मेरठ ब्यूरो। समर वैकेशन शुरू होने वाले हैं, हालांकि, नए सेशन की क्लासेज अभी जारी है। वहीं स्कूलों में बच्चों को लाने ले जाने के लिए कॉमर्शियल वाहनों से ज्यादा निजी वाहनों का ज्यादा प्रयोग होता है। इन स्कूली वाहनों में आपके नौनिहाल कितने सुरक्षित हैं, इसकी गारंटी स्कूल तो दूर खुद परिवहन विभाग तक नही दे सकता है। क्योंकि शहर के अधिकतर स्कूलों में मानकों के अनुसार वाहनों की संख्या 20 से 30 प्रतिशत भी नही है। अवैध रूप से यानि अधूरे मानकों पर संचालित 70 प्रतिशत वाहनों में स्कूली बच्चे जोखिम भरा सफर तय करते हैं। आपके नौनिहालों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने सात दिवसीय अभियान शुरु किया है। इसके तहत हम स्कूलों वाहनों की हकीकत से आपको रूबरू कराएंगे।

मानकों के बिना हो रहा संचालन

परिवहन विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो शहर में करीब 1203 वाहन स्कूली बच्चों को लाने ले जाने के लिए अधिकृत हैं। इनको सुरक्षा के मानकों के आधार पर परमिशन मिली है। इधर एक सच ये भी है कि अधिकतर स्कूलों में मानक विहीन वाहन संचालित हो रहे हैं। हालत यह है कि स्कूल उनकी जिम्मेदारी लेने के बजाए पेरेंट्स पर डाल देते हैं। ऐसे में परिवहन विभाग के पास ना तो कोई प्लानिंग है और ना ही कोई एक्शन लिया जा रहा है।

अधूरे नियमों पर खतरे में जान

गौरतलब है कि साल 2018 में स्कूली वाहनों में सीसीटीवी और जीपीएस को भी अनिवार्य किया गया था। इस नियम के अनुसार जब तक स्कूली वाहन में सीसीटीवी, जीपीएस और हर सीट पर सीट बेल्ट नहीं होगी, तब तक स्कूल वाहन संचालित नहीं होगा। लेकिन इन मानक का अधिकतर स्कूल वाहन पालन नही कर रहे हैं।

स्कूली वाहनों के कॉमर्शियल व्हीकल के मानक

- स्कूली वाहनों में बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर 31 तरह के मानक तय किए गए है।

- प्रदूषण प्रमाण पत्र हो, रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र हो, परमिट वैध हो, डीएल पांच वर्ष पुराना हो

- बस 10 वर्ष से ज्यादा पुरानी न हो।

- बस में बच्चों की सूची, जन्म, पता व ब्लड ग्रुप लिखा हो।

- बस की खिड़कियों पर रॉड लगा होना चाहिए

- सीएनजी का नो लिकेज प्रमाण पत्र हो

- बस का रूट चार्ट अवश्य लिखा जाए।

- बस में एक पुरुष और महिला सहायक तैनात हो।

- चालक व सहायक का ड्रेस पहनना जरूरी है

- बैग रखने की जगह हो, बोतल रखने के लिए क्लिप हो

- बस का रंग गोल्डन यलो विथ ब्राउन हो

- स्पीड गवर्नर हो, जीपीएस सिस्टम लगा हो

- रिफलेक्टर टेप लगा हो

- अग्निशमन यंत्र व फस्र्ट एड बॉक्स हो

- बस पर आन डयूटी लिखा होना चाहिए।

- बस के पीछे प्रबंधक और प्रधानाचार्य का नंबर होना चाहिए

- पावदान की ऊंचाई एक फिट से अधिक न हो, खिड़की में ग्रिल लगा हो

- इमरजेंसी गेट लगा हो, सावधान स्कूल बच्चें है लिखा हो

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स्कूल संचालक बेफ्रिक

शहर के अधिकतर स्कूलों मेें निजी वाहनों का संचालन हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक स्कूली वाहनों के मानकों से झंझट से बचने के लिए निजी वेंडर्स को वाहनों का ठेका दिया जाता है। वहीं, प्राइवेट वाहनों में बच्चों की सुरक्षा का एक भी मानक पूरे करे बिना ही सड़कों पर दौड़ रहे हैं। क्षमता से ज्यादा बच्चों को भर कर यह वाहन पुलिस के सामने से ही निकल जाते हैं लेकिन इनको रोकने की हिम्मत प्रर्वतन दल या ट्रैफिक पुलिस नही करती है। जब कोई हादसा हो जाता स्कूल भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है।

वर्जन

हर साल नया सेशन शुरु होने से पहले स्कूलों को रिमाइंडर जारी कर वाहनों की फिटनेस के लिए कहा जाता है। इसके बाद पूरे साल रेंडम चेकिंग की जाती है। इस बार भी नए सेशन के शुरु होते ही अभियान शुरु किया जाएगा।

- सुधीर कुमार, एआरटीओ