- पिछले सवा तीन सालों में प्रसव के दौरान 75 से अधिक महिलाओं की हो चुकी है मौत

- प्रसव के दौरान डॉक्टर्स से लेकर तीमारदारों तक से होती है लापरवाही

Meerut : बच्चे को जन्म देने वाली जननी की असुरक्षा का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले तीन सालों में प्रसव के बाद और दौरान महिलाओं की मौत में इजाफा हो रहा है। वर्ष 2012-13 के बाद जननी की मौत में करीब 10 गुना का इजाफा हुआ है। ताज्जुब की बात तो ये है कि न तो हेल्थ डिपार्टमेंट और न ही डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन इस ओर से ध्यान दे रहा है।

सवा तीन साल, 80 मौत

जननी सुरक्षा योजना को घोंटने पर जब आंकड़े निकलकर बाहर आए तो वो बेहद चौंकाने वाले थे। वर्ष 2012-13 से अब प्रसव के बाद और प्रसव के दौरान 80 महिलाओं की मौत हो चुकी है। ताज्जुब की बात तो ये है कि इन तमाम मामलों को किसी को भी जिम्मेदार नहीं बनाया गया। न ही किसी की कोई जवाबदेही तय की गई। पूरा हेल्थ डिपार्टमेंट इन मौतों पर इस तरह से चुप्पी साधे हुए हैं जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं।

मौत में दस गुना वृद्धि

अगर बात वर्ष 2012-13 की करें तो उस वर्ष सिर्फ 3 जननियों की मौत हुई थी। लेकिन अगले वर्ष से आंकड़े पूरी तरह से चौंकाने वाले थे। वर्ष 2013-14 में ये आंकड़ा 32 तक पहुंच गया। 2014-15 में 35 महिलाओं की मौत हो गई। मौजूदा वित्तीय वर्ष की बात करें तो चार महीने बीत जाने के बाद 10 महिलाओं की प्रसव के बाद और प्रसव के दौरान मौत हो चुकी हैं। अगर ग्राफ इसी तरह से चलता रहा तो आंकड़ा 40 के पार पहुंच सकता है।

आखिर क्यों हो रहा है ऐसा?

एक्सपर्ट की मानें तो इस तरह की लापरवाही अज्ञानतावश होती है। अधिक कमजोरी के कारण कभी दोनों में किसी एक जान को बचाना जरूरी हो जाता है। माता अधिक कमजोर होने के कारण उसे बचाना मुश्किल हो जाता है। एक्सपर्ट आगे बताते हुए कहते हैं कि कई बार प्री मैच्योर डिलीवरी के दौरान भी ऐसा हो जाता है।

कोई भी सरकारी और गैर सरकारी डॉक्टर प्रसव के दौरान लापरवाही नहीं दिखाता है। उस समय के सिचुएशन पर भी काफी कुछ डिपेंड करता है।

- डॉ। रमेश चंद्रा, सीएमओ, हेल्थ डिपार्टमेंट