बल पर शहर में अवैध मॉल्स चलवा रहा है। एक आरटीआई के जवाब में सामने आया है कि शहर के दो प्रमुख मॉल्स अवैध हैं। मानकों के अनुसार केवल दो मॉल्स के पास ही एमडीए का कंप्लीशन सर्टिफिकेट है, जबकि दो अन्य मॉल्स केवल सांठगांठ के आधार पर ही चल रहे हैं।

अवैध मॉल्स

शहर के दो प्रमुख मॉल्स अवैध हैं। सारे मानकों की धज्जियां उड़ा रहे इन मॉल्स के पास न तो एमडीए की ओर से जारी की गई कोई एनओसी है और न ही कोई कंप्लीशन सर्टिफिकेट। बावजूद इसके किसी कार्रवाई और कानून से बेखौफ ये मॉल्स न केवल अवैध कारोबार कर रहे हैं, बल्कि लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

क्या हैं मानक

नगर नियोजन अधिनियम की धारा 15 के मुताबिक किसी भी कमर्शियल बिल्डिंग को तब तक यूज नहीं किया जा सकता जब तक उसको संबंधित विकास प्राधिकरण से कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी न कर दिया जाए। यदि कोई ऐसी बिल्डिंग या मॉल बिना कंप्लीशन सर्टिफिकेट के संचालित हो रहा है, तो उसको पूरी तरह से अवैध माना जाएगा।

कार्रवाई का प्रावधान

नगर नियोजन अधिनियम के मुताबिक यदि कोई कमर्शियल बिल्डिंग बिना प्राधिकरण के कंप्लीशन सर्टिफिकेट के संचालित हो रही है तो उसको अवैध निर्माण की श्रेणी में रखा जाएगा। एमडीए की ओर से इस अवैध बिल्डिंग को नोटिस जारी कर सील कर दिया जाता है।

कैसे हुआ खुलासा

आरटीआई कार्यकर्ता अजय कुमार शर्मा ने शहर में चल रहे मॉल्स को एमडीए से मिलने वाले कंप्लीशन सर्टिफिकेट के विषय में आरटीआई के माध्यम से जानकारी मांगी थी। आरटीआई के जवाब में एमडीए ने केवल मिलांज व ईरा मॉल के अलावा किसी भी मॉल को कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी न होने की बात कही थी।

ये है पूरी प्रक्रिया

मेरठ विकास प्राधिकरण के मुताबिक मॉल्स कमर्शियल बिल्डिंग कैटेगिरी में आते हैं। ऐसी बिल्डिंग्स के लिए जब प्राधिकरण में नक्शा दाखिल किया जाता है, तो एमडीए बिल्डर से संबंधित विभागों की एनओसी की मांग करता है। एनओसी जमा करने के बाद प्राधिकरण की ओर से कुछ नियम शर्तो को शामिल करते हुए संबंधित बिल्डिंग का मानचित्र स्वीकृत कर दिया जाता है। उक्त मानचित्र के आधार पर बिल्डर अपना निर्माण कार्य शुरू कर देता है। निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद बिल्डर इसकी जानकारी एमडीए को देता है, जिसके बाद एमडीए अफसर स्वीकृत मानचित्र के अनुसार इमारत के निर्माण का निरीक्षण करते हैं। इसके साथ ही संबंधित विभागों के अफसर भी अपनी एनओसी के आधार पर बिल्डिंग में इस्तेमाल होने वाली जन सुविधाओं पर गौर करते हैं।

कंप्लीशन सर्टिफिकेट

बिल्डिंग के निरीक्षण के बाद यदि सब कुछ ओके मिलता है तो एमडीए बिल्डर को कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी कर देता है। कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिलने के साथ बिल्डिंग वैध निर्माण की श्रेणी में आ जाती है।

यहां है खेल

दरअसल, मॉल्स के अवैध संचालन का पूरा गोरखधंधा एमडीए अफसरों की मिलीभगत से चलता है। बिल्डर एमडीए से स्वीकृत नक्शे के विपरीत बिल्डिंग के निर्माण में जमकर खेल करता है। इससे पहले की कोई कार्रवाई हो बिल्डर अपने रसूख से प्राधिकरण अफसरों को मना लेता है। इसके बाद बिल्डर बिना कंप्लीशन सर्टिफिकेट के अवैध रूप से बिल्डिंग का यूज शुरू कर देता है और इस पूरी घटनाक्रम से एमडीए चुप्पी साधे रहता है।

ये हैं बहाने

एमडीए अफसरों से जब इस बारे में सवाल किए जाते हैं तो वो इसका पूरा ठीकरा पुलिस प्रशासन के सर पर फोड़ देते हैं। अफसरों के मुताबिक अवैध रूप से चल रही संस्थाओं पर कार्रवाई के लिए पुलिस फोर्स की मांग की जाती है, लेकिन समय पर पुलिस बल न मिल पाने के कारण कार्रवाई को अंजाम नहीं दिया जाता है।

अवैध निर्माणों के लिए नोटिस से लेकर ध्वस्तीकरण तक की कार्रवाई की जाती है, लेकिन समय पर पुलिस बल न मिल पाने के कारण कार्रवाई अधूरी रह जाती है।

-राजेश यादव, वीसी एमडीए