- सिटी में सरकारी अस्पतालों से लेकर प्राइवेट अस्पतालों तक में नेगेटिव ग्रुप के ब्लड का है टोटा

- 35 लाख की आबादी में एक दिन में कम से कम दो हजार से अधिक ब्लड के जरूरतमंद

Meerut : कई बार जिंदगियों को बचाने के लिए खून की जरुरत पड़ती है, लेकिन जब जरुरत नेगेटिव ग्रुप के ब्लड की हो तो कई बार जान जाने की नौबत आ जाती है। कहने को तो शहर में दो सरकारी और छह प्राइवेट ब्लड बैंक हैं, जिनमें नेगेटिव ग्रुप का ब्लड मिलना बेहद मुश्किल है। गवर्नमेंट हॉस्पिटल में तो हालात इतने बुरे हैं कि वहां न तो नेगेटिव ग्रुप का ब्लड है न एफएफपी (फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा) और टीआरबीसी (टैग्ड रेड ब्लड सेल्स)। सीन तो कुछ ऐसा भी बनता है कि अगर ब्लड लेना होता है तो उसके लिए पहले अपना डोनर भी साथ होना जरुरी है। नहीं तो ब्लड डोनेट का कार्ड लेकर आने की सलाह दी जाती है।

टोटल आठ ब्लड बैंक

मेरठ में अगर हम गवर्नमेंट और प्राइवेट हॉस्पिटल्स में ब्लड बैंक की बात करते हैं तो दो गवर्नमेंट और छह प्राइवेट हॉस्पिटल्स हैं। जिनमें मेडिकल और प्यारे लाल हॉस्पिटल गवर्नमेंट हैं। प्राइवेट हॉस्पिटल में लोकप्रिय हॉस्पिटल, सुशीला जसवंत राय हॉस्पिटल, आनंद हॉस्पिटल, संजीवनी, केएमसी सहित टोटल छह हॉस्पिटल हैं। इन हॉस्पिटल में ब्लड बैंक बने हुए हैं, जहां पर ब्लड लिए जा सकते हैं।

मरीजों भी कम नहीं

शहर में गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स से लेकर प्राइवेट हॉस्पिटल तक में ब्लड के जरुरतमंद की तादाद भी काफी ज्यादा है। मेरठ में दो गवर्नमेंट हॉस्पिटल हैं, जहां एक दिन में कम से कम क्भ्0 और महीने में कम से कम नौ हजार के आसपास मरीज ब्लड लेने पहुंचते हैं। वहीं प्राइवेट हॉस्पिटल में कम से कम पर महीने में क्भ् हजार के आसपास मरीज ब्लड के जरुरतमंद पहुंचते हैं।

नेगेटिव ब्लड का टोटा

सिटी में गवर्नमेंट हॉस्पिटल से लेकर प्राइवेट हॉस्पिटल तक सभी में नेगेटिव ग्रुप के ब्लड तो न के ही बराबर हैं। सिटी के प्यारे लाल जिला अस्पताल और मेडिकल में जाकर आप अगर नेगेटिव ग्रुप के ब्लड लेना चाहेंगे तो वहां भी नहीं मिलने वाला है। प्राइवेट हॉस्पिटल्स में भी यह न के ही बराबर है। प्राइवेट हॉस्पिटल में अगर किसी हॉस्पिटल में नेगेटिव ग्रुप के ब्लड हैं तो वो भी मुश्किल से दो तीन यूनिट ही होता है और वो भी मिल जाए तो किस्मत की बात है। इसलिए नेगेटिव ब्लड के जरुरतमंद को तो ब्लड ही मिलना ही बहुत बड़ी बात है।

एफएफपी और टीबीआरसी भी नहीं

गवर्नमेंट हॉस्पिटल में तो फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा और टैग्ड रेड ब्लड सेल्स भी न के ही बराबर है। शहर के प्यारे लाल हॉस्पिटल में न तो एफएफपी है और नहीं टीबीआरसी है। इन दोनों के जरुरतमंदों को या तो यहां से मेडिकल भेज दिया जाता है या फिर किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जाने की सलाह दी जा रहीं है। हॉस्पिटल के अनुसार तो यहां पर यह दोनों मिलना इसलिए मुश्किल है, क्योंकि अभी इनकी इतनी आवश्यकता नहीं पड़ती है। जबकि किसी भी एक्सीडेंटल केस में इनकी आवश्यकता पड़ ही जाती है।

ब्लड के बदले मिलता है ब्लड

अगर आपको ब्लड की आवश्यकता है तो आपको पहले किसी ब्लड डोनर को ढूंढना ही होगा। चाहे आप किसी सरकारी हॉस्पिटल में जाएं या फिर किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में दोनों में ही सेम कंडीशन है। यहां आपको या तो बदले में किसी ब्लड डोनर को लेकर जाना होगा या फिर ब्लड डोनेट किया हुआ कार्ड लेकर जाना होगा। उसके बाद भी सरकारी हॉस्पिटल में आपको साथ में चार सौ रुपए पर यूनिट और प्राइवेट में आठ सौ रुपए पर यूनिट देना ही होगा।

लगते हैं कैम्प

गवर्नमेंट हॉस्पिटल हो या फिर प्राइवेट दोनों में ब्लड की रेगुलर सप्लाई के लिए ब्लड डोनेशन कैंप लगाए जाते हैं। गवर्नमेंट में एनजीओ के माध्यम से ब्लड लिए जाते हैं या फिर सरकारी कैंप के माध्यम से अपनी इच्छा अनुसार लोग ब्लड डोनेट करने पहुंचते हैं। प्राइवेट हॉस्पिटल में या तो हॉस्पिटल स्टाफ या फिर कैम्प के जरिए आमजन को ब्लड देने के लिए प्रेरित किया जाता है।

करना पड़ता है इंतजार

गवर्नमेंट हॉस्पिटल में हम ब्लड बैंक के सिस्टम पर जाए तो यहां सिस्टम में काफी कमियां भी हैं। ब्लड लेने के लिए यहां पहले आपको लंबी कतार में खड़ा होना पड़ता है। उसके बाद अगर आपकी सिफारिश होगी तो पहले आपको बुलाया जाता है और सिफारिश नहीं होगी तो आपको काफी इंतजार कराया जाता है।

एफएफपी और टीबीआरसी?

फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा की आवश्यकता तब पड़ती है जब हमारे शरीर में प्लेटलेट्स की कमी आ जाती है। एक व्यक्ति में इसकी संख्या नार्मल ढाई लाख से तीन लाख तक होती है। मनुष्य में पाई जाने वाली लाल रक्त कणिकाओं को टैग्ड रेड ब्लड सेल्स बोला जाता है। यह दोनों ही हमारी बॉडी के सपोर्ट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

एफएफपी वैसे भी बहुत जल्दी खराब हो जाता है और अभी उसकी इतनी आवश्यकता नहीं है। बाकी हम ब्लड डोनर या फिर कार्ड के बदले ही ब्लड देते हैं।

-अखिलेश कुमार, लैब टैक्निशियन, जिला अस्पताल

हॉस्पिटल में एबी नेगेटिव ब्लड तो फिर भी मिल जाता है, इसके अलावा नेगेटिव ब्लड नहीं मिल पाते हैं। क्योंकि नेगेटिव के रियर केस ही आते हैं।

-डॉ। सचिन, सीएमओ, मेडिकल

नेगेटिव ग्रुप के ब्लड तो बहुत ही कम होता है, जो होता है वह हाथ के हाथ चला जाता है। हमारे हॉस्पिटल में पर मंथ ब्लड डोनेशन कैम्प लगाया जाता है, जिसमें हमारा स्टाफ पूरा सपोर्ट देता है।

-मुनीष पंडित, आनंद हॉस्पिटल

हॉस्पिटल में ब्लड की कमी नहीं होती है, हमारे हॉस्पिटल में समय समय पर कैंप लगाए जाते हैं और लोगों को भी जागरुक किया जाता है ब्लड डोनेट करने के लिए।

-डॉ। सुनील गुप्ता, केएमसी