वाराणसी (ब्यूरो)। शहर के सरकारी अस्पतालों की मोर्चरी में लगभग एक माह पहले चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई थी। अब प्रशासन ने मामले का संज्ञान लिया है। मोर्चरी हाउस की वस्तुस्थिति की जानकारी मांगी गई है। जिला अस्पताल की मोर्चरी में रखी लाशों पर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने प्रमुखता के साथ 18 जून को खबर प्रकाशित किया था। अभी तक अस्पताल की ओर से जवाब नहीं भेजा गया है। अस्पताल प्रबंधन की मानें तो मोर्चरी में शवों की संख्या तभी अधिक होती है, जब वहां लावारिस लाशें आती हैं और समय से पुलिस की ओर से पोस्टमार्टम के लिए नहीं ले जाया जाता है।
प्रशासन ने मांगा जवाब
पिछले महीने भीषण गर्मी के दौरान मरने वालों की संख्या में अचानक इजाफा हो गया था। इसके बाद जिला अस्पतालों की मोर्चरी में क्षमता से अधिक शव रखे गए थे। डीप फ्रीजर के अभाव में शवों को कीड़े मकौड़ों ने अपना आहार बनाना शुरू कर दिया था। खबर प्रकाशित होने के बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा था। अब इस पूरे मामले को लेकर प्रशासन ने अस्पताल प्रबंधन से जवाब मांगा है कि आखिर शवों का पोस्टमार्टम कराए जाने में देरी क्यों हुई?
लग जाती है कतार
शहर में मात्र शिवपुर सीएचसी में पोस्टमार्टम हाउस होने के कारण वहां शवों का ओवरलोड हो जाता हैै। ऐसे में मोर्चरी में पड़े शव पोस्टमार्टम के लिए वेटिंग में रह जाते हैं। गौरतलब है कि शहर में सिर्फ तीन मोर्चरी पंडित दीन दयाल उपाध्याय, कबरीचौरा मंडलीय अस्पताल और बीएचयू में हैं, इन तीनों में प्रतिदिन आने वाले शवों की संख्या इनकी क्षमताओं से अधिक होती है। कबीरचौरा हो या फिर दीनदयाल अस्पताल दोनों की मोर्चरी में शवों की कतार लग जाती है।
लग जाते हैं कीड़े
शहर के प्रमुख अस्पतालों में शामिल कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल में सबसे अधिक शवों को लाया जाता है। जबकि शवों को रखने के लिए पर्याप्त डीप फ्रीजर नहीं है। इनमें कुछ की कूलिंग काफी कम रहती है, जिससे यहां शव जल्द ही खराब होने के बाद बदबू देने लगते हैं। कई बार स्थिति यह बन जाती है कि शिवपुर पोस्टमार्टम हाउस में जगह नहीं होने के कारण शवों को भेजा नहीं जाता है और कई दिन शव मोर्चरी हाउस में रखे रह जाते हैं। मोर्चरी में सफाई नहीं होने के कारण बगल से गुजरने वाले मरीजों को नाक पर रूमाल रखने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
ज्यादातर शव लावारिस
कबीरचौरा की मोर्चरी हो या फिर डीडीयू की, यहां आने वाले शव ज्यादातर लावारिस होते हैं। कई बार पुलिस शवों को रख देती है, लेकिन प्रचार प्रसार के अभाव में शवों की शिनाख्त नहीं हो पाती है। कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल से शवों को पोस्टमार्टम कराने की जिम्मेदारी कोतवाली की होती है, जबकि डीडीयू मोर्चरी में रखे शवों का पोस्टमार्टम करने की जिम्मेदारी कैंट थाने की है, लेकिन कभी-कभी लापरवाही के चलते शव कई दिनों तक मोर्चरी में रखे रह जाते हैं।
- शहर में पीएम हाउस - 1
- शहर में मोर्चरी हाउस - 3
- बीएचयू में शव रखने की क्षमता - 6
- बीएचयू में डीप फ्रीजर - 6
- डीडीयू में शव रखने की क्षमता - 3
- डीडीयू में डीप फ्रीजर खराब - 1
- मंडलीय अस्पताल में क्षमता - 4
पुलिस को लिखा जाता है पत्र
कई बार अस्पताल की मोर्चरी में शवों की संख्या बढऩे लगती है तो पुलिस को शव की स्थिति बताकर पोस्टमार्टम कराने की बात कही तो जाती है, लेकिन पुलिस नियमों का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेती है। कई बार बढ़ती संख्या को देखते हुए पोस्टमार्टम कराने के लिए पत्र भी लिखा जाता है।
शवों को रखने के लिए तीन डीप फ्रीजर हैं। शासन को डीप फ्रीजर की संख्या बढ़ाने के लिए कई बार प्रस्ताव भेजा गया है। जल्द ही इस संख्या में बढोतरी होगी। हालाकि अभी शवों की संख्या बहुत कम है।
डॉ। आरके सिंह, सीएमएस, डीडीयू
बीएचयू की मोर्चरी में शवों को रखने के लिए 6 डीप फ्रीजर हैं और सभी काम कर रहे हैं। हमारे यहां फिलहाल शवों की संख्या कम ही है, लेकिन हम पोस्टमार्टम की प्रक्रिया भी समय से करा लेते हैं।
डॉ। सौरभ सिंह, डिप्टी एमएस, बीएचयू