बालश्रम रोकथाम दिवस पर विशेष

Meerut: बाल श्रम कोई नया मुद्दा नहीं है। ताज्जुब की बात तो ये है कि इस आधुनिक भारत ये प्रथा बदस्तूर कायम है। साथ ही इसे खत्म करने के कई प्रयास विफल भी हो चुके हैं। मेरठ जिले के आलाधिकारियों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि उनके जिले में कितने बाल मजदूर हैं। बीते दो दशकों से बाल श्रमिकों के बारे में कोई सर्वे नहीं किया गया है। पहले जो सर्वे हुआ था वो भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद किया गया था।

- 500 से अधिक बाल श्रमिक 20 साल पहले डोर टू डोर सर्वे में

-21 बाल श्रमिक आजाद कराए गए थे 2014-15 में

-40,000 का 2014-15 में दो संस्थानों पर लगा था जुर्माना

- 25 लाख जमा हैं पुनर्वास कल्याण कोष में बाल श्रमिकों के लिए

- स्टेट लेवल पर चल रही है कंडीशन कैश ट्रांसफर योजना।

20 साल पहले का सर्वे

-1993 में सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों को बाल मजदूरी करने वालों का सर्वे करने आदेश जारी किया था।

-सभी राज्यों ने अपने-अपने जिलों के अधिकारियों को डोर-टू-डोर सर्वे करने के निर्देश दिए।

पुनर्वास कल्याण कोष

-सर्वे करने के साथ सुप्रीम कोर्ट ने आईडेंटीफाई बच्चों के लिए पुनर्वास कल्याण कोष बनाने का आदेश जारी किया था।

-सुप्रीम कोर्ट के निर्देश थे कि जिन बाल श्रमिकों को छुड़ाया जाएगा, उनके कल्याण के लिए काम कराने वालों से जुर्माना वसूला जाएगा।

दो साल कैद, 50 हजार जुर्माना

किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा तथा उस पर 50 हजार रुपए का अधिकतम जुर्माना लगेगा।

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मामला लिटीगेशन में जाने के बाद काफी लंबा खिंच जाता है। अगर किसी मामले में जुर्माना आ भी जाता है तो जब बच्चा अपनी एज क्रॉस कर चुका होता है। ऐसे में वो रुपया बच्चे की शिक्षा-दीक्षा पर खर्च नहीं हो पाता।

-सरजूराम, एसिस्टेंट लेबर कमिश्नर