- स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान देने वाले शहीद गांव भामौरी में धूमधाम से मनाया गया था आजादी का जश्न

Sardhana : शहीदों की भूमि भामौरी गांव में 15 अगस्त 1947 की सुबह का सूरज अपने साथ कभी न भूलने वाला उत्सव लेकर आया था। 14 अगस्त की देर रात को ही ग्रामीणों ने हर घर, गली-नुक्कड़ और पेड़ को तिरंगों से ढक दिया गया था। 15 अगस्त को दिनभर लोग तिरंगा हाथ में लेकर गांव में ढोल नगाड़ों के साथ जुलूस निकालते रहे। देश से अंग्रेजों के जाने की जितनी खुशी इस गांव के बांशिदों को हुई, वर्तमान में उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।

जिक्र छिड़ते ही जोश से भर जाते हैं

आजादी की पहली सुबह के गवाह सूरजमल (84) पुत्र दिमाग सिंह, जगमाल सिंह (94) पुत्र रघुनाथ सिंह और रामभूल (85) पुत्र घिस्सू उम्र के इस पड़ाव में भी स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र छेड़ते ही जोश से भर जाते हैं।

कभी नहीं भुला सकते

प्रथम स्वतंत्रता दिवस की यादें उनके दिमाग में अभी भी ताजा हैं। आजादी के पहले दिन के बारे में तीनों का कहना है कि उस दिन गांव में ऐसा जश्न मनाया गया कि उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। जलसे, प्रभातफेरी और ढोल नगाड़ों के साथ तिरंगे हाथ में लेकर जुलूस निकाले गए.'भारत माता की जय' और 'वंदेमातरम' की गूंज ही चारो तरफ सुनाई दे रही थी।

घरों में बने पकवान

हर चेहरे पर आजादी की चमक झलक रही थी। एक-दूसरे को गले मिलकर आजादी की मुबारकबाद देने का सिलसिला भी लंबा चला। घरों में पकवान बनाए गए। अंग्रेजी फौज के सैनिकों की कभी भी गांव में आमद की दहशत अब सभी दिलों से दूर हो चुकी थी। देश की नई दिशा को लेकर चौपाल पर लोगों के बीच खूब चर्चा हुई।

मिनी जलियांवाला कांड

आजादी के दिन का जिक्र करते ही सूरजमल, जगमाल सिंह और रामभूल सिंह 18 अगस्त 1942 को भामौरी गांव में हुई घटना के बारे में बताते हैं। यह घटना भारतीय इतिहास में मिनी जलियांवाला कांड के नाम से दर्ज है। भारत छोड़ो आंदोलन के तहत गांव स्थित मोटो की चौपाल में सभा कर रहे क्रांतिकारियों पर अंग्रेजी फौज ने अचानक हमला कर दिया था। अंग्रेजी सिपाहियों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी, जिसमें क्रांतिकारी प्रहलाद सिंह, लटूर सिंह, फतेह सिंह और बोबल सिंह मौके पर ही शहीद हो गए थे। जबकि कई लोग घायल हो गए। अंग्रेजों ने सभा का नेतृत्व कर रहे बलिया निवासी रामस्वरूप शर्मा की गर्दन संगीन से कलम की। वहीं ठाकुर देवी सिंह, चेतनलाल, रणधीर सिंह, फकीरा, छुट्टन, बलजीत, शिवचरण, रघुवीर, ताराचंद, बाबूराम शर्मा, मुख्तियार, जमादार सिंह समेत कई क्रांतिकारियों को जेल में ठूंस दिया गया था। इनमें से 18 लोगों को 12-12 वर्ष की कैद की सजा अदालत ने सुनाई थी।

तोप से उड़ाने का आदेश

एकबारगी अंग्रेजों ने पूरे गांव को तोप से उड़ाने का आदेश दे दिया था। मगर अंग्रेजी फौज में तैनात भारतीय सिपाही लियाकत अली ने तोप रास्ते में फंसाकर उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इस क्रांतिभूमि को नमन करने के लिए आए थे। गांव से बाहर गाड़ी छोड़कर वह पैदल ही चले थे। तब उनके साथ आई इंदिरा गांधी बहुत छोटी थीं। गांव वालों ने उनके सम्मान के लिए चंदा कर 1800 रुपये एकत्र किए थे।