मेरठ ब्यूरो। शास्त्रीनगर स्थित जैन मंदिर में आचार्य निर्भयसागर महाराज ने प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि त्याग और तपस्या की वास्तविक, प्राकृतिक और वैज्ञानिक रियलिटी जैन धर्म में है। जैन धर्म सोल एंड गॉड रिलेशन लिए हुए है । आचार्यश्री ने कहा रात्रि भोजन त्याग करना, पानी छानकर पीना, अपनी पत्नी में संतुष्ट रहना, तप, त्याग, योग, ध्यान करना ये सभी क्रिया, पूर्णता वैज्ञानिक जीवन उपयोगी एवं जन उपयोगी है।

जन-जन के सिद्धांत हैं

उन्होंने कहा कि जैन धर्म के सिद्धांत जन -जन के सिद्धांत है। जैन धर्म जन जन का है। इससे जैन जाति या समाज तक ही सीमित नहीं मानना चाहिए। इसके बाद डॉ।राजेंद्र सिंह अग्रवाल ने कहा जैन धर्म और अन्य धर्म में हीरे और कोयले जैसा अंतर है। कोयला और हीरा दोनों पृथ्वी से निकलते हैं कार्बन उनका मूल आधार होता है। वहीं जब कोई उच्च टेंपरेचर पर सल्फर नाइट्रोजन नाइट्रेट आदि से रहित होकर शुद्ध हो जाता है। तब वही हीरा बन जाता है।

जैन धर्म में शुद्धता

उन्होंने कहा कि वैसे ही जैन धर्म में त्याग तपस्या के माध्यम से राग द्वेष मोह ईष्र्या को जलाकर शुद्ध कर लिया जाता है। णमोकार मंत्र जन जन का मंत्र है। इसमें संसार के सभी साधुओं , आचार्य, उपाध्याय और सभी भगवानों को नमस्कार किया गया है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। युद्ध आतंकवाद पर्यावरण एवं आर्थिक समस्या का निराकरण जैन धर्म के सिद्धांतों से हो सकता है। इसलिए इसे विश्व में फैलाने की जरूरत है।

आचार्य श्री का मंगल प्रवेश

जैन सिद्धांतों पर चलने वालों के लिए सिद्धांतों को डिफाइन करने की जरूरत नहीं होती है जैन साधु संत सिद्धांतों पर चलते हैं। संसार में जितने भी भूकंप आ रहे हैं कत्लखानों की वजह से आ रहे हैं णमोकार मंत्र सब मंत्रों का मुकुट मंत्र है। मानव और प्राणी मात्र को जैन धर्म के सिद्धांतों से बचाया जा सकता है। इस अवसर पर आचार्यश्री का गाजे बाजे के साथ शास्त्रीनगर में भव्य स्वागत किया गया व मंगल प्रवेश कराया गया।