- जागरुकता अभियान के बावजूद हालात बद्तर

- सभी प्रमुख चौराहों पर रहती है जाम की स्थिति

MEERUT: शहर के ट्रैफिक सिस्टम ने बदइंतजामी की ऐसी लाल चादर ओढ़ी है कि समूचे शहर का 'ग्रीन सिग्नल' के ट्रैक से उतर चुका है। कोई ऐसा प्रमुख चौराहा नहीं होगा, जहां लोगों को लंबे जाम से दोचार न होना पड़े। ट्रैफिक लाइट्स की भारी कमी महसूस की जा रही है। जहां लगे भी हैं तो अधिकांश खराब पड़े हैं, जिन चौराहों पर दुरुस्त हैं वहां ट्रैफिक लाइट के अनुसार यातायात नियमों को पालन नहीं किया जा रहा है। विभाग केवल जनजागरण अभियान चलाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देता है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अभियान के बावजूद स्थिति सुधरने के बजाय दिनोंदिन और बद्तर होती जा रही है।

बड़े पैमाने पर चलाए जाते हैं अभियान

ट्रैफिक विभाग हर वर्ष नवंबर में यातायात माह मनाता है। पूरे माह भर शहर में बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाया जाता है। बैनर, पोस्टर, गोष्ठियां और रैलियों के माध्यम ये आम लोगों को यातायात के नियमों को पालन करने की सीख दी जाती है। यही नहीं इस माह में नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ सबसे ज्यादा कार्रवाई भी की जाती है। पिछले वर्ष नवंबर में यातायात माह के दौरान विभाग ने कुल 71 विभिन्न जागरुकता प्रोग्राम आयोजित किए थे। वहीं कार्रवाई करते हुए नियमों का अनुपालन करने वाले 76 वाहनों को सीज किया गया था, 6309 वाहनों का चालान काटा गया और करीब 8 लाख 18 हजार 300 रुपए चालान वसूला गया। विभाग का दावा था कि अभियान के दौरान जागरुकता के लिए करीब 27 हजार पैंपलेट्स बांटे गए। वहीं समय-समय पर भी ट्रैफिक विभाग विशेष चेकिंग अभियान चलाकर कार्रवाई करता है।

हर महीने 78 दुर्घटनाएं

ट्रैफिक विभाग के अलावा आरटीओ, पुलिस और परिवहन विभाग द्वारा भी समय-समय पर जागरुकता अभियान चलाया जाता है। बावजूद इसके स्थित में ज्यादा सुधार देखने को नहीं मिलता। ट्रैफिक विभाग के ही आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी से नवंबर 2015 तक शहर में करीब 863 सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिसमें करीब 641 लोग घायल हुए थे और करीब 341 लोगों की मृत्यु हो गई थी। एक अनुमान के मुताबिक हर महीने 78 से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।

बहुत कम हैं ट्रैफिक लाइट्स

शहर की सड़कों पर जितना वाहनों का दबाव है, उसके अनुसार यहां जितने ट्रैफिक लाइट्स लगाई गई हैं वह ऊंट के मुंह में जीरा सरीखे है। शहर में शॉपरिक्स मॉल चौराहा, बागपत अड्डे चौराहा, घंटाघर चौराहा, ईदगाह चौराहा, बेगमपुल चौराहा, कैंट चौराहा, बच्चा पार्क चौराहा समेत महज 13 चौराहों पर ही ट्रैफिक लाइट्स लगाई गई हैं। इन लाइट्स को लगाने का काम एमडीए विभाग का है। वही इसका बजट जारी करता है और रिपेयर भी वही कराता है। ट्रैफिक विभाग ने 42 प्रमुख चौराहों पर ट्रैफिक लाइट्स लगाने का प्रस्ताव एमडीए को भेजा है।

अधिकांश खराब पड़ी हैं ट्रैफिक लाइट्स

जिन जगहों पर ट्रैफिक लाइट्स लगाई भी गई हैं वह अधिकांश खराब पड़ी हैं। ईदगाह चौराहे पर लगीं ट्रैफिक लाइट्स काफी समय से बंद पड़ी हुई हैं। वहीं बच्चा पार्क चौराहे पर लगीं लाइट्स में केवल रेड लाइट ही जलती है। इसके अलावा घंटाघर चौराहे पर भी अधिकांश बार लाइट्स गलत सिग्नल शो करने लगती हैं। शॉपरिक्स मॉल चौराहे पर लगीं ट्रैफिक लाइट्स में से सभी काम नहीं करतीं। यही हाल बागपत अड्डा चौराहे का भी है। यहां पर भी एक-दो लाइट्स ही चलती हैं बाकी खराब पड़ी हैं।

नहीं होता ट्रैफिक रूल्स फॉलो

बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जाने के बावजूद शहर के जितने भी चौराहों पर नजर डालें तो यातायात नियमों का पालन बिल्कुल नहीं होता। ट्रैफिक लाइट्स तो बस बेमानी है, उस पर तो कोई नजर डालता ही नहीं। जहां पर पुलिस और ट्रैफिक पुलिस यातायात संभालती हैं वहां पर भी हालात बद्तर हैं। वाहन बेतरतीब तरीके से चौराहों को पार करते हैं। पुलिस द्वारा दिशा दिखाए जाने के बावजूद वाहन चालक उनका पालन नहीं करते। लिहाजा हर चौराहे पर पूरे दिन जाम की स्थिति बनी रहती है। लोग घंटों जाम में फंसे रहते हैं। वाहन रेंगे-रेंगे कर चलते हैं। हालत इतने बेकाबू हो जाते हैं कि पुलिस के कंट्रोल से बाहर हो जाता है।

दूसरे विभागों का चाहिए साथ

ट्रैफिक विभाग की मानें तो यातायात को नियंत्रण करने के लिए दूसरे विभागों का लगातार सहयोग की जरूरत होती है। ट्रैफिक विभाग का काम यातायात नियंत्रण करना है। इसके लिए जिले में टीआई महज 3 टीएसआई, 11 हेड कांस्टेबल और 73 कांस्टेबल हैं। इनके अलावा करीब हर चौराहे पर 100 होमगार्ड तैनात किए गए हैं। सड़क पर यातायात का इतना दबाव रहता है कि विभाग का पूरा ध्यान केवल उसे नियंत्रण करने में ही लगा रहता है, जबकि चेकिंग, चालान और सीज करने के लिए आरटीओ और पुलिस दोनों की बराबर की सहभागिता की जरूरत महसूस की जाती है।