-बाबा ढाकपीर के मजार पर मन्नत मांगते हैं दोनों संप्रदाय के लोग
-तीन दशक से हिंदू परिवार ही कराता है मेले का संचालन
Prikshitgarh ़। एक ओर जहां लोग जरा जरा सी बात पर एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। वहीं इससे इतर इसकी मिसाल परीक्षितगढ़ में लगने वाले ढाकपीर उर्स मेले में देखने को मिलती हैं। जहां हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग मिलजुल कर इस मेले का संचालन कराते हैं। इतना ही नहीं तीन दशक से लगने वाले उर्स मेले की कमान एक ही हिंदू परिवार के हाथ चली आ रही है। आज तक कोई विवाद नहीं हुआ। यह मेला आपसी सौहार्द की मिसाल कायम कर रहा है।
पेड़ के नीचे की साधना
बताते हैं कि एक संत फकीर ने आकर जंगल में लगे ढाक के पेड़ के नीचे बैठकर साधना की। जहां उनके पास सभी धर्म के अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। बाद में वे ढाक वाले बाबा के नाम से पुकारे जाने लगे। यहीं बैठ कर बाबा लोगों को आशीर्वाद देते थे।
मुराद होती है पूरी
मेला कमेटी अध्यक्ष सतीश अग्रवाल ने एक पुराना वाक्या बताया कि एक बार उनके पिता लाला राधेश्याम अग्रवाल का कारोबार घाटे में चला गया था। उन्होंने बाबा की दरगाह पर जाकर चादर चढ़ाई और मन्नत मांगी। कुछ दिन बाद ही उनके कारोबार में मुनाफा होने लगा। इसके बाद ही उनके पिता ने एक कमेटी बनाई और ख्भ् मई क्978 को उनकी अध्यक्षता में पहली बार बाबा की दरगाह पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया गया।
कोई विवाद नहीं
तीन दशक पूर्व लगने वाले ढाकपीर मेले की नींव ख्भ् मई क्978 को रखी गई। मेला प्रत्येक वर्ष ख्भ् मई को लगता है। मेले की गठित होने वाली कमेटी में आज तक दोनों समुदाय के लोगों में कोई भी विवाद नहीं हुआ है। गुरुवार व सोमवार को अधिक संख्या में लोग बाबा की दरगाह पर आकर प्रसाद चढ़ाते हैं और मन्नत मांगते हैं।
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फोटो परिचय
मावा म् : बाबा ढाक पीर का मजार
मावा 7 : पीपल
मावा 8 : कुआ